शिशिर सिन्हा-
सबसे पहले तो हिंदी में कही गयी हमारी बातों को पढ़ने के लिए आप सभी का आभार। आप जैसे सुधी पाठकों की वजह से ही हिंदी समाचार पत्र 197 वर्षो से जिंदा रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इसीलिए हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर हिदी पाठकों व हिंदी पत्रकारों को बहुत-बहुत बधाई। खास तौर पर बधाई उन हिंदी अखबारों को जो अपने पहले पन्ने के शीर्ष पर अपना नाम अंग्रेजी में लिखना उचित समझते है। वो पत्रकार भी बधाई के पात्र हैं जो काम करते हैं हिंदी अखबारों में, लेकिन संवाददाता सम्मेलन में हिंदी में जवाब देने की क्षमता रखने वालों से भी अग्रेजी में प्रश्न पूछेगे।

खैर, आपबीती सुनाना चाहता हूं। 2011 में खबरिया चैनल की दुनिया छोड़ने के बाद हम हिदी अखबार में काम करना चाहते थे। एक जगह बातचीत की, हिंदी में आवेदन भी दिया, जगह भी खाली थी, फिर भी पता नहीं हमें मौका नहीं मिला। शायद हममें ही कमी थी। खैर, इस बीच द हिंदू बिजनेस लाइन में बातचीत हुई और एक ही बार में वहां से नौकरी का प्रस्ताव मिल गया। हमने यह बात कभी नहीं छिपायी कि अंग्रेजी में हमारा हाथ कुछ तंग है, लेकिन इस अखबार ने हमेशा हमारी कमियों को सादर सुधारना सिखाया है।
2015 में कुछ समय के लिए एबीपी न्यूज आ तो गए, लेकिन जल्दी ही खबरिया चैनल की दुनिया से मोहभंग हो गया। एक बार फिर, एक और हिंदी अखबार के संपादक से बातचीत की। हिंदी में आवेदन दिया, यहां तक की अपना लिखित परिचय भी हिंदी में ही दिया। वहां भी जगह खाली थी, फिर भी बात नहीं बनी। आज तक हमें समझ में नहीं आया कि समस्या कहां थी। इस बीच दोबारा द हिंदू बिजनेस लाइन से सफल बातचीत हुई और यहां हम फिर से जी-जान से जुट गए।
सच पूछिए तो 16 साल हिंदी में काम करने के बाद हम आगे भी हिंदी में ही काम करना चाहते थे। लेकिन शायद नियति हमें अंग्रेजी में ले आयी, जहां हमें काम करने में आनंद तो बहुत आता है और हम 100 प्रतिशत तो क्या ज्यादा ही देने में लगे रहते हैं, लेकिन पता नहीं कभी-कभी लगता है कि काश 2015 या 2019 में हमें हिंदी अखबार वाले रख लिए होते।
खैर, नियति का हर निर्णय हमें दिल से स्वीकार है। अंग्रेजी मे जी-जान से काम करते रहेंगे, साथ ही विभिन्न माध्यमों के जरिए हिंदी में आपसे बातचीत करते रहेंगे।
एक बार फिर आप सभी को हिंदी पत्रकारिता दिवस की बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएं!