यूपी में अनुशासनहीनता का कड़वा सच…
मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल ने गंभीर चिंतन के लिए मजबूर कर दिया है। मैं ही नहीं मेरे जैसे हर कलमकार के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। यहां एक बार फिर राजनीतिक मूल्य हाशिये पर चढ़ते दिखाई दे रहे हैं। स्वयं को सही साबित के लिए बाप-बेटे में ठन गई है तो, कुछ लोग विभीषण की भूमिका भी बखूबी निभा रहे हैं। खैर ये समाजवादी पार्टी का निजी मामला है, इस पर ज्यादा समय व्यर्थ करना उचित नहीं लगता। मेरा सवाल यहां नेता जी उर्फ मुलायम सिंह साहब से है।
मुलायम जी, आपकी पार्टी में आपके मुख्यमंत्री बेटे, आपके भाई पार्टी के नियमों से हटकर कुछ करते हैं तो वो आपको अनुशासनहीनता लगती है। आपने इस अनुशासनहीनता के खिलाफ बड़ी ही तत्परता के साथ बेटे और भाई को पार्टी से निकालने का खेल भी खेला। खैर, चलो मान लिया ये भी आपका निजी मामला है, हालांकि अब इसमें निजता जैसा कुछ रहा नहीं। मैं यहां मुलायम सिंह जी की तारिफ करना चाहूंगा कि उन्होंने पार्टी में अनुशासनहीनता के खिलाफ काफी कड़े तेवर अपनाय। लेकिन मैं नेता जी से यहां सवाल पूछता हूं कि क्या उस वक्त आपको अनुशासनहीनता नहीं दिखाई दी जब दादरी कांड की सांप्रदायिक आग उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में फैली। क्या उस वक्त आपको अनुशासनहीनता नहीं दिखाई दी जब मुज्जफरनगर के दंगों में उत्तर प्रदेश जल रहा था। क्या उस वक्त आपको अनुशासनहीनत नहीं दिखी जब हाई वे पर एक मजबूर बाप के सामने ही उसकी पत्नी और बेटी से घंटों बलात्कार किया जाता है।
नेता जी ऐसे सैकड़ों मामले हैं जब अनुशासन को खूंटी पर टांगकर उत्तर प्रदेश की अस्मत लूटी गई है। तब आपने अनुशासनहीनता के खिलाफ कार्रवाई करते हुए अपनी पार्टी से किसी को क्यों नहीं निकाला। या फिर मैं यह मान लूं, समाज में, आपके राज्य में अनुशासनहीनता से आपको कई फर्क नहीं पड़ता बस पार्टी में अनुशासनहीनता आप बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। या फिर इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि हर राजनीतिक पार्टी का यही असली चेहरा है। देश की अनुशासनहीनता से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है बस वोट की राह में पार्टी में आने वाले हर रोड़े, अनुशासनहीनता की कसौटी में आते हैं।
विनोद विद्रोही
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