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सियासत

तकनीकी तौर पर ईवीएम हैक किया जा सकता है, इसमें कोई शक नहीं!

ईवीएम का मामला मानहानि के दावों से नहीं निपटेगा, ना खिलाफ बोलने वालों का मुंह बंद करने से

तकनीकी तौर पर ईवीएम हैक किया जा सकता है इसमें कोई शक नहीं है। ईवीएम के पक्ष में यह तर्क सही है कि उसमें कोई बेतार उपकरण नहीं है और उपकरण सील्ड व सुरक्षित रहता है। इसलिए छेड़छाड़ संभव नहीं है। इसके बावजूद यह सही है कि ईवीएम अधिकारियों के घर पर, होटल में अधिकारियों के साथ मिली हैं। जहां रखा जाना था वहां कई घंटे देर से पहुंची हैं। और जहां रखा गया उस जगह के सीसीटीवी कैमरे बंद होने, बिजली जाने आदि जैसे मामले हुए हैं। यह सब मिलीभगत कर छेडछाड़ का शक को पुख्ता करते हैं। तकनीकी तौर पर यह संभव है कि संबंधित लोगों से मिलीभगत कर ईवीएम में उपकरण लगा दिए जाएं, बदलाव कर दिया जाए और गणना से ठीक पहले मशीन खोले बगैर नतीजे बदल लिए जाएं। आज जो तकनीक उपलब्ध हैं उनमें कुछ भी संभव है। पुरानी सील और ताले सब बेमतलब हैं। दूसरी तरफ, चुनाव आयोग सुरक्षित और सील्ड होने के अलावा कोई ठोस तर्क नहीं देता है। आज भी वह कानूनी कार्रवाई की बात कर रहा है जबकि आवश्यकता ईवीएम की विश्वसनीयता बनाने की है।

जहां तक, चुनाव आयोग की चुनौती का सवाल है, इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि आयोग मशीन को खोलने की इजाजत नहीं देता है। उसका कहना है कि मशीनें जैसी हैं उन्हें हैक नहीं किया जा सकता है और सुरक्षित व सील्ड रहती हैं इसलिए उन्हें खोलकर छेड़ना संभव नहीं है। वह यह नहीं मानता कि मिलीभगत से यह संभव है। चुनाव आयोग ने 2009 में मशीन हैक करने की चुनौती दी थी। तब हरि के प्रसाद ने यह साबित करने की कोशिश की थी कि ईवीएम टैम्पर प्रूफ नहीं हैं और 2017 में चुनाव आयोग की कथित खुली चुनौती पर कहा था कि गलत है। हालांकि, 2017 में उन्होंने चुनौती स्वीकार नहीं की। क्योंकि 2010 में वे पर्याप्त परेशान हो लिए थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और वे लगभग बर्बाद हो गए थे। उन्होंने कहा वीवीपीएटी के बिना ईवीएम सुरक्षित नहीं है। इसलिए पक्का सबूत होना चाहिए जिससे वोट की पुष्टि की जा सके। आज कांग्रेस की प्रतिक्रिया यही रही है कि 2019 के चुनाव के लिहाज से समय कम है। इसलिए वह पुराने तरीके से चुनाव कराने की मांग नहीं करेगी लेकिन वीवीपीएटी की पर्चिय़ों का मिलान सिर्फ दो प्रतिशत मामलों में क्यों?

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भाजपा का तर्क यह रहा कि ईवीएम से चुनाव होते रहे हैं और नतीजे बदले हुए आते हैं इसलिए मशीन ठीक है। हालांकि, इससे यह नहीं साबित होता है कि छेड़छाड़ नहीं हो सकती है। दूसरी बात, मशीन से छेड़छाड़ हो सकती है इसका मतलब यह नहीं है कि छेड़छाड़ करने वाला हमेशा किसी को जीताने के लिए ही ऐसा करेगा और वह हमेशा एक ही पार्टी का होगा या किसी एक उम्मीदवार का नहीं होगा। अगर मशीन में छेड़छाड़ से जनादेश सही नहीं आता है तो यह पर्याप्त है कि इसका उपयोग नहीं किया जाए और इसीलिए इसका उपयोग कई देशों में नहीं किया जाता है। पर ईवीएम के समर्थक कहते हैं कि पुरानी व्यवस्था में भी तो गड़बड़ी होती थी। मेरा कहना है कि ईवीएम गड़बड़ है इसे हर कोई साबित नहीं कर सकता है और जरूरी नहीं है कि ईवीएम जिसकी सुरक्षा में हो उसे पता हो कि मशीन से छेड़छाड़ की गई है। ऐसे में वह सील दिखाएगा, जांचने देगा नहीं और जांच हर कोई नहीं कर सकता है। जबकि पुरानी व्यवस्था में गड़बड़ी का पता लगना आसान है।

जहां तक ईवीएम के दोषमुक्त होने की बात है, इसपर राज्यसभा सदस्य और जनता पार्टी (जिसका भाजपा में विलय हो गया है) के प्रेसिडेंट सुब्रमण्यम स्वामी की किताब है, “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स : अनकांस्टीट्यूशनल एंड टैम्परेबल” (असंवैधानिक और छेड़छाड़ योग्य)। इसके मुताबिक ईवीएम जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और इटली समेत कई देशों में पहले से प्रतिबंधित है और ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए, दुनिया भर में ईवीएम को लेकर आत्मविश्वास की कमी बढ़ रही है। भारत को एक ऐसी नाकाम प्रणाली के साथ क्यों रहना चाहिए जिसे दुनिया भर में त्याग दिया गया है। एक और पुस्तक भाजपा नेता, जीवीएल नरसिम्हा राव की है, “डेमोक्रेसी ऐट रिस्क! कैन वी ट्रस्ट आवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स?” (लोकतंत्र खतरे में! क्या हम अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा कर सकते हैं?) इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा है – चुनाव आयोग द्वारा भारत के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की अक्षतता को आश्वस्त करने में नाकामी का चौंकाने वाला खुलासा। दोनों पुस्तकें 2010 में आई थीं।

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आज लंदन में भारतीय पत्रकारों द्वारा हैकिंग प्रदर्शन का आयोजन किया गया। हालांकि, एक्सपर्ट लंदन नहीं पहुंच सके, इसलिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर ब्रीफिंग दी गई। यह ईवेंट यूरोप में इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन की तरफ से किया गया। इस कार्यक्रम में भारतीय मूल के एक अमेरिकी साइबर एक्सपर्ट सैयद शूजा को बुलाया गया था। उन्होंने ईवीएम हैकिंग को लेकर कई बड़े दावे किए। इनमें 2014 चुनाव में धांधली का दावा शामिल है। भारतीय चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनावों में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम हैकप्रूफ है और लंदन में हैकथॉन आयोजित करवाकर आयोग की छवि भूमिल करने की कोशिश की गई है। इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए राय ली जा रही है। आयोग ने फिर से दोहराया है कि भारतीय ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है। लेकिन आज लगाए गए आरोप तथा पेश किए गए तथ्य ऐसे नहीं है कि इतने भर से खारिज कर दिए जाएं। यही नहीं, चुनाव नतीजे पक्ष में करने के लिए सभी ईवीएम को सेट करना जरूरी नहीं है। इसलिए भी ईवीएम विश्वसनीय नहीं है। कुछ मशीनों के ठीक होने पर भी चुनाव नतीजे बदल सकते हैं।

दूसरी ओर, तकनीकी एक्सपर्ट ने दावा किया कि हाल में हुए राज्यों के चुनाव उन्होंने ईवीएम हैकिंग को रोका था (इसलिए कांग्रेस जीत गई या भाजपा हार गई)। शूजा की टीम की हत्त्या कर दी गई और उन्हें भी गोली लगी और वो घायल भी हुए। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की दिल्ली में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। दावा किया गया कि यह ‘हत्या’ थी। और उनकी ही पार्टी ने ऐसा किया। भाजपा में यह कोई नया नहीं है। हरेन पंड्या की हत्या पर भाजपा नेताओं की चुप्पी चौंकाने वाली है। यह भी दावा किया गया कि ईवीएम हैकिंग रोकने के लिए उन्होंने ( मुंडे ने) दिल्ली चुनाव में काम किया वर्ना भाजपा चुनाव जीतती।

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शूजा ने दावा किया कि गौरी लंकेश इस बारे में खबर करने वाली थीं लेकिन उनकी हत्या कर दी गई। उन्होंने कहा कि गोपीनाथ मुंडे को ईवीएम हैकिंग के बारे में पता था और इस कारण उनकी हत्या हुई है। सैयद शूजा कौन हैं और उनके दावों में कितनी सच्चाई है इसके बारे में फिलहाल कुछ साफ नहीं है। वो दावा कर रहे हैं कि ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) में काम कर चुके हैं और हम जानते हैं कि यह भारतीय ईवीएम इस कंपनी ने भी बनाए हैं। तकनीकी एक्सपर्ट ने दावा किया कि उनकी टीम के कई लोगों को मार दिया गया है और उनपर भी हमला हो चुका है और उन्होंने अमेरिका में राजनीतिक शरण ली है। उन्होंने कहा कि उनके पास इससे संबंधित दस्तावेज हैं।

शूजा ने नया दावा कि रिलायंस कम्युनिकेशन ने भी इसमें मदद की है। और भाजपा सरकार की कृपा पाने वाली इस कंपनी ने ईवेम हैक करने में पार्टी की मदद करती है। आरोप है कि इसके लिए कंपनी लो फ्रीक्वेंसी सिग्नल देती है। सैयद शूजा का दावा है कि रिलायंस कम्युनिकेशन फ्रीक्वेंसी सिग्नल कम करती है। शूजा के मुताबिक भारत में यह सुविधा नौ जगहों पर है और यहां काम करने वाले कर्मचारियों को नहीं पता होता है कि उन्हें क्या करना है। वे समझते हैं कि डाटा एंटर कर रहे हैं पर असल में इससे ईवीएम टैंपर होता है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हो रहे इस खुलासे में इंडिया टुडे की तरफ से लवीना टंडन ने एक्सपर्ट से सवाल पूछे। जवाब में उन्होंने कहा है कि कई पार्टियों ने उनसे संपर्क किया है। बाद में पता चला कि ऐसी पार्टियों की संख्य़ा 12 हैं और इनमें लगभग सभी-जानी मानी पार्टी जैसे भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि उनकी एक टीम है जिसने इसबार राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में ईवीएम की धांधली को रोका। शूजा ने यह दावा भी किया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने ईवीएम हैकिंग नहीं रोकी होती तो आम आदमी पार्टी की जीत मुश्किल थी।

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इन आरोपों के मद्देनजर मानहानि का मामला दायर करने से बात नहीं बनेगी। चुनाव आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए काम करना चाहिए और दूसरी सरकारी एजेंसियों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे यह भरोसा हो गोपीनाथ मुंडे की मौत सड़क दुर्घटना में ही हुई थी और वह शूजा के आरोप के अनुसार हत्या नहीं थी। इसके लिए ईवीएम का पुर्जा बनाने वाली कंपनी से उनके संबंध के दावे की भी जांच करनी होगी। इसी तरह पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की जांच में यह जोड़ना होगा कि वे ईवीएम पर काम कर रही थीं कि नहीं? यह सब मुश्किल नहीं है और निराधार भी नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क :
[email protected]
1 Comment

1 Comment

  1. Loon karan Chhajer

    January 22, 2019 at 3:18 pm

    Is investigative journalism is India . This is burning issue .

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