अविनाश वाचस्पति : मैं पागल हूं क्या… मेरी इकलौती पोती राव्या के पिता यूं तो मेरा बड़ा बेटा अंशुल वाचस्पति है पर उसने मुझे पागल मान लिया है… 9 अप्रैल 2015 को बतरा अस्पताल में एडमिट किए जाने पर डाक्टर शरद अग्रवाल और नरसिंग स्टाफ की सलाह पर मुझसे मिलकर समझाने की बजाय रस्सियों से मेरे हाथ पैरों इत्यादि को बांधने की अनुमति पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। और, मैं रात भर अपने बेटे का इंतजार करके तड़पता रहा। वह घर में आराम से चैन की नींद लेता रहा। माबाइल पर गेम खेलता रहा। टीवी पर सुनता रहा राजनैतिक घटनाक्रम।
अब तो आपको मान लेना चाहिए कि मैं पागल हूं। यह सच्चाई बतरा अस्पताल से 16 अप्रैल 2015 को उसने मुझे बहुत शान से बताई और मैं खून के आंसू रोता रहा। अगर मुझे हेपेटाइटिस-सी जैसा खतरनाक रोग मिला तो इसमें मेरा क्या कसूर है। मेरी धर्मपत्नी का कहना है- ”आपने हमारे लिए जितना किया, उससे ज्यादा तो उनका हक बनता है। आपकी बीमारी में मेरी कोई जिम्मेदारी इसलिए नहीं बनती है क्योंकि रोग को लाने में हमारा कोई रोल नहीं है। आपके दोस्त तो आपकी मदद कर नहीं रहे हैं तो इससे आपकी लोकप्रियता का पता चलता है। फिर दोषी हम अकेले ही क्यों, हम न दें तो कोइ आपको दो रोटी के लिए नहीं पूछेगा, बात करते हो।”
ब्लागर अविनाश वाचस्पति के फेसबुक वॉल से.