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उत्तर प्रदेश

हाथों से प्लेट छीने जाने के बाद संगठित हो गए लखनऊ के पत्रकार

अखबार, चैनल, पत्रकार, पत्रकार संगठन, रोजी-रोटी, सुरक्षा और सम्मान जब कुछ भी सुरक्षित नहीं दिखा तो खामोशी टूटी। पत्रकार संगठनो की गुटबाजी पर विराम लगा। पत्रकार संगठित दिखे और भक्तगीरी की भावना भी हवा होती दिखाई दी। क्या छोटे क्या बड़े। क्या ब्रान्ड और क्या लोकल अखबार और पत्रकार। सरकारों के दमनकारी रवैये के लपेटे में हर कोई आ चुका है। देश के आधे से ज्यादा अखबारों की मान्यता खत्म कर दी गयी। हजारों श्रमजीवी पत्रकारों को दरकिनार कर पचास पत्रकारों की सूची अन्य पत्रकारों को अपमानित कर रही है। सरकारी मकान छिनने का अंदेशा साफ नजर आ रहा है।

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अखबार, चैनल, पत्रकार, पत्रकार संगठन, रोजी-रोटी, सुरक्षा और सम्मान जब कुछ भी सुरक्षित नहीं दिखा तो खामोशी टूटी। पत्रकार संगठनो की गुटबाजी पर विराम लगा। पत्रकार संगठित दिखे और भक्तगीरी की भावना भी हवा होती दिखाई दी। क्या छोटे क्या बड़े। क्या ब्रान्ड और क्या लोकल अखबार और पत्रकार। सरकारों के दमनकारी रवैये के लपेटे में हर कोई आ चुका है। देश के आधे से ज्यादा अखबारों की मान्यता खत्म कर दी गयी। हजारों श्रमजीवी पत्रकारों को दरकिनार कर पचास पत्रकारों की सूची अन्य पत्रकारों को अपमानित कर रही है। सरकारी मकान छिनने का अंदेशा साफ नजर आ रहा है।

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आपातकाल जैसे इस माहौल ने आज पत्रकारों को एकजुट होने पर मजबूर कर दिया। पत्रकारों के संगठनों की गुटबाजी पर विराम लगा। अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिये आज जब सौ-ढेड़ सौ पत्रकार एकत्र हुए तो सरकार के सख्त तेवर पिघलते हुए दिखाई दिये। आला अधिकारियो ने पत्रकारों की मुश्किलों का एहसास किया और समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया। बीते दिनों 4पीएम अखबार पर हमला हुआ। उधर विधानसभा के बजट सत्र में पत्रकारों को अपमानित किया गया। फिर तो पत्रकारों का सब्र का बाँध टूटा। भक्त पत्रकार भी विरोध पर उतर आये। विभिन्न गुटों और संगठनो के पत्रकारो ने मिल कर पत्रकार एकता का नारा बुलंद कर दिया।

विधानसभा सत्र में पटल पर मिलने वाले बजट साहित्य का वितरण भी सुचारू रूप से नहीं किया गया। कवरेज पर आये पत्रकारो में से दस प्रतिशत पत्रकारो को ही बजट साहित्य दिया गया। लंच के समय पत्रकारों को कैन्टीन में नहीं घुसने दिया गया। विधानसभा में तैनात मार्शल पत्रकारों से बद्तमीजी पर उतर आये। कई पत्रकारों के साथ धक्का-मुक्की की गयी। प्यास से तड़प रहे पत्रकारों के हाथों से पानी की बोतल छीन ली गयी।

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सत्र की कवरेज के लिये पत्रकारो को सदन में चार-पांच घंटे मौजूद रहना पड़ता है। इस दौरान ही लंच का समय भी होता है। ये पुरानी परम्परा है कि आम तौर से बजट सत्र मे सदन के सदस्यों के अतिरिक्त कवरेज करने आये पत्रकारो के खाने का भी इन्तजाम होता रहा है। फिर भी कई पत्रकार सरकार का मौजूदा रुख देखकर अपने साथ लंच बाक्स लाये थे, किन्तु संदिग्ध पाउडर की घटना के बाद सख्त सुरक्षा के कारण पत्रकार अपना लंच बाक्स साथ नहीं ले जा सके। इसलिये लंच के समय कई पत्रकार कैन्टीन में भोजन करने गये। जहां गेट पर ही उन्हें रोक लिया गया। पत्रकारों ने कहा कि वे कैन्टीन से खरीद कर भोजन करेंगे, ना कि वो सरकारी धन से विधायको और पत्रकारों के लिये किये गये भोजन मे हाथ लगायेगे। इसके बावजूद भी पत्रकारों को रोकने के लिये कैन्टीन पर पहरे बैठा दिये गये। कुछ पत्रकार किसी तरह कैन्टीन में दाखिल हो गये। इन पत्रकारों के हाथ से प्लेट छीन ली गयी। बस यहीं पर सब्र का बाँध टूट गया। कवरेज का बहिष्कार कर दिया गया। क्योंकि भूखे पेट भजन ना होये गोपाला…

नवेद शिकोह
लखनऊ
9918223245
[email protected]

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