ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून वहां के ट्यूब ट्रेन में सफर कर रहे हैं, लेकिन उनको बैठने के लिए जगह नहीं मिली है। उनके किसी सुरक्षाकर्मी की भी हिम्मत नहीं है कि ट्रेन में सफर कर रहे नागरिकों को डांट-डपट कर या डंडा मारकर उठा दे कि पीएम को बैठने के लिए जगह दे दो। ना ही कोई नागरिक अपने पीएम को इतनी अहमियत दे रहा है कि खुद उठकर उन्हें बैठने के लिए सीट दे दे। उनके लिए तो पीएम उनका सेवक है, वहां के… किसी भी आम नागरिक की तरह। जो पहले आएगा, उसे सीट मिलेगी, वो बैठ जाएगा। बस। एकदम सिम्पल।
अब दिल पर हाथ रखकर पूछिए। क्या भारत में आप ऐसी स्थिति की कल्पना कर सकते हैं??!! यहां पीएम-सीएम तो छोड़िए, लोकल विधायक-सांसद-पार्षद भी अगर ट्रेन में चढ़ जाएं तो उनके सुरक्षाकर्मी और चाटुकार ट्रेन में बैठी पब्लिक को ऐसे धकियाएगी कि पूछिए मत। गाली भी देगी और लाठी-डंडे से पीटकर सीट से उठा भी देगी।
नेताजी की बात भी छोड़िए। रेलवे या किसी विभाग का कोई मामूली अफसर भी अगर जा रहा हो तो उनके गुर्गे पब्लिक को खदेड़ देगी। साहब जा रहे हैं, तो आराम से जाएंगे। रेलवे सहित ये पूरा देश उनकी बपौती है। आप कौन हैं??!! आम जनता। चलो दूर हटो। वोट दो और पतली गली से निकल लो। इस देश में तुम्हारी यही औकात है।
विडंबना देखिए। हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने देश में ब्रिटेन की संसदीय व्यवस्था को ही अपनाया है और सब कुछ लिख डाला है यानी हमारा संविधान लिखित है। लेकिन ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है। वहां सबकुछ परंपरा के अनुसार बरसों से चलता आ रहा है और बड़े ही गजब ढंग से नॉर्मल चल रहा है। और हमारे यहां!! यहां तो लिखित संविधान पर भी विवाद हो जाता है और फिर सुप्रीम कोर्ट उसकी व्याख्या करता है कि इस लाइन और शब्द को लिखने के पीछे हमारे संविधान निर्माताओं की क्या मंशा थी।
जिस दिन हमारे देश के पीएम और राष्ट्रपति भी आम नागरिकों के साथ ऐसे ही आम आदमी बनकर सफर करने लगेंगे, जान जाइएगा कि हमारा देश आजाद हो गया है और यहां 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ संविधान वाकई में अमल में आ गया है।
पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से साभार।