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सियासत

अयोध्या ने मंदिर-मस्जिद दोनों को कुबूल किया, बात खत्म!

Hafeez Kidwai : आज सरयू में खड़े मेरे राम मुस्कुराए होंगे, लो अपनी चादर में मंदिर मस्जिद दोनों को जगह दे दी। तुम इन्हें दो स्थान समझते थे, मेरे लिए तो यह दोनों एक ही थे, इसलिए दोनों को अपनी अयोध्या में जगह दे दी।

सरयू से ही मुस्कुरा कर मेरे राम बोले होंगे, बहुत पानी बह गया सरयू में, बहुत घर बने और बर्बाद भी हुए, बहुत सी चीजें टूटी, बनी और बदली भी पर अब तुम लोग अपनी फिक्र करो।

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मेरे राम कह रहे होंगे कि मेरी ख्वाहिश से ज़्यादा तुम्हारी ख्वाहिश थी, हमने वह पूरा किया, तुममे से हर एक को अपने दिल मे जगह दी, सम्मान दिया, प्यार दिया। अब मेरी ख्वाहिश है कि तुम अपनी फिक्र करो। अपने बच्चों को पढ़ाई, स्वास्थ और तरक्की के रास्ते पर ले जाओ। यह मसला खत्म हुआ अब नए सूरज में ऐसी सुबह बुनों जिसमे यह नफरत भरे दिन न लौटे।

अयोध्या ने मंदिर मस्जिद दोनो को स्वीकार कर लिया है, बात खत्म। अब देश को आगे बढ़ाने में बढ़ो,आपस मे प्रेम करो, एक दूसरे का सम्मान करो। सरयू ने बता दिया कि उसका पानी पूजा के लिए भी है और वज़ू के लिए भी, सरयू के सन्देश को समझो और अब अपनी फिक्र करो। अपने भविष्य की करो। रोज़गार और तरक्की की फिक्र करो, राम हम सबके साथ हैं। अयोध्या सबकी है, क्योंकि राम सबके हैं, इस लिए अब बस अपनी और मुल्क की तरक्की में लगो, यही अंतिम सत्य है।

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Pramod Pahwa : माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विश्व हिन्दू परिषद सहित अन्य पक्षकारों को रामजन्म भूमि विवाद से बाहर कर दिया और भारत सरकार को मन्दिर निर्माण का अधिकार देकर बहुत सी दुकान बन्द कर दी। शिया वक्फ बोर्ड सहित निर्मोही अखाड़े को भी भजन कीर्तन में लगा दिया। इसके अतिरिक्त कुछ और सम्भव नहीं था।


Vivek Satya Mitram : चलो टंटा ख़त्म हुआ। अब बीजेपी और आरएसएस वालों से कहो, “इसके बाद कोई नया फ़साद नहीं खड़ा होना चाहिए।” सरकार से कहो — ‘बहुत हुई मौज़ मस्ती, अब ज़रा काम करके दिखाओ’! तुम्हारी तो मुर्ग़ी ही ज़बह हो गई, जिसके अंडे खाकर यहाँ तक पहुँचे।

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दोस्तों, मैं तो साल भर में एक बार भी किसी मंदिर नहीं जाता पर ज़िंदा रहने के लिए खाना रोज़ चाहिए, साफ़ हवा चाहिए, आमदनी का ज़रिया चाहिए, इसलिए ना तो इस फैसले पर उन्मादी खुशी का इज़हार करिए ना ही नफ़रती मातम मनाइए!

हाँ, इस बात से सुकून महसूस करिए कि झगड़े की जड़ ख़त्म हुई। इस फ़ैसले को जीत या हार की तरह नहीं एक क़ानूनी मामले में आए फ़ैसले की तरह देखिए। क्योंकि मंदिर बने या मस्जिद आपकी ज़िंदगी में कोई बदलाव नहीं आएगा, आपकी तकलीफ़ें जस की तस रहेंगी।

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ये प्रतिक्रिया का नहीं समायोजन का समय है वरना ये आग यूँ ही जलती रहेगी। इसलिए समझदारी दिखाइए। ये लम्हा अपने नौकरों (सरकार) को काम पे लगाने का है। उन्हें कामचोरी/ मक्कारी और बहानेबाज़ी का एक और मौका मत दीजिएगा!


Yusuf Kirmani : जैसा कि अंदाज़ा था, सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया है। विवादित ज़मीन आरएसएस से जुड़े न्यास को मिलेगी।मुसलमानों को 5 एकड़ ज़मीन अयोध्या में किसी जगह देने का आदेश भी दिया है।

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कोर्ट के फ़ैसले का सबसे बड़ा संदेश यह है कि यह एक सेकुलर देश है। …और उसका यह चरित्र उसके फ़ैसले में बरक़रार है।

फ़ैसले में कुछ और बातें भी हैं… कोर्ट ने कहा ढाँचा गिराना ग़लत था। यह कानून व्यवस्था का उल्लंघन है। आस्था और विश्वास से ज़मीन का फ़ैसला नहीं होता। लेकिन कोर्ट ने पुरात्तव विभाग के सबूतों को आधार मानते हुए ज़मीन हिंदुओं को दी।

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उम्मीद है कि मुसलमान इस फ़ैसले को मान लेंगे। अल्लाह की इबारत कहीं भी हो सकती है। पाँच एकड़ ज़मीन काफ़ी होती है मस्जिद के लिए…कुछ लोगों को कुछ वक़्त के लिए यह फ़ैसला अटपटा भी लगेगा लेकिन गहराई से सोचने पर पता चलेगा कि यह एक बेहतर फ़ैसला है।

दरअसल, हिंदुओं का इम्तेहान अब शुरू होता है। उनकी ख़ुशी उनके जोश से दोगुना निकली तो तस्वीर जो बनेगी, उसके ज़िम्मेदार वही होंगे। उन्हें कोर्ट का फ़ैसला विनम्रतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए ना कि उबल पड़ने वाले जोश के साथ…

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चूँकि सरकार खुद को भी हिंदूवादी बताने से नहीं चूक रही, ऐसे में हिंदुओं के हर जोश के लिए उसकी जवाबदेही भी बनेगी और है। वह कानून व्यवस्था को 1992 जैसी हालत में लायेगी या फिर आज के हिसाब से रहेगी।…लखनऊ से दिल्ली तक भाजपा की सरकार है। एक भी घटना महँगी पड़ेगी। इसलिए फ़ैसले को लेकर विनम्र बने रहें।


Samar Anarya : भीड़ ने 4 सदी पुरानी इमारत ढहा दी। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें उस 2.77 एकड़में बनी इमारत के बदले 5 एकड़ ‘प्रॉमिनेंट साइट’ में दे दी। शुक्रिया सर्वोच्च न्यायालय।

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बाकी, एक प्रसंग के जरिए अपनी बात-

विभीषण के बताने के बाद रावण की नाभि में तीर मारने के बाद हमारे राम लला ने लक्ष्मण को उनके पास भेजा था- ज्ञान लेने। लक्ष्मण ठहरे लक्ष्मण। सिरहाने चढ़ ज्ञान माँगने लगे। रावण ने भगा दिया। फिर राम लला के पास पहुँचे तो राम लला ने समझाया- ज्ञान के लिये विनम्रता चाहिये मूर्ख- जाओे पैताने खड़े होकर माँगो। लक्ष्मण गये- रावण ने ज्ञान दिया।

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बन सकें तो राम बनें- कम से कम आज के दिन। विनम्रता सीखें।


Sant Sameer : अच्छी बात ये हो, अगर हिन्दू धर्मगुरुओं की तरफ़ से बयान आए कि मस्ज़िद के लिए सही जगह पर पाँच एकड़ ज़मीन की शिनाख़्त करने में वे अपने मुस्लिम भाइयों के साथ खड़े होंगे और मस्ज़िद की बुनियाद रखने में सहयोग करेंगे। यह भी कि वे चाहेंगे कि सबके सहयोग से मस्ज़िद की बुनियाद मन्दिर निर्माण शुरू करने से पहले रखी जाए। मस्ज़िद की बुनियाद रखने के बाद राम मन्दिर के निर्माण का काम शुरू करना सही मायने में राम के आदर्श पर चलने जैसा होगा। राम की संस्कृति स्वार्थ की नहीं, परार्थ की संस्कृति है। भारतीय सभ्यता ख़ुद से पहले अगल-बगल वालों का ध्यान रखने की हामी रही है। हमारी धमनियों के बहते रक्त में ऐसे मूल्यों की आभा रही है कि कोई अनजान भी हमारे दरवाज़े पर आ खड़ा हो तो हम उसे अतिथि मान भगवान बना देते हैं।

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यह जीत-हार की प्रतिक्रियाओं से बाहर आने का वक़्त है। राम में आस्था का सीधा-सा मतलब है कि राम के चरित्र को एहसास में उतारने का उपक्रम किया जाए। राम समाधान के हर जतन के बाद अन्तिम क्षणों में युद्ध का उद्घोष करते हैं, लेकिन युद्ध जीत जाने के बाद भी अपने दुश्मन से नफ़रत नहीं करते, बल्कि दुश्मन की क़ाबिलियत को पूरा आदर देते हुए अपने भाई को उसके पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजते हैं। भारत अपने सांस्कृतिक शिखर को दुबारा पाना चाहे तो रास्ता नफ़रत का नहीं, प्रेम का ही हो सकता है।


Amitaabh Srivastava : बेहद संवेदनशील अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने एक संतुलित, सर्वप्रिय और सर्वमान्य फैसला देने की कोशिश की है- विषाक्त राजनीतिक माहौल को देखते हुए काफी हद तक यह फैसला न्यायिक होते हुए राजनैतिक भी है। तुष्टिकरण की झलक वाले इस फैसले में बहुत सारे पेंच हैं। प्रथम दृष्ट्या ऐसा लगता है कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारे से जुड़ी भावनाएं और राजनीति भारी पड़ी हैं। ट्विटर पर ‘मंदिर वहीं बनेगा ‘ तेज़ चल पड़ा है। जफरयाब जिलानी ने फैसले पर अपनी नाखुशी बेबाकी से ज़ाहिर कर दी है। हालांकि सरसरी तौर पर दोनों पक्षों के लिए ही इस फैसले में कुछ-कुछ है, दोनों पक्ष राहत महसूस कर सकते हैं। कुछ- तुम्हारी भी जै जै, हमारी भी जै जै टाइप। फिर भी यह देखना दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक़ तय नहीं हो सकता, लेकिन अंततः आस्था के आधार पर ही समूची विवादित ज़मीन का मालिकाना हक़ तय हुआ। कोर्ट ने यह भी कहा है कि मस्जिद गिराया जाना कानून के ख़िलाफ़ था। वहां मंदिर था भी, नहीं भी था। मंदिर निर्माण के लिए कोर्ट के ट्रस्ट बनाने के आदेश और सरकार को उसकी देखरेख का फैसला लेने की बात से एक तरह से इस ट्रस्ट पर आर एस एस के कब्जे का रास्ता भी खुल गया है।

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सौजन्य- फेसबुक

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