Recently, the Caravan magazine brought out an article detailing how almost 300 Madhya Pradesh based journalists cutting across every newspaper, channels and what not, were allotted plots in Bhopal by the Shivraj Singh Chouhan government in the early years of 2000.
परिकल्पना द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला अन्तर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन 16 से 21 जनवरी के बीच थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक में आयोजित किया गया। नई दिल्ली, लखनऊ, काठमांडो (नेपाल) थिम्मू (भूटान) कोलम्बो (श्रीलंका) के सफल आयोजनों की श्रंृखला में थाईलैण्ड का सम्मेलन भी पूरे वैभव के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर थाईलैण्ड के प्रमुख शहर पटाया और राजधानी बैंकाक में सम्पन्न हुए सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यक्रमों में कवि सम्मेलन पुस्तक लोकार्पण, परिचर्चा एवं सांस्कृतिक संध्या जैसे कार्यक्रम सम्पन्न हुए।
कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छन कर वही बात हर बार निकलती है बालकनी के बाहर लगी रस्सी पर जहाँ सूखता है पजामा और तकिये का खोल वहीं कहीं बीच में वही बात लटकती है जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बार निकलती है बातों से घेर कर मारने के लिए बातों की सेना बनाई गई है बात के सामने बात खड़ी है बात के समर्थक हैं और बात के विरोधी हर बात को उसी बात पर लाने के लिए कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बात निकलती है लोग कम हैं और बातें भी कम हैं कहे को ही कहा जा रहा है सुने को ही सुनाया जा रहा है एक ही बात को बार बार खटाया जा रहा है रगड़ खाते खाते बात अब बात के बल पड़ने लगे हैं शोर का सन्नाटा है, तमाचे को तमंचा बताने लगे है अंदाज़ के नाम पर नज़रअंदाज़ हो रहे हैं हम सब कुछ ही तो वाक्य है बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बार निकलती है । बात हमारे बेहूदा होने के प्रमाण हैं वात रोग से ग्रस्त है, बाबासीर हो गया है बातों को बकैती अब ठाकुरों की नई लठैती है कथा से दंतकथा में बदलने की किटकिटाहट है चुप रहिए, फिर से उसी बात के आने की आहट है।
अविनाश वाचस्पति : मैं पागल हूं क्या… मेरी इकलौती पोती राव्या के पिता यूं तो मेरा बड़ा बेटा अंशुल वाचस्पति है पर उसने मुझे पागल मान लिया है… 9 अप्रैल 2015 को बतरा अस्पताल में एडमिट किए जाने पर डाक्टर शरद अग्रवाल और नरसिंग स्टाफ की सलाह पर मुझसे मिलकर समझाने की बजाय रस्सियों से मेरे हाथ पैरों इत्यादि को बांधने की अनुमति पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। और, मैं रात भर अपने बेटे का इंतजार करके तड़पता रहा। वह घर में आराम से चैन की नींद लेता रहा। माबाइल पर गेम खेलता रहा। टीवी पर सुनता रहा राजनैतिक घटनाक्रम।
संघ परिवार से जो गलती वाजपेयी सरकार के दौर में हुई, वह गलती मोदी सरकार के दौर में नहीं होगी। जिन आर्थिक नीतियो को लेकर वाजपेयी सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया, उनसे कई कदम आगे मोदी सरकार बढ़ रही है लेकिन उसे कठघरे में खड़ा नहीं किया जायेगा। लेकिन मोदी सरकार का विरोध होगा। नीतियां राष्ट्रीय स्तर पर नहीं राज्य दर राज्य के तौर पर लागू होंगी। यानी सरकार और संघ परिवार के विरोधाभास को नियंत्रण करना ही आरएसएस का काम होगा। तो क्या मोदी सरकार के लिये संघ परिवार खुद को बदल रहा है। यह सवाल संघ के भीतर ही नहीं बीजेपी के भीतर के उन कार्यकर्ताओ का भी है, जिन्हें अभी तक लगता रहा कि आगे बढने का नियम सभी के लिये एक सरीखा होता है। एक तरफ संघ की विचारधारा दूसरी तरफ बीजेपी की राजनीतिक जीत और दोनों के बीच खड़े प्रधानमंत्री मोदी। और सवाल सिर्फ इतना कि राजनीतिक जीत जहां थमी वहां बीजेपी के भीतर के उबाल को थामेगा कौन। और जहां आर्थिक नीतियों ने संघ के संगठनों का जनाधार खत्म करना शुरु किया, वहां संघ की फिलासफी यानी “रबर को इतना मत खींचो की वह टूट जाये”, यह समझेगा कौन।
गाजियाबाद से खबर है कि वैशाली सेक्टर-5 में रहने वाले एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार का ब्लॉग हैक कर लिया गया। आरोप है कि हैकर्स ने उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी है। इसके अलावा ब्लॉग पर कुछ आपत्तिजनक धार्मिक तस्वीरें भी पोस्ट की गई हैं। इस संबंध में रवीश ने इंदिरापुरम थाने में शिकायत की। पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर क्राइम ब्रांच को जांच सौंप दी है। एसपी क्राइम अभिलाष त्रिपाठी ने बताया कि मामले की गहनता से जांच की जा रही है।
अगर आप ब्लॉगर हैं और ब्लॉग और वेबसाइट से पैसा कमाना चाहते हैं तो इंटरनेट पर कमाई के कई तरीके मौजूद है। इन तरीकों को अपनाकर आप आराम से कुछ रूपल्ली से हजारों रुपए तक की कमाई कर सकते हैं। लेकिन निःसन्देह विभिन्न देशों के ब्लॉगर के बीच कमाई को सबसे लोकप्रिय तरीका है गूगल एडसेंस। लेकिन अब तक गूगल द्वारा हिन्दी भाषा को एडसेंस पर समर्थन ना देने से हिन्दी पट्टी के ब्लॉगर अपने इंटरनेट का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे थे जोकि लेखन के आगे के चरण में उदासीनता का सबसे बड़ा कारण बना हुआ था।
16 मई 2014 की तारीख के बाद क्या भारतीय मीडिया पूंजी और खौफ तले दफ्न हो गया। यह सवाल सीधा है लेकिन इसका जवाब किश्तों में है। मसलन कांग्रेस की एकाकी सत्ता के तीस बरस बाद जैसे ही नरेन्द्र मोदी की एकाकी सत्ता जनादेश से निकली वैसे ही मीडिया हतप्रभ हो गया। क्योंकि तीस बरस के दौर में दिल्ली में सडा गला लोकतंत्र था। जो वोट पाने के बाद सत्ता में बने रहने के लिये बिना रीढ़ के होने और दिखने को ही सफल करार देता था। इस लोकतंत्र ने किसी को आरक्षण की सुविधा दिया। इस लोकतंत्र ने किसी में हिन्दुत्व का राग जगाया । इस लोकतंत्र में कोई तबका सत्ता का पसंदीदा हो गया तो किसी ने पसंदीदा तबके की आजादी पर ही सवालिया निशान लगाया। इसी लोकतंत्र ने कारपोरेट को लूट के हर हथियार दे दिये। इसी लोकतंत्र ने मीडिया को भी दलाल बना दिया। पूंजी और मुनाफा इसी लोकतंत्र की सबसे पसंदीदा तालिम हो गयी। इसी लोकतंत्र में पीने के पानी से लेकर पढ़ाई और इलाज से लेकर नौकरी तक से जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया। इसी लोकतंत्र ने नागरिकों को नागरिक से उपभोक्ता बने तबके के सामने गुलाम बना दिया।
मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिलता हूं जिन्हें लगता है कि अगर वे धूम्रपान नहीं कर रहे हैं, बीड़ी-सिगरेट को छू नहीं रहे हैं तो एक पुण्य का काम कर रहे हैं…फिर वे उसी वक्त यह कह देते हैं कि बस थोड़ा गुटखा, तंबाकू-चूना मुंह में रख लेते हैं…और उसे भी थूक देते हैं, अंदर नहीं लेते। यही सब से बड़ी भ्रांति है तंबाकू-गुटखा चबाने वालों में.. लेकिन वास्तविकता यह है कि तंबाकू किसी भी रूप में कहर तो बरपाएगा ही। जो तंबाकू-गुटखा लोग मुंह में होठों या गाल के अंदर दबा कर रख लेते हैं और धीरे धीरे चूसते रहते हैं, इस माध्यम से भी तंबाकू में मौजूद निकोटीन एवं अन्य हानिकारक तत्व मुंह की झिल्ली के रास्ते (through oral mucous membrane)शरीर में निरंतर प्रवेश करते ही रहते हैं।