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सुख-दुख

मत भागिए पत्रकारिता के पीछे!

दिनेश पाठक-

पत्रकारिता, विज्ञापन, कारपोरेट कम्युनिकेशन या कुछ और? हाल ही में पटना से एनसीआर में आकर काम करने वाले नौजवान राकेश से फोन पर बातचीत हुई। उन्होंने किसी सोशल मीडिया कम्पनी के साथ कंटेंट राइटिंग की जॉब शुरू की है। कुछ शॉर्ट्स के कंटेंट, कुछ रूटीन की पोस्ट आदि लिखने की जिम्मेदारी उन्हें कम्पनी ने दे रखी है। पैसे भी हर महीने समय से आ रहे हैं। करीब साल भर से ऊपर हो गया काम करते हुए लेकिन राकेश का दिल अब नहीं लग रहा है।

इससे पहले पत्रकारिता की पढ़ाई उन्होंने कर रखी है। एक-दो छोटे मीडिया घरानों के साथ पटना में काम भी किया है। वहाँ पैसे पाने में संघर्ष ज्यादा करना पड़ता था। कई बार नहीं भी मिलते। तब एनसीआर का रुख किया। अब इतने पैसे तो मिल रहे हैं कि राकेश को घर से अपने खर्च के लिए मदद की दरकार नहीं है। दो-चार हजार महीने बच जाते हैं।

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अब राकेश को पत्रकारिता में मौका चाहिए। मैंने उनसे कहा कि वे जो काम कर रहे हैं, उसे ही करते रहें। क्योंकि उसके बदले पैसे मिल रहे हैं लेकिन इस नौजवान को लगता है कि वह पत्रकारिता नहीं कर रहा है। उसे अभी भी पत्रकारिता से क्रांति की उम्मीद है। मैंने सुझाव दिया कि वे जो भी काम कर रहे हैं, वह पत्रकारिता का ही हिस्सा है। यहाँ भी कंटेंट राइटिंग करना है, वहाँ भी वही करना है। डिजिटल में काम करते हुए क्लिक, व्यूज की सुरंग में घुसकर जीवन की बैंड बज सकती है। जहाँ से पैसे मिल रहे हैं, वहीं कंटेंट में क्रांति करते रहें। एक भी वीडियो वायरल हुई तो उत्साह का नया संचार होगा। वीडियो में संभावनाएं भी ज्यादा हैं। छोटे वीडियोज को लेकर क्रिएटिविटी भी दिखा सकते हैं। पर, राकेश को तो पत्रकारिता का धुन सवार है।

वे हर हाल में किसी बड़े मीडिया संस्थान से जुड़कर कुछ बड़ा करने की ठान बैठे हैं। प्रभु उनकी मदद करें। मैं यही विनती कर सकता हूँ।

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पत्रकारिता की पढ़ाई या करियर की जद्दोजहद में जुटे युवा साथियों से मेरी अपील है कि वे खुद को सोशल मीडिया, कारपोरेट कम्युनिकेशन, एडवरटाइजिंग कंटेंट आदि पर काम करने के बारे में भी सोचें। पत्रकारिता से ज्यादा पैसा भी मिलेगा और कितनी भी मेहनत करेंगे तो भी अपने लिए कुछ समय मिलेगा। मत भागिए, पत्रकारिता के पीछे। ध्यान दें कि सम्मानजनक रूप से जो पैसा मिलता है, वह बहुत सुकून देता है। 20-20 साल पुराने मुख्य धारा में काम करने वाले पत्रकार आज भी 50 हजार रुपये पाने को तड़प रहे हैं। जबकि सोशल मीडिया, कारपोरेट कम्युनिकेशन, विज्ञापन आदि क्षेत्रों में काम करने वाले अनेक साथियों को वित्तीय रूप से काफी बेहतर पाता हूँ।

जीवन की सच्चाई को समझने का समय है। मैं पत्रकारिता को बुरा नहीं कह रहा हूँ लेकिन जिस क्रांति का सपना लिए आप उसके पीछे घूम रहे हैं, परेशान हैं, वहां कुछ खास नहीं होने वाला है। मेरी बात कड़वी लगे तो दवा समझ पी लें। खराब लगे तो नाली में फेंक दें। पर, काम वही करें, जिसके बदले पैसे मिलें और भरपूर सम्मान भी।

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2 Comments

2 Comments

  1. dilip singh

    December 25, 2023 at 7:52 pm

    aapne 100 pratishat aaina dikhaya sir. prnaam

  2. Dinesh Rudraksha

    January 2, 2024 at 9:41 pm

    सत्य वचन आदरणीय.. यह पत्रकारिता की कड़वी सच्चाई है… मिशन और कमीशन का अंतर मैदानी हकीकत समझा देता है..आज भी कई साथी टारगेट का तनाव झेलते हुए देखे जा सकते हैं..।

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