Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

दैनिक जागरण बोला- ‘हरेंद्र हमारा कर्मचारी नहीं!’ हरेंद्र ने पेश किया कर्मचारी होने का सुबूत, देखें

कानपुर : दैनिक जागरण कानपुर में कर्मचारियों का उत्पीड़न किस हद तक किया जा रहा है, इसकी एक बानगी देखिए। कानपुर में प्रादेशिक डेस्क पर कार्यरत हरेंद्र प्रताप सिंह की वकील सुमन तिवारी ने मानसिक, आर्थिक व शारीरिक उत्पीड़न का केस ठोकने से पहले जागरण कानपुर के संपादक जितेंद्र शुक्ला, आउटपुट हैड दिवाकर मिश्रा, प्रादेशिक प्रभारी यशांश त्रिपाठी सहित जागरण के प्रधान संपादक संजय गुप्ता को नोटिस भेजा था।

जागरण की ओर से दिए जवाब में बताया गया है कि हरेन्द्र दैनिक जागरण का कर्मचारी ही नहीं है। वह संवाद सहयोगी के रूप में संस्थान से जुड़े हैं, जिसका मानदेय उनको 13600 प्रति माह उनको समाचार देने के एवज में दिया जाता रहा है।

यह पूरा सत्य नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर हरेन्द्र दैनिक जागरण के कर्मचारी नहीं तो उनको बीते वर्ष औरैया जिला प्रभारी पद पर क्यों ट्रांसफर किया गया? ट्रांसफर लैटर में एचआर मैनेजर अभिषेक तिवारी ने साफ-साफ लिखा है कि दैनिक जागरण प्रबंधन ने आपको औरैया जिले का जिला प्रभारी बनाने का फैसला लिया है। आप वहां तत्काल ज्वाइन कीजिए व इसकी सूचना तुरंत एचआर डिपार्टमेंट (टाइम ऑफिस) को दीजिए। आपकी नियम व शर्तें अप्वाइंटमेंट लैटर के आधार पर रहेंगी।

अब अगर वो दैनिक जागरण का कर्मचारी नहीं है तो उसका तबादला जिला प्रभारी औरैया के पद पर क्यों किया गया। अगर वो कर्मचारी नहीं है तो किस अप्वाइंटमेंट लैटर का जिक्र एचआर मैनेजर ने ट्रांसफर लैटर में किया है। वह ट्रांसफर लैटर कहाँ है। अब तक हरेन्द्र को क्यों नहीं दिया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हरेंद्र से समाचार लेने के साथ उससे अखबार के एडिशन क्यों दिखवाया गया। एक तो डबल मेहनत कराई गई और मानदेय सिर्फ 13600 प्रति माह दिया। 13600 तो अभी तीन महीने पहले से मिला। इससे पहले 12800 मिलता था। वह भी हर महीने पूरा नहीं मिला।

नोटिस के जवाब से एक बात स्पष्ट है कि जो जानकारी जागरण ने दी है वह पूरी तरह सत्य नहीं है। रिपोर्टिंग व डेस्क दोनों पर रोजाना 15-16 घंटे काम कराया गया। क्या यह मानसिक, शारीरिक व आर्थिक उत्पीड़न नहीं है। मान लेते हैं कि वह सिर्फ संवाद सहयोगी ही है तो वह उत्पीड़न के साथ मजीठिया का केस भी लड़ सकता है, क्योंकि अब तो जागरण लिखित रूप से अपने लैटर पैड पर दे चुका है कि वह संवाद सहयोगी है। वह सिर्फ समाचार देता था। जबकि जागरण एक ओर ट्रांसफर लैटर में यह भी स्वीकार कर रहा है कि उसका अप्वाइंटमेंट भी हुआ है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अप्वाइंटमेंट लैटर के आधार पर नियम शर्तें रहेंगी। यह तो सीधे-सीधे चारसौबीसी है। इस पर चारसौबीसी का केस भी बनता है। अगर वह जागरण का कर्मचारी है तो उसको पीएफ, कैजुअल लीव व स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। वो क्यों नहीं मिलीं। अगर वह सिर्फ संवाद सहयोगी है तो समाचार संकलन के साथ उससे लगातार ढाई वर्ष से कानपुर ऑफिस के अंदर संस्करण क्यों दिखवाया गया। यदि उसने संस्करण नहीं देखा तो संस्करण में गलतियों के लिए उसे रेडस्टार के रूप में सजा क्यों दी गई।

हरेन्द्र की नियुक्ति सेल कंपनी जेकेआर में की गई। उसका एम्प्लाई कोड जेकेआर 591 है और समाचार संकलन के साथ बाकायदा संस्करण भी निकलवाया गया। इस तरह तो सेल कंपनी और धोखाधड़ी का मामला भी बनता है। वह सुबह 10 बजे खबर संकलन को निकल जाता था। शाम को 4-5 बजे ऑफिस पहुँचने पर उपस्थिति फिंगर प्रिंट मशीन से दर्ज कराता था। कुछ समय बाद माउथ स्कैनर मशीन लगने के बाद उससे उपस्थिति दर्ज कराने लगा। मतलब साफ है काम 14-15 घंटे और उपस्थिति दिखाई गई रोजाना सिर्फ 6 से 9 घंटे। यदि वह जागरण में नहीं तो ऐसा क्यों किया गया। क्या यह मानसिक, शारीरिक, आर्थिक उत्पीड़न व धोखाधड़ी नहीं है। आइए आपको दिखाते हैं जागरण द्वारा भेजे नोटिस के जवाब, ट्रांसफर लैटर में लिखे उसके कर्मचारी होने के तथ्य व संस्करण निकालने से संबंधित साक्ष्य।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उससे बीमार होने पर भी काम कराया गया। टायफाइड होने के कारण जब वह ज्यादा दिन काम नहीं कर पाया और मेल से इसकी सूचना देकर छुट्टी चला गया। ठीक होने पर वापस आया तो यशांश त्रिपाठी, दिवाकर मिश्रा, संपादक जितेंद्र शुक्ला व जीएम अवधेश शर्मा ने काम न कराने की बात कह उसको बैठा दिया। आज तक न तो काम पर वापस लिया, न इस दौरान वेतन या मानदेय दिया। न अब तक नौकरी से निकालने का लिखित आदेश दिया। न ही तीन माह का अतिरिक्त वेतन दिया। यह उत्पीड़न नहीं तो क्या है। यह घोर उत्पीड़न है।

जब किसी कर्मचारी से रोजाना बेहिसाब काम लिया जाएगा तो वह आएदिन बीमार नहीं होगा तो क्या पहलवान बनेगा। इसके बाद भी बीमारी में लिए अवकाश के दौरान का वेतन काट लिया जाता था। यदि रोजाना 14-15 घंटे काम कराया जाएगा औऱ उपस्थित सिर्फ 6-10 घंटा दिखाई जाएगी। न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाएगा। ऐसे में यदि बीमार होकर उसे कुछ हो गया तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। इसका मतलब साफ है दैनिक जागरण संस्थान व उसके अधिकारियों ने जानबूझकर ऐसा किया है, ताकि अधिक कार्य की वजह से कुछ अनहोनी हो जाए उसके साथ। यह तो एक तरह से उत्पीड़न व किसी को मृत्यु शैया पर पहुँचाने की सोची समझी चाल है।

उस पर बीमारी के दिनों का वेतन काटकर उसे और अधिक ममसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। यह घोर उत्पीड़न, 420सी, धोखाधड़ी व किसी की हत्या के प्रयास के बराबर है। इससे बचने को जो दैनिक जागरण ट्रांसफर लैटर में उसे अपना कर्मचारी स्वीकार कर रहा है। अब वही संस्थान उसे अपना कर्मचारी मानने से इनकार कर सिर्फ संवाद सहयोगी मान रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पूरे प्रकरण को समझने के लिए इन्हें भी पढ़ें-

मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने पर दैनिक जागरण के पत्रकार ने संपादकों-मालिकों को भेजा लीगल नोटिस

भड़ास को दैनिक जागरण के अंदर की खबरें कौन भेजता है?

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement