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फर्जी ओपिनियन पोल के लिए माफी मांगेगा ‘आजतक’ और ‘लोकनीति-सीएसडीएस’?

संजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

बात दो हफ्ते पहले की है। बिहार चुनावों की घोषणा के बाद प्रथम चरण के चुनावों के ठीक पहले आजतक न्यूज चैनल ने लोकनीति-सीएसडीएस नाम की संस्था के साथ मिलकर एक ओपिनियन पोल कराया। जिसके काबिल डायरेक्टर ने बताया कि बिहार में इस बार मोदी-नीतीश की लहर चल रही है और एनडीए को 133-143 सीट मिलने के अनुमान हैं जबकि महागठबंधन को 88-98 सीटों पर ही संतोष करना होगा। बिहार के सवा सात करोड़ से ज्यादा वोटरों में से साढ़े तीन हजार वोटरों के बीच किए गए इस ओपिनियन पोल को बिहार की जनता के सामने बड़े तामझाम के साथ परोसने के लिए दिल्ली से दो चारण-भाट एंकरियों को पटना भेजा गया। जिन्होंने चहक-चहक कर एनडीए के लिए प्रशस्ति गान किया, मोदीजी को महान बताया, नीतीश बाबू को सुशासन का मसीहा बताया और तेजस्वी के अनुभव, पढ़ाई-लिखाई और उनके परिवार के अतीत के बहाने उनपर खूब तंज कसे। बाउंसर दागे। मतलब समझ ही गए होंगे आप।

पटना के बड़े सियासी मंच पर दांत निपोरते और नकली दलीलें गढ़ते लोकनीति-सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार (माफ कीजिएगा मेरा भी नाम वही है) ने जातीय समीकरण, सुशासन बाबू के कामकाज से लेकर वो हर दलील पेश की जिससे बिहार की जनता को भरोसा हो जाए कि बिहार में अगला पांच साल भी नीतीश बाबू का ही है। हालांकि लोकप्रियता के पैमाने पर उन्होंने बड़ी चालाकी की। तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार के करीब दिखा दिया। बिहार में मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद के सवाल पर 31 फीसदी लोगों ने नीतीश का नाम लिया तो इसके मुकाबले तेजस्वी को भी 27 फीसदी लोगों की पसंद बता दिया। ताकि ओपिनियन पोल की पोल-पट्टी खुलने के बाद एक नई दलील के साथ वो मीडिया में अपना चेहरा दिखा सके और सर्वे की अपनी दुकानदारी या दलाली को बेहिचक चलाते रह सकें।

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मजे की बात ये है कि आजतक और इंडिया टुडे न्यूज चैनल ने बिहार में चुनावों से पहले मोदीजी और नीतीश कुमार की हवा बनाने के लिए आनन-फानन में जिस लोकनीति-सीएसडीएस का सहारा लिया उनसे एक्जिट पोल नहीं कराया। एक्जिट पोल के लिए उन्होंने अपनी सर्वे एजेंसी को बदल दिया। आजतक और इंडिया टुडे ने एक्जिट पोल के लिए एक्सिस माई इंडिया का सहारा लिया। तीन दौर में हुए पूरे चुनाव में अपनी ताकत एनडीए के पक्ष में झोंकने के बाद भी जब बात बनती नजर नहीं आई तो एक्जिट पोल में बिहार का सच कबूल कर लिया। आजतक एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल ने महागठबंधन को 139-161 और मोदीजी के एनडीए को 69-91 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। यानी चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू प्रसाद यादव का 10 वीं पास या फेल 31 साल का बेटा तेजस्वी यादव 10 नवंबर के बाद बिहार का अगला मुख्यमंत्री होने जा रहा है। जरा सोचिए मोदी और गोदी मीडिया के कलेजे पर किस-किस तरह के सांप लोट रहे होंगे।

बहरहाल चिड़ियों की तरह चहकने और गिलहरियों की तरह फुदकने वाली आजतक की ‘काबिल’ एंकरियों ने एक्जिट पोल के नतीजों में अपने आकाओं का सूपड़ा साफ होता देख अपनी झेंप मिटाने के लिए बीजेपी और जेडीयू के नेताओं पर कुछ गोले भी दागे। ये वैसा ही अहसास दे रहा था मानो, ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोंच रहीं हों।’ अपने गाल पर खुद ही तड़ातड़ तमाचा जड़ रहीं हों। खुद को ही अपने पापों के लिए कोस रहीं हों। रुदाली बन मोदीजी की हार पर ‘विधवा विलाप’ कर रही हों। दिल से रोतीं इन ‘एंकरियों’ के आंखों से टीवी स्क्रीन पर बस आंसू नहीं गिरे लेकिन उनका तिलस्म जरूर टूट गया। राजनीतिक चेतना से लैस बिहार की जागरूक जनता की लामबंदी ने पूरे चुनावों में ना केवल एनडीए के सांप्रदायिक और भावनात्मक मुद्दों को खारिज किया बल्कि आजतक न्यूज चैनल को भी उसकी औकात बता दी। आजतक चैनल की तमाम कोशिशों के बावजूद महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव पढ़ाई, दवाई, कमाई, सिंचाई, महंगाई, सुनवाई और कार्रवाई के अपने एजेंडे से डिगे नहीं।

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आजतक-इंडिया टुडे के साथ मिलकर लोकनीति-सीएसडीएस ने ओपिनियन पोल में जो फर्जीवाड़ा किया था उसकी बानगी देखिए। बिहार के 7.29 करोड़ वोटर थे लेकिन इनका सैंपल साइज महज 3731 वोटरों का था। जो कुल मतदाताओं के 1 फीसदी के 100 वें हिस्से से भी कम था। इस छोटे से सैंपल में गांव के 3358 और शहर के 373 वोटरों से बात की गई। सर्वे में बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से महज 37 सीटों को ही शामिल किया गया। और तो और बिहार के 106526 बूथों में से महज 148 बूथों के आसपास जाकर वोटरों की राय ली गई। फिर इसे पूरे बिहार पर लागू कर बड़ी बेशर्मी के साथ एनडीए की जीत का ढिंढोरा पीटा गया। लिहाजा आजतक-लोकनीति-सीएसडीएस के ओपिनियन पोल पर ढेरों सवाल खड़े हो गए। जिसका खुलासा मैं भड़ास पर ही छपे अपने पहले के लेख में विस्तार से कर चुका हूं। बिहार की जनता ने अब इस ओपिनियन पोल को सिरे से खारिज कर दिया है।

दरअसल किसी जमाने मे सबसे तेज चैनल आजतक एक भरोसे का नाम था। खबरों का एक ऐसा ब्रांड था जिसपर लोग 100 फीसदी यकीन करते थे। अपने शुरूआती दिनों में आजतक में हिम्मत थी, साहस था। वो सच दिखाने से पीछे नहीं हटता था। लेकिन आज ये पिलपिला और थुलथुला सा नजर आता है। आजतक का एक दौर वो भी था जब एक आतंकवादी की फर्जी बाइट दिखाने पर एक रिपोर्टर की तुरंत नौकरी चली गई थी। नाम नहीं लूंगा, क्योंकि आज वो एक बड़े चैनल में बड़ा ही मशहूर एंकर है। बेचारे की जगहंसाई हो जाएगी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि टीवी टुडे मैनेजमेंट ने लोकनीति-सीएसडीएस के साथ मिलकर इस तरह के फर्जीवाड़े को अंजाम क्यों दिया? इसकी इजाजत किसने दी? और बाकियों की तो बात छोड़ दीजिए, राजदीप सरदेसाई जैसे काबिल पत्रकार ने भी इसका विरोध क्यूं नहीं किया? क्या आजतक की टोकरी में आज सारे के सारे आम सड़ चुके हैं।

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पत्रकार और दलाल के बीच फर्क होता है। ये फर्क पिछले दिनों काफी सिकुड़ गया है। फिर भी पत्रकार और दलाल के बीच की जो एक महीन सी दीवार या कह लीजिए पर्दा था, आजतक के ओपिनियन पोल ने उस पर्दे को भी गिराने का काम किया है। वैसे ये दौर कुकर्म कर माफी मांगने का है। और आजतक भी बिना किसी ना-नुकुर के साहस के साथ अपने कुकर्मों की माफी मांगने लगा है। तो मैं उम्मीद करूंगा कि अपने इस ताजा कुकर्म के लिए भी वो देश और खासकर बिहार की जनता से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगेगा। जैसा कि 2015 के बिहार चुनाव नतीजों के बाद एनडीटीवी के मालिक डॉ प्रणव रॉय ने मांगी थी। डॉ रॉय का कसूर ये था कि वो मतगणना के दिन एनडीए की सरकार दोपहर के एक बजे तक बनवा रहे थे जबकि चुनाव नतीजे इसके उलट आ रहे थे। ऐसे में अपने विज्ञापनों में पूरी दुनिया की आंखें खोलने का दावा करने वाली संस्था टीवी टुडे नेटवर्क यानी आजतक और इंडिया टुडे न्यूज चैनल की आंखें खुली हैं या बंद, इसका पता तभी चल पाएगा जब वो माफी के सवाल पर अपनी चुप्पी तोड़ेंगे।


लेखक परिचय: संजय कुमार बीते 30 साल से कई अखबार, पत्र-पत्रिकाओं और टीवी न्यूज चैनल से जुड़े रहे हैं। फिलहाल स्वराज एक्सप्रेस न्यूज चैनल के कार्यकारी संपादक हैं।

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