मुंबई से मीडिया के एक साथी ने इंडियन एक्सप्रेस मुंबई की अंतरकथा लिख भेजी है. इस कहानी को पढ़ने से पता चलता है कि किस तरह आम मीडियाकर्मियों के भले के लिए बनी यूनियनें आजकल मालिकों के हित साधन का काम कर रही हैं. यही कारण है कि मीडिया के एक बड़े मसले मजीठिया वेज बोर्ड को लागू कराने को लेकर यूनियनों का रवैया बेहद नपुंसक है.
कायदे से यूनियनों को आपस में मोर्चा बनाकर मीडिया हाउसों के मुख्यालयों से लेकर दिल्ली का जंतर-मंतर घेर लेना चाहिए और रोजाना सौ की तादाद में मीडियाकर्मियों को मालिकों के घरों-आफिसों के बाहर धरने पर बैठना चाहिए. लेकिन यह सब काम कराने के लिए जिन यूनियनों को पहल करना था, वह मालिकों से सेटिंग गेटिंग करके मौन साधे हैं और कभी कभार बयान जारी करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं. सबसे उपर यूनियन की तरफ से जारी किया गया पत्र है. नीचे मीडियाकर्मी साथी द्वारा भेजा गया पत्र है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया