आपकी गाली और मेरा वो असहाय अंग
कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छन कर
वही बात हर बार निकलती है
बालकनी के बाहर लगी रस्सी पर
जहाँ सूखता है पजामा और तकिये का खोल
वहीं कहीं बीच में वही बात लटकती है
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बार निकलती है
बातों से घेर कर मारने के लिए
बातों की सेना बनाई गई है
बात के सामने बात खड़ी है
बात के समर्थक हैं और बात के विरोधी
हर बात को उसी बात पर लाने के लिए
कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बात निकलती है
लोग कम हैं और बातें भी कम हैं
कहे को ही कहा जा रहा है
सुने को ही सुनाया जा रहा है
एक ही बात को बार बार खटाया जा रहा है
रगड़ खाते खाते बात अब बात के बल पड़ने लगे हैं
शोर का सन्नाटा है, तमाचे को तमंचा बताने लगे है
अंदाज़ के नाम पर नज़रअंदाज़ हो रहे हैं हम सब
कुछ ही तो वाक्य है बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बार निकलती है ।
बात हमारे बेहूदा होने के प्रमाण हैं
वात रोग से ग्रस्त है, बाबासीर हो गया है बातों को
बकैती अब ठाकुरों की नई लठैती है
कथा से दंतकथा में बदलने की किटकिटाहट है
चुप रहिए, फिर से उसी बात के आने की आहट है।