BHU हंगामे के दूसरे दिन हम तब अवाक रह गए जब जिला प्रशासन ने खवरनवीसों को आइना दिखाते हुए मेडिकल कालेज से आगे बढ़ने से ही रोक दिया… कुछ बायें दायें से रुइया हास्टल चौराहे तक पहुंचे लेकिन यहाँ पहले से ज्यादा की तादात में डटे वर्दीधारियों ने प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों के साथ आंय-बांय करते हुए इन्हें आगे नहीं जाने दिया… एक दो बार के असफल प्रयास के बाद अखबार के रिपोर्टर, फोटोग्राफर, चैनल के कैमरापर्सन, स्ट्रिंगर और रिपोर्टर समझौतावादी नीति के तहत वहीं अपनी-अपनी धूनी जमा ली… लेकिन कुछ खुरचालियो किस्म के खबरनवीसों ने धोबिया पछाड़ दाँव लगाते हुए पुलिसिया करतूत को कैमरे में कैद कर ही किया…
असल में उस दौरान जिला प्रशासन बिरला हास्टल के छात्रों के हाथ ऊपर कराकर कमरे से पीटते हुए बारी बारी आकर हास्टल के लॉन में बैठा रहा था… दूसरी तरफ हर तरफ फैले खाकी वाले प्रेस के नाम पर गालियां देने को अपनी शान समझ रहे थे…. घंटे भर के लुकाछिपी के बाद भीड़ में प्रिंट के कैमरापरसन भाई आते दिखे… तय यह किया गया कि सामने आकर अपने अधिकार की बात की जाय और फोटो बनायी जाय…
हम, संजय, चन्दन, उत्तम, जावेद, भैरव सहित कुल दस लोग बिरला चौराहे पर जाने के लिए बढ़े ही थे कि ”मारो मारो” की आवाज ने हम सबका स्वागत किया… बिना कुछ जवाब के जब हम अधिकारियों के पास पहुंचे तो फोटो लेने के लिए नोकझोंक शुरू हो गई…. आखिरकार अधिकारियों की तुगलकी बातों के आगे हम सब देसी बम की तरह साबित हुए…. बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रेस पर्स हो गया है जिसे जब जहाँ चाहे रख दिया जाय? या फिर प्रेस प्रशासन का अंग है जो उनके निर्देश पर अपने काम को करे या फिर न करे? घटना ने हमें जो सीख दी वो यह है कि मीडिया शायद निष्तेज तलवार हो चुकी है और पुलिस के होमगार्ड से SSP या और आगे तक के अधिकारियो के लाइजनिंग को ही हम अपनी सफलता मान रहे हैं जबकि प्रशासन मीडिया को पप्पू से ज्यादा कुछ नहीं मानता…
लेखक डॉ. संतोष ओझा चैनल ‘इंडिया न्यूज़’ चैनल के वाराणसी संवाददाता हैं. इनसे संपर्क 09889881111 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.