आप बताइए, क्या मेरे दिमाग का स्क्रू ढीला है ?

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मैंने कुछ सामाजिक मुद्दे ही तो उठाये हैं, जिसको व्यापक जनसमर्थन मिला है। क्या यह मेरा पागलपन है ? आप बताइए क्या मेरे दिमाग का स्क्रू ढीला है ? किसी ने यू ट्यूब पर विडियो पोस्ट किया है, जिसमें मेरा स्क्रू ढीला बताया है। इसमें तीन बाते हैं –

१. पहली बात यह कि “मेरा स्क्रू ढीला है”। (यह आप तय करें, यथोचित परामर्श दें कि क्या मैं डॉक्टर को कंसल्ट करूँ? )

२. दूसरा, कुछ संबंधों की दुहाई दी गयी है – मेरे ससुर जी की बात की गयी है। मैं हमेशा संबंधों की कद्र करता हूँ, अतः विनम्र भाव से धन्यवाद देता हूँ।

३. तीसरी बात का मतलब मैं समझा नहीं – क्या यह परामर्श है या चेतावनी/धमकी या रहमोकरम ? यदि रहमोकरम है तो बहुत आभारी हूँ, क्यों कि मेरे जैसे दीगर लोगों का यह अधिकार बनता ही है -आज के युग में, बाकी सब आप तय करें कि क्या माना जाये… यदि मेरा स्क्रू ढीला है …तो मेरी सभी अनभिज्ञतायें वैसे भी नज़र अंदाज हो जानी चाहिए …।

तीसरे प्रसंग में आसन्न विषय पर, मैं इतना ही कहूँगा कि एक आईएएस / आईपीएस/ आईएफएस अधिकारी को अध्ययन हेतु विदेश जाने की अनुमति है। मैंने विधिवत अध्ययन अवकाश, भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार से स्वीकृत कराया है, अन्यथा मैं कैडर में वापस कैसे ज्वॉइन करता, तथा सरकार मुझे प्रमुख सचिव के पद पर कैसे तैनात करती (इस विषय में उच्च न्यायालय, लखनऊ भी, अपनी कड़ी टिप्पणी के साथ राय दे चुका है। अतः ज्यादा बोलना अवमानना भी होगी)

ईश्वर अहंकार से बचाए। आप शायद मुझसे सहमत हों कि ‘अति-कुटिलता’ से ‘अल्प-विवेकशीलता’ (स्क्रू ढीला होना) ज्यादा अच्छा है। मुझे….सर-ऐ-आम ये शिकायत है ज़िन्दगी से, क्यूँ मिलता नहीं मिजाज मेरा उनसे… क्या कुछ और लोगों को मेरे जैसा ….अपना ..स्क्रू ढीला करना है ?

मुझे गाली-गलौज तो रोज मिलता है, मज़ाक भी उड़ाया जाता है, परन्तु हमें यह सब नियतिवश। सहकर विनम्र भाव से जन-जागरण करते रहना है। आगे बढ़ना है। व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों से बचना है। प्रतिकार, हिंसा, उग्रता से जब तक हो सके, विमुख रहना है । आगे तो पता नहीं क्या क्या होगा। धैर्य नहीं खोना है। उर्जा व्यर्थ नहीं करनी है। बाकी जैसी ऊपर वाले की मर्जी….।

आईएएस सूर्य प्रताप सिंह के एफबी वाल से



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Comments on “आप बताइए, क्या मेरे दिमाग का स्क्रू ढीला है ?

  • purushottam asnora says:

    अहंकारी नेताओं को जी हजूरों की फौज चाहिए, उन्हें विवेक, न्यायप्रिय और जनता को समर्पित अफसर या कार्यकर्ता नहीं चाहिए। सौभाग्य से सूर्यप्रतापसिंह या अमिताभ ठाकुर जैसे मुट्ठी भर लोग देश की नौकरशाही को बचाये हुए हैं जो भ्रष्ट नेताओं की आंख की किरकिरी बने रहे हैं।
    जनता को तटस्थता छोड मुद्दों की लडाई में उतरना होगा। नही तो अच्छे लोग हतोत्साहित होंगे और भ्रष्टों को सीना चैडा कर घूमने की छूट मिल जायेगी।

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