Vimal Mishra-
प्रौद्योगिकी ने एक भाषा से दूसरे में अनुवाद को सरल, सहज, सटीक, ग्राह्य और सार्वत्रिक बना दिया है। यह जिस तरह भारतीय भाषाओं के बीच दूरियों को पाटने में लगी है AI (Artificial Intelligence यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता) अंग्रेजी के दबदबे को खत्म करने में हमारी मदद कर सकती है। यानी वह स्थिति जिसमें हिंदी या अन्य देशी भाषाएं बोलने वाला व्यक्ति अवसरों से वंचित न हो। AI को लेकर जब बहसें जारी हैं इसके अवसरों और चुनौतियों को लेकर मुंबई के पत्रकार विकास संघ की वार्षिकी “दर्पण” में मेरे विचार:
AI – भाषा पर प्रभाव या प्रहार …
विमल मिश्र–
कृत्रिम बुद्धिमत्ता AI, यानी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से हमारे कई काम अब चुटकियों में बजा जाने लायक हो गए हैं। खासकर, जब से कंटेंट लिखने वाला चैटबॉट ChatGPT लॉन्च हुआ है। ChatGPT मायने Chat Generative Pre-trained Transformer। एक तरह का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल, जिसके जरिये यूजर, यानी आप किसी भी सवाल का जवाब झटपट हासिल कर सकते हैं। सर्च इंजन गूगल के विपरीत Chatbot ऐसा टूल है, जो डेटा और कंप्यूटिंग तकनीकों के उपयोग से, शब्दों को सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ने के बाद आपके प्रश्न का पूर्ण रूपेण उत्तर देता है। मनुष्य की तरह ही – बातचीत के फॉर्मेट में। न केवल शब्दावली और जानकारी का इस्तेमाल करके, बल्कि शब्दों को उनके सही संदर्भ में समझ कर।
ChatGPT में अब हर काम के लिए AI टूल्स हैं। वे हमें मनचाहा टेक्स्ट लिखकर ही नहीं दे रहे, हमारे लिखे में भाषा, वाक्य, हिज्जे व ग्रामर की गलतियां सुधार रहे हैं, टेक्स्ट को स्पीच में भी बदल रहे हैं, इशारों और स्पर्श को भांप रहे हैं, उच्चारण सुधार रहे हैं, विडियो बना रहे हैं – यहां तक कि हमारी हस्तलिपि और आवाज भी बन जा रहे हैं। ये AI टूल्स असलियत के करीब और कई गुना तेज हैं। बिलकुल और आंशिक मुफ्त, या बहुत ही कम कीमत पर।
अगर आपको लव लेटर लिखना है, अखबार के लिए लेख या विज्ञापन कॉपी, किसी विषय का टेक्निकल एनालिसिस, यहां तक कि कविता (भविष्य में शायद उपन्यास भी) – आपके सामने ChatGPT, BingAI, Copy.ai, jasper.ai जैसे विकल्प हैं। AI आवाज और लिखे को पहचानता है और आपको जवाब भी दे सकता है। फोटो सर्च की सुविधा तो कब से उपलब्ध है। नई खूबियां जुड़ने के बाद ChatGPT जल्द इन्सानों जैसी बातें भी कर पाएगा। यानी बोलते और सुनते हुए नजर आएगा। साधारण शब्दों में कहें, तो वे सारे काम कर पाएगा, जो इन्सान कर सकते हैं। कई और बेहतर AI टूल ट्रायल फेज में हैं।
प्रौद्योगिकी जिस तरह भारतीय भाषाओं के बीच दूरियों को पाटने में लगी है AI अंग्रेजी के दबदबे को खत्म करने में हमारी मदद कर सकती है। यानी वह स्थिति जिसमें हिंदी या अन्य देशी भाषाएं बोलने वाला व्यक्ति अवसरों से वंचित न हो। प्रौद्योगिकी ने एक भाषा से दूसरे में अनुवाद को सरल, सहज, सटीक, ग्राह्य और सार्वत्रिक बना दिया है। गूगल ट्रांसलेशन की प्रगति को ही देखिए। इसकी प्रगति को देखते हुए अगले एक – दो दशकों में हम भाषा निरपेक्ष विश्व की ओर भी बढ़ सकते हैं।
टेस्ला के चीफ एलन मस्क की यह चेतावनी भयावह है कि एक वक्त ऐसा आएगा कि काम करने की जरूरत ही नहीं रहेगी। AI सब कर देगा। बौद्धिक जगत को इसका खतरा सबसे अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता जिस तरह जीवन के हर पहलू को प्रभावित करने जा रही है अगले एकाध दशक में हमारी भाषाएं भी इस बदलाव से अछूती नहीं रहेंगी। एक वक्त ऐसा भी आ सकता है, जब आपको लिखने की जरूरत ही नहीं रहे। वह दिन भी दूर नहीं, जब आप हिंदी बोलेंगे और दूसरे आपको अंग्रेजी में सुनेंगे। बगैर दुभाषिये की जरूरत के। हमारी ज्ञान संपदा – जिसमें हमारा साहित्य और पत्रकारिता भी शामिल है – का शोध बाहरी दुनिया तक पहुंचकर हमें वैश्विक पहचान दिलाएगा। अभी ही डेढ़ सौ से अधिक वैश्विक और 20 से अधिक भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी का दो – तरफा मशीनी अनुवाद संभव है। इस अनुवाद को लेकर शंकाएं जरूर हैं, पर उस स्थिति की कल्पना कीजिए, जब मात्र स्कैन करके आप दूसरी भाषाओं से शैक्षिक और अन्य सामग्री का परस्पर मशीनी अनुवाद तत्काल पा लेंगे, जो लगभग मानवीय अनुवाद की टक्कर का ही होगा। गूगल और माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनियों की एपीआई का उपयोग करके अब हिंदी में भी AI युक्त एप्लीकेशन बनाना संभव हो गया है। वह दिन अब दूर नहीं, जब साफ्टवेयर में विश्व गुरू हमारा देश कृत्रिम बुद्धिमत्ता का केंद्र भी बन जाएगा।
सृजनात्मकता को लेकर खतरा
ChatGPT 30 नवंबर, 2022 को लॉन्च हुआ था, तभी से इसके नेगेटिव प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इसकी कई गंभीर खामियां सामने आई हैं। यह हमारे मौलिक चिंतन, दूसरे से हटकर सोचने, समीक्षा करने, निर्णय करने और समस्या निवारण की क्षमताओं को कम कर सकता है। एक बड़ा खतरा सृजनात्मकता को लेकर है। सृजनात्मकता के लिए असाधारण प्रतिभा की आवश्यकता होती है।
एल्गोरिदम की मदद से पैदा की गई चीजों से मनुष्यों में सृजनात्मक होने की प्रवृति कम हो जाती है – ऐसे में किसी भी तरह के सवाल के जवाब के लिए बहुत ज्यादा दिमाग खपाने की जरूरत ही खत्म हो जाती है। इससे आने वाले समय में जवाब से ज्यादा अहम हो जाएगा सवाल। एक और लिमिटेशन – ChatGPT के जवाब अभी सिर्फ 2021 तक के डेटा के आधार पर हैं। इसलिए अद्यतन जानकारियां नहीं होने के कारण सूचनाएं अभी सीमित हैं। गलत सूचनाओं को चेक करने और ठीक करने की जिम्मेदारी आखिरकार आपके ऊपर ही आ जाती है। कंटेंट को लेकर नकल और कॉपीराइट की चुनौतियों को भी भूला नहीं जाना चाहिए। कंटेट के स्रोत और प्रामाणिकता को जांचे बगैर उनका इस्तेमाल आपको कहीं मुसीबत में न डाल दे।
AI वरदानी है, पर इसके स्याह पहलू भी कम नहीं। AI बड़ी गलतियां न भी करे, तो भी क्या गारंटी है कि गलत इरादे से और गलत फायदे के लिए उनका इस्तेमाल नहीं होगा? भविष्य के सुधारों से इन खामियों पर काबू पा भी लिया जाए, तब क्या होगा, जब बाट्स इन्सानों की तुलना में बुद्धिमानी के स्तर को कई गुना अधिक हासिल कर लेंगे? तब क्या वे अपने से कम बुद्धिमान इंसानों की बात मानेंगे? क्या वे नहीं चाहेंगे कि नियंत्रण उसके ही हाथ में रहे? आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम से शिक्षा व सीखने की प्रक्रिया और डिजिटल सुरक्षा पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। यहां तक कि लोकतंत्र पर भी। जो राय पहले किसी व्यक्ति की होती थी वह अब किसी कृत्रिम रोबोट के जरिये लिखा गया तर्क हो सकता है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं नई तकनीक छात्रों को साइबॉर्ग (आधा इंसान, आधा मशीन) में बदल डाले। यही वजह है कि भारत सहित कई देशों के विश्वविद्यालयों ने पहले ही अपने परिसरों में ChatGPT पर प्रतिबंध लगा दिया है।
नौकरियों के लिए संकट
AI रिपोर्टर व प्रूफरीडर और अन्य अखबारी नौकरियों के लिए बड़े संकट का कारण बन सकता है। अखबार ही क्यों, यह 20 तरह की नौकरियों को आंशिक रूप से रिप्लेस कर सकता है। मसलन, डेटा एंट्री क्लर्क, कस्टमर सर्विस रेप्रेजेंटेटिव, पैरा लीगल, बुक-कीपर ट्रांसलेटर, कॉपी राइटर, मार्केट रिसर्च एनलिस्ट, सोशल मीडिया मैनेजर, अपॉइंटमेंट शेड्यूलर, टेली मार्केटर, वर्चुअल असिस्टेंट, ट्रांसक्रिप्शनिस्ट, ट्रैवल एजेंट, ट्यूटर, टेक्निकल सपोर्ट एनलिस्ट, ईमेल मार्केटर और कंटेंट मॉडरेटर रिक्रूटर की नौकरियां।
AI को लेकर सबसे विकट आशंका दरअसल, नौकरियों को लेकर ही है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की यह रिपोर्ट तो डराने वाली है कि मनुष्यों और मशीनों के बीच रस्साकशी के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 2025 तक 8.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इनमें पत्रकारिता की नौकरियां भी हैं। AI समय बचाने के लिहाज से बहुत तेज जरूर है। नियमित पत्रकारिता के लिए मददगार भी, लेकिन इस बारे में भ्रम नहीं होना चाहिए कि यह इन्सान नहीं। न ही यह इन्सान की तरह सोचने और नतीजे देने में सक्षम है। मानवीय योग्यता का कोई विकल्प नहीं हो सकता।