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इजराइल के कालमनिस्ट गिडीयन लेवी के साथ करन थापर ये साक्षात्कार सुनने लायक है

Ramji Tiwari-

इजराइल के महत्वपूर्ण समाचार पत्र ‘हेरात्ज’ के कालमनिस्ट ‘गिडीयन लेवी’ के साथ करन थापर का साक्षात्कार सुन रहा था। वे बता रहे थे कि इजराइल को गाजा में अपना सामूहिक दण्ड वाला अभियान तुरन्त रोक देना चाहिए। क्योंकि इससे कोई भी उद्देश्य पूरा नही होने वाला है। इसके बजाय सिर्फ आतंकी संगठनों पर कार्यवायी करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने इजराइल और फिलिस्तीन के सह अस्तित्व और अरब- इजराइल के बेहतर रिश्तों की वकालत भी उस साक्षात्कार मे किया है।

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ऐसे समय जब इजरायल मे बदले की भावना सर्वत्र उफान मार रही हो, उस समय उनका यह प्रस्ताव चर्चा और आलोचना दोनों के केंद्र में है।

बहरहाल मुझे उनका साक्षात्कार सुनते हुए फिलिस्तीनी कवि “ताहा मुहम्मद अली” की यह कविता याद आ रही है, जिसका अनुवाद स्वर्गीय साथी Manoj Patel ने किया था। आप भी पढ़िये। और हाँ, गिडीयन लेवी के साक्षात्कार का लिंक दे रहा हूँ। उस जरूर सुना जाना चाहिए।

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बदला …..

कभी-कभी कामना करता हूँ
कि किसी द्वंद्व युद्ध में मिल पाता मैं
उस शख्स से जिसने मारा था मेरे पिता को
और बर्बाद कर दिया था घर हमारा
मुझे निर्वासित करते हुए
एक संकरे से देश में
अगर वह मार देता है मुझे
तो मुझे चैन मिलेगा आखिरकार
और अगर तैयार हुआ मैं
तो बदला ले लूँगा अपना |
किन्तु मेरे प्रतिद्वंद्वी के नजर आने पर
यदि यह पता चला
कि उसकी माँ है
उसका इन्तजार करती हुई
या एक पिता
जो अपना दाहिना हाथ
रख लेते हैं अपने सीने पर दिल की जगह से ऊपर
मुलाकात के तयशुदा वक्त से
आधे घंटे की देरी पर भी –
तो मैं उसे नहीं मारूंगा
भले ही मौक़ा रहे मेरे पास |
इसी तरह …. मैं
तब भी क़त्ल नहीं करूंगा उसका
यदि समय रहते पता चल गया
कि उसका एक भाई है और बहनें
जो प्रेम करते हैं उससे और हमेशा
उसे देखने की हसरत रहती है उनके दिल में
या एक बीबी है उसकी
उसका स्वागत करने के लिए
और बच्चे, जो सह नहीं सकते उसकी जुदाई
और जिन्हें रोमांचित कर देते हैं उसके तोहफे …
या फिर, उसके यार-दोस्त हैं
उसके परिचित पडोसी
कैदखाने या अस्पताल के कमरे के उसके साथी
या स्कूल के उसके सहपाठी
उसे पूछने वाले
या सम्मान देने वाले
मगर यदि
कोई न निकला उसके आगे-पीछे –
पेड़ से कटी किसी डाली की तरह –
बिना माँ-बाप के
न भाई, न बहन
बिना बीबी-बच्चों के
किसी रिश्तेदार, पड़ोसी या दोस्त
संगी-सहकर्मी के बिना,
तो उसके कष्ट में कोई इजाफ़ा नहीं करूँगा
कुछ नहीं जोडूंगा उसके अकेलेपन में
न तो मृत्यु का संताप
न ही गुजर जाने का गम
बल्कि संयत रहूँगा
उसे नजरअंदाज करते हुए
जब उसकी बगल से गुजरूँगा सड़क पर —
क्योंकि समझा लिया है मैंने खुद को
कि उसकी तरफ ध्यान न देना
एक तरह का बदला ही है अपने आप से …. |

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ताहा मोहम्मद अली ( फिलस्तीनी कवि) ।
अनुवाद – मनोज पटेल ।

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