Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

औरतें बिना कपड़ों के किसे ख़राब लगती हैं?

यशवंत सिंह-

दरअसल सही तो यही है कि अगर मौसम का तापमान बॉडी को सूट करने वाला हो तो आदमी औरत को कपड़े पहनना ही नहीं चाहिए।

आध्यात्मिक रूप से देखें तो संत कपड़ों के आरपार की सीमाओं सुखों दुखों को जान लेता है तो वह बिना कपड़े और कपड़े समेत दोनों अवस्थाओं में आनंदित रहता है।

बहुत पहले मैंने एक कहानी पढ़ी थी। तब इविवि में छात्र था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक चर्चित और शीर्ष पद पर विराजमान जैन मुनि जो दिगंबर थे, उनको उस वक़्त के जैनधर्म विरोधी शासक ने दरबार में बुलाया और उनके संयम की परीक्षा लेने लगा।

एक से बढ़कर एक खूबसूरत नर्तकियाँ बुलाई गईं। सबने नाचते नाचते धीरे धीरे एक एक कर अपने कपड़े खोलने शुरू कर दिए। बहुत उत्तेजक मुद्रा में आ गईं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जैन मुनि ने न आँख बंद की न त्राहिमाम कहा न चेहरे पर तनाव ग़ुस्से की रेखाएँ बिखेरीं!

राजा भौचक।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नाच ख़त्म।

सारे दांव फेल।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जैन मुनि के लिंग में कोई असर नहीं। जस का तस रहा।

राजा हाथ जोड़ कर आए। पूछा- स्वामी मेरी अब तक की गई धृष्टता के लिए माफ़ी माँगते हुए जानना चाहूँगा कि आप इस तरह संयम कैसे बनाये रख पाए? आप के लिंग में कोई बदलाव तनाव न दिखा!

Advertisement. Scroll to continue reading.

जैन मुनि बोले- राजन, हम सारी नर्तकियों को देखते हुए सोचते रहे कि इसी तरह के जीव कुत्ते चींटी पक्षी पशु भी होते हैं, सब योनि लिंग लिए रहते हैं, लेकिन हमारा आकर्षण किसी पशु की लिंग योनि के बजाय सिर्फ़ नर मादा के इर्द गिर्द केंद्रित रहता है। जब ये नर्तकियाँ कपड़े उतारने लगीं तो मैंने सारे जीवों की देह की कल्पना की। ऐसे ही स्तन गाय भैंस कुतिया सूवरी के भी होते हैं। जब योनि के कपड़े हटाने लगीं तो मुझे वहाँ वही मांस मज्जा हड्डी दिखा जैसे नाक के पास है जैसे कान के पास है जैसे गाय के पास है। किसी भी जीव की चमड़ी हटायेंगे तो चर्बी पाएँगे फिर मांस पाएँगे फिर हड्डी पाएँगे…! फिर ऐसी चीजों से क्या उत्तेजित होना।

राजा चरणों पर गिर गया और जैन धर्म का अनुयायी बन गया। कपड़े त्याग कर दिगंबर हो गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरा कहना है स्त्री बिना कपड़े के इसलिए आकर्षक लगती है क्योंकि हम स्त्रियों को बिना कपड़े पहने देख ही नहीं पाते। देख भी पाते हैं तो बहुत कम स्त्रियों को बिना कपड़े के देख पाते हैं। इसलिए कपड़ा विहीन देह हमारी कल्पना की दुनिया का सबसे बड़ा आईटम होता है।

रामदेव ने ग़लत नहीं कहा। एक संत को बिना कपड़े पहने जीवों में और कपड़े पहने जीवों में कोई फ़र्क़ नहीं दिखता। सब जीव उसे एक तरह ही लगते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रामदेव इसलिए ट्रोल हो रहे हैं कि वे भाजपाई स्वामी हैं। जब संत राजनीतिक ख़ेमेबंदी करने लगे या राजनीति का हिस्सा बन जाए तो फिर वो संत कम, नेता ज्यादा दिखता है। नेता की बातों को पोलिटिकली करेक्ट होना माँगता है।

यहीं राम देव फँस गए। राहुल को अगर बीजेपी संघ पप्पू साबित कर सकती है तो रामदेव को कांग्रेस और अन्य ग़ैर भाजपाई पार्टियाँ स्त्री प्रेमी साबित कर ही देंगी। रामदेव संत कम, नेता और बिज़नेसमैन ज्यादा हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये नंगों का दौर है। ऐसे में नंगी देह आकर्षक लगे तो ये सहज बात है।

सहज बात पर इतनी अशांति क्यों?

Advertisement. Scroll to continue reading.

जबकि सहजे लगे समाधि रे!

यशवंत भड़ास के एडिटर हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ प्रतिक्रियाएँ-

अनिल शुक्ला- वैसे मै आपके साहसी लेखन का प्रशंसक हूं, लेकिन रामदेव के प्रकरण में दिगंबर जैन मुनि का संदर्भ उचित नहीं लगता है। रामदेव संत कोटि में तो नही ही है, आवरण भले ही बाबा का है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यशवंत सिंह- रामदेव के लिंग का अब तक परीक्षण नहीं हुआ है। आसाराम का हो चुका है

अजय यादव- बढ़िया बात! काश रामदेव ऐसा होता। हो सकता है इस मामले में हो या न भी हो, कौन जानता है… मनुष्य की बनावट ही ऐसी है किस मामले में मनुष्यता के सकारात्मक है और कहा वीभत्स, पता नहीं चलता…और कई भाव छुपाए नहीं छुपते… रामदेव कॉकटेल है। किसी को बाबा के रूप में नहीं पचता तो किसी को बिसनेसमैन के रूप में… वहीं रामदेव कॉकटेल के रूप में बार बार खुलेआम झूठा एकपक्षीय भेदभावरहित दिख चुका है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मनोज अनुरागी- जंगल कभी सुंदर नही दिखता उसे उधान बनाया जाय तो ही सुंदर दिखता है, नग्न देह कभी सुंदर हो ही नही सकती, उसे तो श्रृंगार ही सुंदर बनाता है।

ब्रह्मवीर सिंह- यशवंत जी सही कह रहे हैं। मैं जब अपनी उपन्यास दंड का अरण्य लिख रहा था तब भोपालपटनम और देवरापल्ली के जंगलों में गया। नक्सलियों का सानिध्य लिया। वहां मैंने देखा कि आदिवासी महिलाएं बेहद कम कपड़ों में बिना झिझक और संकोच के घूम रही थी। उनके में नीचे का हिस्सा ही कवर करने का प्रयास दिखा। स्तन तो ज्यादातर के खुले या नहीं के बराबर ढंके नजर आए। लेकिन किसी आदिवासी पुरुष की नजरें मुझे उन्हें घूरते हुए नजर नहीं आईं। क्यों? क्योंकि उनके लिए यह सामान्य बात है। हमारी तरह आधुनिक समाज की तरह गंदी नहीं। दिक्कत यह है कि सब खुद को खुदा मान बैठे हैं। जो चल रहा है उसके अलावा दूसरे विचार उन्हें सुहाते ही नहीं। लोगों को केवल वही सुनना, देखना और पढ़ना है जो उन्हें अच्छा लगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

शैलेश तिवारी- बाबा ने इस बात को उस सहजता वाले भाव से कहा ही नही था, जिस भाव में आपने लिखा है। बाबा ने जिस अंदाज में हंस कर कहा है, वह गलत लगा भईया

यशवंत सिंह- बाबा बोलते बोलते बोल गया और ग़लत नहीं बोला! बाबा अपनी मार्केटिंग कर गया। उसे पता है ट्रेंडिंग कैसे हुआ जाता है!

Advertisement. Scroll to continue reading.

अनुपम चौहान- जस्टिफिकेशन की जरूरत ही नहीं है। आप भी जानते हैँ कि ये गलत बयान है…

यशवंत सिंह- एकदम सही बोल गया, जिसे उसे नहीं बोलना चाहिए था। पर बात तो बिल्कुल सही कहा उसने। उसके सही बात कहने का ग़लत ख़ामियाज़ा तो उसे उठाना पड़ेगा। समाज बहुत तलछट दिमाग़ वाला है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रवीण सिंह- सही बात ये है कि नंगी देह एकदम अच्छी नहीं लगती। जब तक वह ढकी होती है तब तक उसको लेकर आकर्षण रहता है। भले ही एक आध फीसदी ही ढकी हो।

यशवंत सिंह- दुनियादार और संत की दृष्टि में फ़रक होता है। जब नंगी अनाकर्षक देह देख लिए तो फिर जो है सब अच्छा है, फिर कपड़ा क्या बिना कपड़ा क्या। संत सब कुछ सकारात्मक देखता है इसलिए अनाकर्षक की जगह वह आकर्षक बोलता है। वहीं कुछ संतों के ख़ेमे सब कुछ ख़राब देखते हैं तो वो सब कुछ को छोड़ने लायक़, घटिया, बदसूरत मानते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रशांत भगत- its called advertisement stunt, Bhadaasi Baba aap dhare gaye is chakkar me. Gangaa me seershaashan alag baat hai aur chauraahe pe alag baat.

यशवंत सिंह- अब तक एक्को पैसा नहीं मिला है। चाहिए भी नहीं। ईश्वर ने बहुत दे रखा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जूनियर डायमंड- आप कितना भी लिख लो लेकिन सच है कि कपड़ा उतारने को किसी भी भी अपना देह उतना आकर्षक नहीं लगता जितना कपड़े में होता है। इसके पीछे की एक वजह यह हो सकती है कि हम कपड़े के अभ्यस्त हो चुके हैं।

यशवंत सिंह- ये सच है दुनियावी लोगों के लिए। संत दोनों अवस्था में एक तरह ही होता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जूनियर डायमंड- जैन मुनियों के लिए हो सकता है लेकिन हम जैसे लोगों के लिए कपड़ा ही आकर्षक अवस्था है

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement