‘डीबी पोस्ट’ की खबर पर ‘माखनलाल’ में बवाल, एक शिक्षक ने खोला अखबार के खिलाफ मोर्चा

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Sanjay Dwivedi : भोपाल का एक अंग्रेजी अखबार इन दिनों माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की छवि खराब कर रहा है। विगत 27 अगस्त, 2017 को उसने जो खबर छापी है उसे लेकर अखबार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। अज्ञान, दुर्भावना और साजिशन लिखी गयी खबरें कैसै आपको गिराती हैं, यह खबर उसका उदाहरण है। अखबार लिखता है विश्वविद्यालय में अल्पसंख्यकों के त्यौहारों पर अवकाश नहीं होगा क्योंकि यहां आरएसएस का एजेंडा चल रहा है।

किसी भी विश्वविद्यालय में अकादमिक कैलेंडर अकादमिक गतिविधियों तक सीमित होते हैं और वे हर छुट्टी का जिक्र नहीं करते। मप्र सरकार द्वारा घोषित सभी छुट्टियां विश्वविद्यालय में बाध्यकारी हैं। मप्र जनसंपर्क के कैलेण्डर में इसका जिक्र होता है। विश्वविद्यालय द्वारा छापे गए कैलेंडर में भी सभी छुटिट्यों का जिक्र है। किंतु बिना तथ्यों को जांचे खबर लिखने की हड़बड़ी में संवाददाता महोदय अकादमिक कैलेंडर को अंतिम मानकर खबर लिख बैठे। विश्वविद्यालय के किसी जिम्मेदार अधिकारी से बात करने की जहमत नहीं उठाई, ऐसे में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और पूर्व विद्यार्थियों को लगता है कि अखबार का उद्देश्य तथ्यपूर्ण पत्रकारिता के बजाए विश्वविद्यालय की छवि खराब कर अपनी एक खबर बनाने तक सीमित है। ऐसी पत्रकारिता ही पूरी मीडिया को कलंकित करती है।

सरकारी संस्थाओं पर निशाना, कारपोरेट की मिजाजपुर्सी :

मुझे याद नहीं आता कि कारपोरेट मीडिया कभी भी किसी निजी विश्वविद्यालय के मामलों में ऐसी हरकत और उलजूलूल खबरें लिखने का पुरूषार्थ जुटा सके। मैंने आजतक इन अखबारों में निजी विश्वविद्यालयों, निजी अस्पतालों, निजी मोबाइल कंपनियों के खिलाफ खबर नहीं देखी। सरकारी विश्वविद्यालय, अस्पताल और संस्थाएं इनका आसान निशाना हैं। ताकि सरकारी संस्थाओं को बदनाम कर कारपोरेट की मिजाजपुर्सी की जा सके। लाखों रूपए की फीस लेकर पढ़ा रहे निजी विश्वविद्यालय इनके लिए स्वर्ग हैं, क्योंकि वे मोटे विज्ञापन से कारपोरेट मीडिया को खरीद चुके हैं। किंतु सस्ती फीस लेकर देश के गरीब और आखिरी आदमी को शिक्षा दे रहे संस्थान इनके निशाने पर हैं। देश में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय एक अकेला उदाहरण है जो बिना किसी सरकारी सहायता के अपने दम पर स्वावलंबन के साथ खड़ा है और विद्यार्थियों को सबसे कम फीस पर 28 प्रकार के विशेषज्ञता-कौशल आधारित कोर्स करवाता है।

सांप्रदायिक सद्भावना को चोट पहुंचाने की कोशिश :

इस खबर का दुखद पहलू यह है कि इसमें सांप्रदायिक सद् भावना को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की गयी है। विश्वविद्यालय में हर, जाति-धर्म के विद्यार्थी आते हैं और उससे समानता के आधार पर व्यवहार किया जाता है। ऐसी खबरों के माध्यम से हिंदू-मुसलमान जैसे विवाद पैदा करना संवाददाता और समाचार पत्र की सोच को दर्शाता है। अफसोस यह समाचार देश के एक प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान द्वारा प्रकाशित किया जाता है। जिसकी हिँदी और भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में बहुत यशस्वी योगदान है। ऐसे संस्थान में बैठे कुछ पत्रकार जिस तरह अपनी खुन्नस निकालने के लिए, एजेंडा आधारित पत्रकारिता कर रहे हैं वह दुखद है।

पत्रकार के अज्ञान पर दया आती है कि उन्हें यह भी नहीं पता कि एक सरकारी संस्थान तो राज्य द्वारा निर्धारित छुट्टियां रोक नहीं सकता बल्कि निजी संस्थाओं को चाहे वे ईसाई मिशनों द्वारा संचालित विद्यालय हों या आरएसएस के शिशु मंदिर सबको यह अवकाश देने होते हैं। किंतु माखनलाल विवि की छवि बिगाड़ने में पत्रकार महोदय इस स्तर तक चले जाएंगें, इस अंदेशा नहीं था। पत्रकारिता में आ रहे छात्र-छात्राओं के लिए सबकः

1. किसी खबर को पूरी तरह चेक करने, पुष्टि के बाद ही छापें…

2. सांप्रदायिक दुर्भावना को बढ़ाने वाली खबरों को कभी प्रकाशित न करें, तथ्यों को जांचें….

3. किसी संस्था की छवि को बिगाड़ने वाली रिपोर्टिंग से बचें…

4. किसी के बहकावे में आकर संबंधित संस्था का पक्ष लिए बिना समाचार न छापें…

5. जरूरी हो तो इस विषय के विशेषज्ञों से बात जरूर करें…

कृपया पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल की छवि को बिगाड़कर छात्र-छात्राओं के भविष्य से न खेलें। देश के सबसे गरीब इलाकों के सबसे गरीब विद्यार्थी इस संस्था में आते हैं। उनके भविष्य से न खेलें। विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र होने के नाते यह पोस्ट बहुत दुखी मन से लिख रहा हूं। मुझे एक पूर्व पत्रकार होने के नाते भी इस बात का दुख है कि पत्रकारिता का स्तर कहां जा रहा है। आखिर हम पत्रकारिता की प्रामणिकता और विश्वसनीयता को क्या यूं ही गंवाते रहेंगें।

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के शिक्षक संजय द्विवेदी की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…

Ankur Vijaivargiya संजय जी की बातों से पूर्णतया सहमत हूं। माखनलाल का एक पूर्व छात्र होने के नाते मुझे अपने विश्वविद्यालय पर गर्व है। कल इसी खबर के संदर्भ में एक छात्र ने पूछा था कि आखिर माखनलाल का नाम जानता कौन है। मैंने उसे जवाब दिया था कि नाम जानना छोड़िए अब तो हमारे छात्रों के कामों को भी बड़े संस्थान मानने लग गए हैं। पहले बैच से लेकर आखिर पासआउट बैच के कई विद्यार्थियों से मेरा निजी और पारिवारिक परिचय है। सभी अपने अपने संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर हैं। हाल ही में अहमदाबाद के एक बड़े कौलेज में था। वहां मुख्य अतिथियों में से दो माखनलाल के पूर्व छात्र थे। जब वहां के शिक्षकों को बताया कि मैं भी माखनलाल से हूं, तो उनका विश्वविद्यालय के प्रति सम्मान देखते बनता था। हम सब माखनलाल के साथ थे, हैं और रहेंगे।

Vinit Utpal अंकुर, जिसने आपसे पूछा कि माखनलाल को जानता कौन है, जरा उनसे पूछिये कि ‘पत्रकार’ शब्द कहाँ से आया और इस शब्द को इजाद किसने किया था.

Mohammad Irfan पीत पत्राकारिता। मेरा सवाल ये है कि उक्त पत्रकार को सही जानकारी लेनी थी। उसे किसी अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र से बात करनी थी, तब जाकर रिपोर्ट लिखता। वाकई में तथ्यहीन, उद्देश्यहीन, विवेकहीन, भावहीन जितने भी हीन हैं सबको जमाकर उक्त खबर छापी गई। विश्विद्यालय के शिक्षकों से मालूमात करनी थी। ऐसी बेहूदा ख़बरों से संस्थान की विश्वसनीयता कम होती है और छात्रों पर बुरा असर पड़ता है। कारवाई होनी चाहिए।

Siddharth Sarathe आश्चर्य की बात है इतने नामी गिरामी अखबार के दफ्तर में कोई भी एक बुद्धिजीवी नही था जो एक बार तथ्यों को जांच लेता या जांचने के आदेश दे देता, क्या इतने बड़े अखबार की खबरें सिर्फ कुतर्कों ओर बयानबाजियों पर ही आधारित हैं ? शर्मनाक ….दरअसल कई पत्रकार ओर अखबार सरकारी संस्थानों पर उंगली उठाकर ही खुद को निष्पक्ष साबित करने का एकमात्र विकल्प मानते हैं ।

Keshav Kumar मानहानि का मामला दर्ज करने के साथ ही अखबार के संपादक, प्रबंधक और स्वामी को सांस्थानिक तौर पर शिकायत लिखें. निजी तौर पर भी शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी, बोर्ड सदस्य, पूर्व छात्र, मौजूदा छात्र- छात्राएं और शुभचिंतक जन भी अखबार, राज्य और केंद्र सरकार की मशीनरी के अलावा भारतीय प्रेस परिषद को पत्र लिखें. हर मोर्चे पर जवाब जरूरी होता है.

Soni Yadav बिलकुल सर.. अगर मैं गलत नही हूँ तो हमारे सभी साथी जो मीडिया में कार्यरत है उन्हें भी ईद या क्रिसमस की छुट्टी नही मिलती, तो क्या वह भी आर एस एस की वजह से है? नही, क्यूंकि वह उस संस्था की आवश्यकता है| और रही mcu की तो भले यहां यह घोषित नहीं है, पर छुट्टी मिलती जरूर है| तो ठीक उसी तरह सर जी MCU एक संसथान है जिसकी अपनी बाध्यताएं और limitations है| कृपया इस बात को समझे और हर चीज़ को राजनीती से न जोड़े| और एक बात जो मैं MCU के सभी passout से कहना चाहती| कृपया इस संसथान के खिलाफ काम न करे, हो सकता ऐसा करने पर आपको निजी रूप से लाभ हो, पर वह इस संसथान की छवि को छाती पोह्चाएगी| जिसकी भापाई करने में सालों लग जायेंगे, और जिसका सीधा और साफ़ नुकसान आने वाले छात्रों को होगा|

Surender Paul निकृष्ट पत्रकारिता का उत्कृष्ट नमूना… पिछले कुछ दिनों से ये सुपारी पत्रकार MCU के विरुद्ध एक सोची समझी साजिश के तहत ऐसी आधारहीन मनगढ़ंत और घटिया पत्रकारिता कर रहे हैं… मेरा सुझाव है कि हमें MCU में एक स्थान चिन्हित करके इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण और गैर जिम्मेदार खबरों का चस्पा कर उस पर अपनी टिप्पणी लिखनी चाहिए… इससे हमारे विद्यार्थियों के लिए निकृष्ट पत्रकारिता के उदाहरण भी सामने होंगे और ये अखबार और इनके सुपारी पत्रकार भी बेनकाब होते रहेंगे…

Abhishek Dubey university is poore mamle par chup kyu hai. abhi tak koi bayan MCU ki taraf se nahi aaya hai. kuthiala ji ka number band hai…message kiya koi jawab nahi…registrar sharma ji phone rcv nahi karte hain…message karo rply nahi karte hain…MCU jao milte nahi hain. कोर्ट जाने का विकल्प खुला है। आप कोर्ट जाएं।

Surender Paul समाचार के मूल्यों (news values) में एक मूल्य समाचार का बिकाउपन (Salability) भी जुड़ गया है। इसलिए इन दिनों माखनलाल विश्वविद्यालय के नये परिसर में प्रस्तावित गौशाला का मुद्दा भी काफी छाया हुआ है… हालांकि परिसर में गौशाला निर्माण का निर्णय चार वर्ष पूर्व ही लिया गया था लेकिन उस समय यह मुद्दा बिकाऊ नहीं था, आजकल बिकाऊ है इसलिए बात-बात पर बिकने वाले कुछ मीडिया घराने और कुछ तथाकथित पत्रकार इस मुद्दे को भी काफी उछाल रहे हैं। और दूसरा बिकाऊ मूल्य है ‘सांप्रदायिकता’ यह समाचार उसी मूल्य को ध्यान में रखकर गढ़ा गया लगता है। यह तो पीत पत्रकारिता से भी निकृष्ट और घटिया स्तर की पत्रकारिता हुई। ऐसे ही गैर जिम्मेदाराना समाचारों से सांप्रदायिक तनाव फैलता है। अब इस पत्रकार को यह कौन समझाए कि अकादमिक कैलेंडर और छुट्टियों के कैलेंडर में बहुत अंतर होता है। धिक्कार है, लानत है, …. सुपारी पत्रकारिता करने वालों कुछ तो शर्म करो… आखिर तुम्हारी ऐसी घटिया पत्रकारिता के उदाहरण हम अपनी कक्षाओं में विद्यार्थियों को देने वाले हैं…

Pravin Dubey इसलिए बात-बात पर बिकने वाले कुछ मीडिया घराने और कुछ तथाकथित पत्रकार इस मुद्दे को भी काफी उछाल रहे हैं.. आपकी पृष्ठभूमि निकलवाता हूँ कि आप जीवन में कभी बिके या नहीं…किस संघ के नेता की अनुकम्पा से आपकी नियुक्ति हुई है ये भी पता करवाता हूँ…

Surender Paul ज़रूर मेरा बैकग्राउंड पता करो Pravin Dubey और यह भी पता करो कि संघ से मेरा क्या कनेक्शन है। और रही बात बिकने की तो सुरेन्द्र पॉल न तो बिकाऊ था, न बिकाऊ है और न ही कभी बिकने वाला लेकिन आपकी इस टिप्पणी से आपकी सोच ज़रूर सामने आई है…

Pravin Dubey आप Surender Paul सबको बिकाऊ…दलाल निरुपित कर रहे हैं…सोच तो आमने-सामने आकर भी ज़ाहिर कर सकता हूँ..आप अमर उजाला में राजेश रापरिया साहब के वक़्त थे क्या…? आपके ही शब्दों को यदि मानू तो क्या आपसे भी वहां दलाली कराई जाती थी..और जहां तक मेरा प्रश्न है, तो मैं बता दूँ कि उस यूनिवर्सिटी में जितने खैरख्वाह आपके होंगे, उनसे मेरे बारे में पता कर लेना…सब चोर हैं पत्रकारिता में..एक आप ही शरीफ़ पैदा हुए हैं

Surender Paul भाई साहब इतना बुरा मत मानिये और दिल पे मत लीजिए मैंने ‘सबको’ नहीं कहा बल्कि ‘कुछ’ पत्रकारों और मीडिया घरानों की बात की है। और सबसे महत्वपूर्ण बात Context की है किस संदर्भ में कहा है। मैं आपको नहीं जानता और न ही आपकी धमकी की तर्ज पर मुझे आपका बैकग्राउंड पता करने की चाहत है… और इस फालतू काम के लिए समय तो बिल्कुल भी नहीं है। यह धमकी पत्रकारों की एक सदाबहार धमकी है क्योंकि हर बात में नकारात्मकाक ढूंढते ढूंढते उन्हें हर जगह ऐसे लोगों की तलाश रहती है जिनका बैकग्राउंड खंगालकर वो कुछ लिखकर उन्हें बदनाम कर सकें। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि कृपया अनावश्यक बातों को तूल न दें। 1990 में बने माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में कई योग्य शिक्षक अपनी सेवाएं दे चुके हैं और दे रहे हैं चाहे उनका बैकग्राउंड या राजनीतिक विचारधारा कुछ भी रही हो और अभी भी ऐसे शिक्षक यहां कार्यरत हैं। मैं भी Mainstream media छोड़कर पिछले 12 वर्षों से यहां अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। MCU को लेकर काफी कुछ छपता रहता है जिस पर मैंने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन जिस समाचार को लेकर चर्चा हो रही है वह निकृष्ट और गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता का एक उदाहरण है। ऐसा समाचार देश के धार्मिक सौहार्द के लिए खतरा है। मैंने इस समाचार को लेकर ही अपनी प्रतिक्रिया दी है। मीडिया के लोग जब ऐसी हरकतें करते हैं तो मेरा भी दिल दुखता है और शायद आपको भी एक वरिष्ठ और जिम्मेदार पत्रकार के नाते चिंता तो अवश्य ही होती होगी क्योंकि हम सब एक ही बिरादरी के लोग हैं।

Sharad Jha कोई सही नहीं है Avinash सब गलत हैं, और मीडिया के बारे में कौन नहीं जानता कि बिना तड़का लगाये खबर नहीं छपती है। और हाँ मेरा विरोध कुव्यवस्था और भ्रष्टाचार से है मैं गौशाला का विरोधी नहीं हूँ,, पहले आप पत्रकारिता के लिये बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने पर कार्य कीजिए। नये परिसर को लेके जो हसीन सपना दिखया जा रहा है उसको पूरा कीजिये फिर गौशाला बनाइये या जो करिये। सपना मत दिखाइये की ऐसा होगा, वैसा होगा, भाई मैं हकीकत में जीने वाला इंसान हूँ, मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख कर नहीं जीता हूँ। और जिन लोगों को ये लगता है कि मैंने अपने पोस्ट से माखनलाल की बुराई किया हूँ। उनको बस इतना कहूंगा कि भाई मैं हकीकत लिखा था अब यहां की सच्चाई बुरी है तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, बुरा मैंने नहीं बनाया है। कुव्यवस्था अपने फैला रखी है, मेरे तरह बहुत बच्चे दूर से बहुत अरमान लेकर आते हैं यहां आकर नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली स्थिति हो जाती है। व्यथा तो निकलेगी ही। बहुत लोग हैं जो feel good में जीते हैं,उनकी जिंदगी उनको मुबारक हो।

Pravin Dubey आप जो भी हैं Surender Paul श्रीमान… मैं आपको नहीं जानता..अब तक मैं मौन था..माखनलाल यूनिवर्सिटी के आप पैरोकार हैं और लिख रहे हैं media has turned out to be one of the most corrupt institutions with absolutely no ethics or responsibility….इसका मतलब वो यूनिवर्सिटी भी दलाल और ब्लेकमेलर कैसे बने, इसकी तालीम दे रही है…मैं भी वही का स्टूडेंट हूँ 1995 बैच का…सिर्फ भाषण फेसबुक पर देना बहुत आसान बात है और किसी भी बयान या घटना को सबके ऊपर कृपया मत थोपिए और हाँ…ये सही है कि एक ख़ास विचारधारा की पोषक हो गई है माखनलाल यूनिवर्सिटी…..मुंह उठाकर कुछ भी बोलने से पहले उनके गिरेबान में भी झांकिए जिनकी आप वकालत कर रहे हैं..

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