राजू मिश्र-
‘गुलाबो सिताबो’ में बालों में मेहंदी लगवाते हुए मंद-मंद मुस्काती एक बुजुर्ग औरत की आवाज गूंजती है, ‘अरे बल्ब न चोरी हुई, निगोड़ी जायदाद चोरी हो गई।’ शाइस्तगी से लबरेज यह आवाज थी फर्रुख जाफर यानी फातिमा बेगम उर्फ फत्तो की।
विशुद्ध लखनवी पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म ‘गुलाबो सिताबो’ में उनकी आवाज मिर्जा यानी अमिताभ बच्चन पर फब्ती कसते हुए ही हमेशा गूंजी। यद्यपि फिल्म में फर्रुख की भूमिका सीमित थी, लेकिन जब भी वे नजर आईं, पूरे रौब के साथ। शुक्रवार को लखनऊ में फर्रुख ने दुनिया को अलविदा की दिया। ब्रेन स्ट्रोक पडऩे के बाद से वे अस्पताल में भर्ती थीं।
फर्रुख का जन्म 1933 में हुआ था और वे 88 साल की थीं। वे लखनऊ आकाशवाणी में विविध भारती की पहली उद्घोषिका रहीं। आकाशवाणी की उर्दू सेवा की वे संस्थापक सदस्योंं में से एक थीं। फर्रुख जाफर ने गुलाबो-सिताबो के अलावा उमरावजान, स्वदेश, सुल्तान, सीक्रेट सुपरस्टार और पीपली लाइव में भी काम किया।
कुछ सीरियलों में भी वे दिखाई दीं। उनकी जुबान इतनी शीरी थी कि जब बोलती, लगता जैसे चाशनी में पगा कुछ टपक रहा है। वीडियो प्लेटफार्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई गुलाबो सिताबो को लेकर बेशक अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की तारीफ में कसीदे पढ़े गए, लेकिन फत्तो बेगम के भी चर्चे खूब हुए।
अभिनय की इच्छा तो उनमें भरपूर थी, पर सोचती भला कौन मौका देगा। लेकिन, उनकी अभिनय प्रतिभा को परवान चढ़ाया मुजफ्फर अली ने। हुआ कुछ यूं कि वह उमरावजान बनाने की तैयार में थे। उन्हें रेखा की मां का किरदार निभाने के लिए किसी ऐसी प्रतिभा की तलाश थी जो अवध की मीठी जुबान में डायलाग बोल सके।
एक पारिवारिक कार्यक्रम में वह नौकर की नकल उतार रही थीं तभी मुजफ्फर अली की उन पर नजर पड़ी। मुजफ्फर अली ने फिल्म में काम करने का प्रस्ताव दिया तो पारिवारिक रीति-रिवाज और पृष्ठभूमि आड़े आने लगी। तब उनके पति एसएम जाफर जो स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा पत्रकार भी थे, सहमति दे दी और शुरू हो गया फर्रुख का फिल्मी सफर।
1981 में रिलीज हुई उमरावजान ने कामयाबी के झंडे गाड़े तो इसमें फर्रुख का भी बड़ा योगदान था। लेकिन फर्रुख को सबसे अधिक आनंद आया आमिर की फिल्म पीपली लाइव में काम करते हुए। इस फिल्म ने शोहरत भी काफी बटोरी और फर्रुख को उनके काम की भरपूर सराहना भी मिली।
यूं तो लखनऊ से अमृत लाल नागर से लेकर भगवती चरण वर्मा, तलत महमूद, नौशाद, योगेश, डा. अनिल रस्तोगी तक ने रजतपट से लंबे समय तक जुड़े रहकर विविध भूमिकाओं में शामिल होकर शोहरत का डंका बजाया, लेकिन फर्रुख ने बेशक कम फिल्में की पर उनकी हर भूमिका यादगार बनकर उभरी।