रमा शंकर सिंह-
१९६९ में दिल्ली विवि के हंसराज कॉलेज में मेरा दाख़िला हुआ था। तब भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ श्री शांतिनारायण वहॉं के प्रिंसिपल थे , सख्त मिज़ाज अनुशासन पसंद और तब के बुजुर्गों की तरह असहमति न सुन सकने वाले। तब छात्रों और अध्यापकों में काफ़ी कुछ पीढ़ी का स्वभाव गत और एक नकली भयाक्रांत करने वाला अंतर होता था या रखा जाता था। छात्र उन्हें देखते ही छिप जाते थे। हंसराज कॉलेज आर्य समाज के डीएवी ट्रस्ट द्वारा संचालित है सो हॉस्टल में अंडा तक निषेध था। सहशिक्षा का भी निषेध था सो कॉलेज में सिर्फ़ लड़के ही लड़के थे।
हमें तब छात्र नेतागीरी का नया नया शौक़ लगा था और हॉस्टल में एक छात्र शुभव्रत भट्टाचार्य रहते थे जो बाद में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक भी रहे और कॉर्पोरेट दुनिया में भी अच्छे बडे पदों पर पहुँचे। विनोद दुआ भी थे। नानक चंद थे। अभाविप तब चुपचाप अपना संगठन बनाती थी और अधिकतम एक्टिविटी थी डिबेट में जाने की, इनको कैसी भी राजनीति से दूर रहने को कहा जाता था ; आंदोलन कभी नहीं करते थे। विद्यार्थी परिषद के मेरे मित्र गुलाटी एक अच्छे डिबेटर थे हंसराज कॉलेज के। और भी बहुत लोग थे ।
शुभव्रत जिन्हें सब शुभ्भो कहते थे ने एक बैठक बुलाई हॉस्टल में कि नॉन वेज खाना मिलना चाहिये और तय हुआ कि ज़रूरत पड़ी तो हड़ताल भी करेंगें। क़रीब पचास छात्रों नें प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा बनना मंज़ूर किया कि प्रिंसिपल से मिलकर माँग करेंगे पर उनके दफ़्तर तक पहुँचते पहुँचते आधे ही रह गये। आदत और स्वभाव के मुताबिक़ प्रिंसिपल साहब ने डाँटा फटकारा और भगा दिया । हॉस्टल पहुँच कर फ़ैसला लिया गया कि हड़ताल तो करनी पड़ेगी। सब आंदोलनकारी छात्रों में शायद मैं अकेला ही शुद्ध शाकाहारी था पर आंदोलन के साथ अंत तक डटा रहा।
ख़ैर हंसराज कॉलेज के इतिहास की पहली हड़ताल चली, अपेक्षानुरूप प्रिंसिपल ने अपना रौद्र रूप दिखाया और बाद में बाहर के कॉलेजों के नेता और छात्र संगठन भी आ गये और क़रीब दो हफ़्तों के बाद डीएवी समिति झुकी , अंडा देना मंज़ूर हुआ और यह भी कि कोई भी छात्र बाहर से नॉनवेज खाना लाकर अपने कमरे में खा सकता है। डीएवी समिति झुकी तो फिर बाद में झुकती ही गयी। हॉस्टल की मैस में नॉनवेज बनना भी शुरु हुआ और बाद में तो सहशिक्षा भी आरंभ हुई। कुल सक्रिय आंदोलनकारी छात्र मात्र दस होंगें पर पूरे विश्वविद्यालय का सपोर्ट मिल गया तो बात बन गई और असल बात यह कि जो नेता थे सो डरे नहीं झुके नहीं , अड़े ही रहे जब तक कि माँग मान नहीं ली गई।
आज सुना है कि हंसराज कॉलेज में गो-शोध केंद्र खुल गया है । काश कि हम लोग इससमय वहॉं होते तो दूध दही घी फ़्री में ही दिलवाते छात्रों को। गायें रहेंगी कहॉं? कॉलेज में कोई उपयुक्त स्थान है नहीं। दिल्ली में कहीं भी एक सौ गाय पालने के लिये दस एकड़ स्थान चाहिये जो अरबों रूपये का मिलेगा तो शोध क्या और कहॉं होगा ? ऐसे ही बहुत सारे प्रस्तावों और घोषणाओं के पीछे की जॉंच में यही पता चलता रहा है कि वर्तमान प्रिंसिपल कोई बड़े पद की जुगाड़ में अपने बायोडाटा / सीवी में ऐसे बिंदु जुड़वा कर सत्ताप्रतिष्ठान की कृपा चाहते हैं ,वास्तव में कहीं कुछ नहीं होता है और यदि कहीं एकाध स्थान पर हुआ भी है तो निहायत ही सांकेतिक है जैसा कि हंसराज का यह केंद्र है जिसमें मात्र एक गाय के भरोसे छात्रों को घीदूधदही का भरोसा दिला दिया गया और देश भर के अखबारों में छपा दिया गया है।
हंसराज कॉलेज पहले भी शिक्षा की गुणवत्ता के लिये विख्यात था और आज भी हैं और आप नज़र रखिये कि अगले दो तीन बरसों में यह कितने पायदान नीचे खिसकता है क्यों कि शिक्षा की वास्तविक गुणवत्ता का हवन यज्ञ से कोई लेना देना नहीं है। धर्म पंथ संप्रदाय मंदिर मस्जिद चर्च से तो बिलकुल ही नहीं। डिग्रीधारी अधिकारी मूर्खमंडली मात्र पदोन्नतिआकांक्षी है, इसलिये मत उम्मीद करिये कि मात्र एक गाय का दूध दही घी या मक्खन कभी आपके हिस्से में भी आ पायेगी !