दैनिक जागरण नोएडा में काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन इन दिनों मीडिया कर्मियों के बीच सबसे बड़ी खबर है। जागरण कर्मियों ने जो तेवर, उत्साह प्रबंधन के दमनात्मक रवैये के खिलाफ दिखाया है, वह दर्शाता है कि वाकई जागरण के कर्मी जर्नलिस्ट हैं, अन्यथा हिंदी अखबारी मीडिया में हिंदुस्तान अखबार के भड़ैत पत्रकार भी हैं, जिनकी शशि शेखर के आगे बोली नहीं निकलती। कमोबेश यही हाल अमर उजाला के भी ज्यादातर पत्रकारों का हैं, जो सिर्फ पेट पाल रहे हैं।
मित्रो, बात शुरू हुई थी जागरण कर्मियों की बहादुरी से। जागरण के कर्मचारियों ने अपने विरोध प्रदर्शनों से साबित कर दिया है कि उनमें वाकई अपने हक के लिए लड़ने की चेतना है। वे अगर समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज बनने माध्यम हैं तो अपनी आवाज बुलंद करना भी उन्हें आता है। उनकी बहादुरी की चर्चा के साथ ही सहज ही नजर जाती है। देश के बड़े व्यापारिक घराने के अखबार, उसके संपादक और पत्रकारों पर। मजीठिया को लेकर एक ओर देशभर के पत्रकार ताल ठोंक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हिंदुस्तान के पत्रकारों की हरकत पर शर्म आती है। इन्हें न तो इससे कोई फर्क पड़ता है कि उन्हें मजीठिया मिलने जा रहा है या नहीं, उनके पदनाम में प्रबंधन किस तरह से खेल कर रहा है, उनकी प्रोन्नति में किस तरह का भेदभाव बरता जा रहा है आदि आदि।
यहां तो जैसे मुर्दों की एक बस्ती बसती है जो ठंडी निष्क्रियता ओढ़े, चुपचाप उस यमराज के इशारे पर बोलती, चलती, देखती, सुनती है जिसका नाम शशि शेखर है। इस यमराज का एक चित्रगुप्त है। नाम है सुधांशु श्रीवास्तव। यमराज की भक्ति से दस साल में इन महानुभाव ने कहां से कहां तक का सफर तय कर लिया। संस्थान के कर्मियों के हक मारने में यह चित्रगुप्त सबसे आगे है। शशि शेखर नामक यमराज के दूसरे सहयोगी, यानि जो शरीर से उसकी आत्मा को निकालने का काम करता है, उस यमदूत का नाम है प्रताप सोमवंशी। हिंदुस्तान के कर्मचारियों के हकों के ये तीन हत्यारे खुश हैं, प्रसन्न हैं, स्वतंत्र हैं, मस्त हैं, अघाये हैं, मोटाये हैं, चर्बियाए हैं।
आइए, यमराज और उसके दो गुर्गों की दिनचर्या पर थोड़ी बातचीत करते हैं।
यमराज की मर्जी हुई तो सुबह ही आफिस में आकर बैठ गया। इसके बाद तो न्यूजरूम में मजाल है किसी पत्रकार की कि वह मुंह खोल दे। बोले तो जुबान खींच ली जाएगी। यमराज के कानों तक आवाज पहुंची तो खाल उधेड़ने के अंदाज में वह चिघाड़ेगा। उसकी यह काया देखकर कभी—कभी तो शक होता है कि पत्रकार के वेश में यह शख्स जिंदगी कैसे गुजार आया। प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर वाले अंदाज में वह सभी पत्रकारों को अपना शिष्य समझता है। वह एक बार आवाज दे तो सारे मुर्दे उठकर दौड़ने लगते हैं।
यमराज का चित्रगुप्त। इसकी नीयत बहुत गुप्त है। गुप्त रूप से इसके कई चेले—चेलियां हैं। वह उनका खास ख्याल रखता है और चेले—चेलियां उसका ख्याल रखते हैं। जिसने खुश किया, उसे ओहदा तो मिला ही पैसे भी मिले। बाकी को बाबा जी का ठुल्लू यानि कि सब उल्लू। यह सबका बरोबर हिसाब रखता है। पेज पर खबरों की साइज से लेकर हिंदुस्तान के हर कर्मी के औकात की साइज तक का हिसाब। यमराज का जैसा हुक्म, वैसा हिसाब। पत्रकारिता जगत की आत्मा का कत्ल करने वाले आधुनिक यमराज का आधुनिक चित्रगुप्त। काइयांपन से भरपूर।
यमराज का दूसरा सहयोगी यमदूत। इस नगरी का सबसे रोचक, रोमांचक शख्स है। सोते, जागते, हगते, मूतते उसके श्रीमुख से बस ज्ञान टपकता है। ऐसा ज्ञान जिसे समेटने की कुव्वत रखने वाले अपनी हिंदुस्तान नगरी में बस दो-तीन लोग ही हैं। ये सभी दो-तीन खास लोग इस यमदूत के दरबान हैं, यानि आजकल उसके केबिन के ठीक सामने एक पांव पर खड़े रहते हैं। यमदूत को छींक भी आए तो वह उसमें भी तुक बैठाकर एक गजल पोंक मारता है। यह यमदूत कवि हृदय है, लेकिन संवेदना सिरे से गायब है। पत्रकारीय मूल्यों की आत्मा का हरण करने वाला यह यमदूत हिंदुस्तान नगरी में सबसे खतरनाक है। मजीठिया की आत्मा दरअसल इसी ने हर रखी है।
साथियों जगो, आओ हम भी मिलकर आवाज बुलंद करें। आपका एक साथी।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
Comments on “जागरण के जिंदा और हिन्दुस्तान-अमर उजाला के मुर्दा पत्रकार”
चेले चेलिआ पालने मे तो अमर उजाला नंबर one हो गया है आजकल. अमर उजाला का फीचर डेस्क आजकल खूब कुलाचे भर रहा है. एक महिला कर्मी को obliged करने के लिए seniors को दर किनार कर दिया है फीचर हेड ने. हर साल प्रमोशन, इन्क्रीमेंट. इससे खिन्न हो कर विभाग मे दसिओ साल से karyarat एक डिप्टी न्यूज़ एडिटर और सीनियर सब एडिटर ने pichale साल रिजाइन कर दिया tha. जरा सी लड़की जिसे ठीक से लिखने तक नहीं आता, उसकी कॉपी तक खुद बैठकर एडिट करता है, और यशवंत व्यास को ले जाकर उसके नाम पर डिस्प्ले कर देता है. धीरे खाली हो रहा है फीचर डिपार्टमेंट. अच्छे और kabil लोग यहाँ से निकल रहे हैं.
ऐसा व्यक्तित्व और मानसिकता रखने वालो से किसी क्रांति या आंदोलन की उम्मीद कैसे के जा सकती है. ऊपर से मैनेजिंग डायरेक्टर bekhabar हैं.
भैया हिंदुस्तान मे ही नहीं अमर उजाला मे भी यमदूतों और चन्द्र गुप्तो की एक लम्बी fehrist है. एक है पियक्कड़ कार्टून नेटवर्क संजय पाण्डेय. एक हैं मन मोहन सिंह आशुतोष चतुर्वेदी. एक हैं भाई का नाम अमर उजाला मे कॅश करा रहे संजय देव. कोठारी से निकालकर केबिन दे दिया गया है. चिंतन मनन का स्वांग रचाने मे माहिर नीशीथ जोशी, इससे भी बड़ा बहरूपिया शांत चित्त स्वांग रचयिता उदय कुमार. सब एक से एक बाबा जी के ठुल्लु है. कौनो काम के नहीं. डायरेक्टर को चूतिया बना कर मोटी पगार ले रहे है. हमारे जैसे छोटे लोगो की तनखा बढ़ाने मे इनकी फटने लगती है. सब अपनी उम्र को ढो रहे है. पेंशन लेकर ही जायेंगे. बर्बाद कर रहे है सब मिलकर अमर उजाला को.
Amar ujala mrt ka bhi yahhi hal haa. Bhaskar wale bathe ha. :zzz
Hindustaniyo ko sirf paka pakaya chahiye.. hindustaniyo ko chaplusi krne k alva kuch nahi aata h