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सुख-दुख

दूसरों को सेहत की सलाह देने वाले डाक्टर खुद नींद के लिए परेशान हैं!

अनिद्रा ने छीना चैन… आज का ज़माना भाग-दौड़ का ज़माना है। व्यस्तता ज़्यादा है, समय कम है। इससे जीवन में आपाधापी है, न खाने का समय है, न सोने का। एक-दूसरे की नकल में, दिखावा करने में, शान जताने में जीवन घुल रहा है। एक तरफ महंगाई का तांडव है दूसरी तरफ मांगों का सिलसिला। लोग तनाव में जी रहे हैं और इसका दुष्प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है।

तनावग्रस्त व्यक्ति खुद पर काबू नहीं रख पाता और किसी ऐसी जगह या ऐसे समय अपना गुस्सा उगल देता है कि जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। दिलों में लावा उबल रहा है और वह किसी न किसी रास्ते से बाहर आ ही जाता है। कोई बॉस से लड़ पड़ता है तो कोई बीवी से, कोई छोटी-मोटी गलती पर भी किसी पड़ोसी से उलझ पड़ता है। रिश्ते टूट रहे हैं, परिवार बिखर रहे हैं। समय का अभाव, धैर्य का अभाव, धन का अभाव, मिलकर पूरे जीवन को तबाह कर रहा है।

भाग-दौड़ और चिंता भरा जीवन हमारी नींद छीन लेता है। नींद पूरी न हुई हो तो दिन आलस्य में कटता है, हम उबासियों लेते रह जाते हैं। इससे हमारा फोकस घट जाता है, प्रोडक्टीविटी प्रभावित होती है और हमें निकम्मा करार दे दिया जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए हम और मेहनत करते हैं, देर शाम तक आफिस के काम में लगे रहते हैं, घर जाकर भी चैन नहीं ले पाते। नौकरी जाने का डर, घर के खर्चों की चिंता के कारण नींद में और ज्यादा खलल आता है और हम देर रात जाग-जाग कर काम करने की आदत पाल लेते हैं। लगातार उनींदा रहने से शरीर में कई विकार आ जाते हैं और अंतत: हम अस्पताल पहुंच जाते हैं। तब जाकर होश आता है कि हम अपने शरीर के साथ ज़्यादतियां कर रहे थे। इससे कई बार तो हम जीवन भर के लिए किसी रोग का शिकार होकर दवाइयों के आसरे जीवन बिताने पर विवश हो जाते हैं।

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जब हम देर तक आफिस में काम करते हैं, घर देर से पहुंचते हैं, परिवार को कम समय देते हैं तो रिश्तों में ठंडापन आना शुरू हो जाता है। पति-पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती हैं, बच्चे काबू में नहीं रहते, मां-बाप का साथ न मिलने पर अक्सर वे गलत संगत में भटक जाते हैं और फिर पछतावा हाथ लगता है।

अभी हाल ही में मैं डाक्टरों के एक समूह के लिए वर्कशाप कर रहा था तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि दूसरों को सेहत की सलाह देने वाले डाक्टर खुद नींद को लेकर कितने परेशान हैं। हमें याद रखना चाहिए कि पूरी नींद हमारे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। “माइंड मिरैकल्स ग्लोबल” के एक हालिया सवेक्षण के अनुसार हर तीसरा वयस्क भारतीय अनिद्रा के रोग का शिकार है। इसलिए यह जानना अत्यावश्यक है कि हम ऐसा क्या करें कि नींद भी पूरी हो जाए और जीवन के सभी आवश्यक कामों के लिए समय भी रहे।

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हम जानते हैं कि सोते समय हम नींद के कई-कई चक्रों से गुज़रते हैं और ऐसा हर रात तीन से चार बार होता ही है। कभी हम हल्की नींद में होते हैं और कभी गहरी नींद में, कभी हम कोई सपना देख रहे होते हैं बंद होने के बावजूद हमारी पुतलियां इधर-उधर हरकत करती रहती हैं। नींद के इन विभिन्न चक्रों का समय इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने थके हुए हैं और हमारा और हमारे आसपास का तापमान कैसा है। हम ज़्यादा थके होंगे तो गहरी नींद का चक्र जल्दी आ जाएगा और इसकी समयावधि भी ज़्यादा होगी। रात के बाकी समय में गहरी नींद का चक आयेगा भी तो उसकी समयावधि कम होती चली जाएगी क्योंकि गहरी नींद के पहले चक्र में हमारे शरीर की आवश्यकता बहुत हद तक पूरी हो चुकी होगी।

इस विश्लेषण का अर्थ यह है कि नींद के आवश्यक चक्र पूरे करने के बाद हम यदि बिना किसी अलार्म के स्वाभाविक रूप से उठें तो हम दिन भर तरोताज़ा रहेंगे, इसके विपरीत यदि नींद के सभी चक्र पूरे हुए बिना हम अलार्म के कारण अथवा किसी अन्य बाहरी कारण से उठें तो नींद का चक्र अधूरा रह जाने के कारण हम उनींदे रह जाएंगे जो अंतत: हमें रोगों की ओर ले जाएगा। इसीलिए यह माना जाता है कि अलार्म असल में हमारी सेहत का दुश्मन है।

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नींद का समय हमारे शरीर की रिपेयर का समय है। जब हम सो जाते हैं तो हमारा शरीर दिन भर की भागदौड़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई करता है, पर यदि इसी समय उसे भोजन पचाने का काम करना पड़े तो शरीर की रिपेयर या तो हो ही नहीं पाती या फिर अधूरी रह जाती है। नियम यह है कि रात का भोजन बहुत हल्का होना चाहिए और रात्रि के विश्राम के समय से कम से कम तीन घंटे पूर्व खा लेना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि यदि हम रात को दस बजे सो जाने के आदी हैं तो हमारा रात्रि भोजन शाम 7 बजे तक निपट जाना चाहिए। इसीलिए जैन धर्म में सूर्यास्त से पूर्व डिनर का प्रावधान है। इसके विपरीत सवेरे का नाश्ता भारी हो सकता है क्योंकि उसे पचाने के लिए हमारे पास सारा दिन होता है। हम दिन भर कार्यशील रहते हैं, इधर-उधर आते-जाते रहते हैं उससे खाना पचाने में आसानी होती है। सोते समय हमें यह सुविधा नहीं होती इसलिए रात के खाने का हल्का होना और उसे जल्दी खा लेना अच्छी सेहत के लिए आवश्यक है।

जब हम नींद के लिए तैयार होते हैं तो हमारे शरीर में “मेलाटोनिन” नाम का एक विशेष रसायन बनना शुरू होता है जिसके कारण हमें नींद आती है। दिन की रोशनी में मेलाटोनिन की मात्रा कम रहती है ताकि हम चुस्त-दुरुस्म रह सकें। यदि हमारे बेडरूम में ज़्यादा रोशनी हो, इधर-उधर से शोर आ रहा हो तो नींद में खलल पड़ता है। टीवी, कंप्यूटर और मोबाइल फोन से निकलने वाली नीले रंग की रोशनी हमारी नींद की दुश्मन है। इसलिए यह आवश्यक है कि सोने का समय आने से काफी पहले हम टीवी, कंप्यूटर और फोन से छुटकारा पा लें। सोते समय फोन की घंटी बजने, या मैसेज की नोटिफिकेशन आने से भी नींद में व्यवधान पड़ता है।

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यदि हम अच्छी गहरी नींद लेंगे तो हम दिन भर चुस्त रहेंगे, काम में फोकस बना रहेगा और हम कम समय में भी ज़्यादा काम निपटी सकेंगे। यही नहीं, यदि हम बिना किसी व्यवधान के पूरी नींद लें तो हमारी नींद का समय घट सकता है और यह अतिरिक्त समय परिवार या अपने स्वास्थ्य की देखभाल पर लगाया जा सकता है। एक तरफ जहां अनिद्रा हमारा चैन छीन लेती है, वहीं दूसरी तरफ पूरी नींद लेने की आदत हमें स्वस्थ बनाती है। इसलिए समय की आवश्यकता है कि हम शरीर की जरूरत को समझें और पूरी नींद लेने की आदत बनाएं।

लेखक पीके खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे एक नामचीन जनसंपर्क सलाहकार, राजनीतिक रणनीतिकार एवं मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ-साथ स्तंभकार भी हैं और लगभग हर विषय पर कलम चलाते हैं।

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