उत्तर प्रदेश में उच्च न्यायालय इलाहाबाद की नियमावली १९५२ के अध्याय १८ के नियम १८ (३) के अंतर्गत किसी भी जेल में निरुद्ध अभियुक्त के उच्च न्यायालय में जमानत पर सुनवाई किये जाने से पूर्व शासकीय अधिवक्ता को १० दिन की पूर्व नोटिस सूचना देने की बाध्यता थी। उक्त नियम न केवल असंवैधानिक था, वरन हजारों नागरिकों के जीवन के अधिकार का स्पष्ट हनन था जिसके मुताबिक किसी भी व्यक्ति को बिना सुनवाई के न्यूनतम १० से १३ दिन जेल में काटने ही पड़ते थे।
इस सम्बन्ध में लखनऊ के कॉर्पोरेट अधिवक्ता मोहम्मद हैदर रिजवी के द्वारा पूरे देश के माननीय उच्च न्यायालयों के विधियों का सम्यक परिशीलन करने के उपरान्त मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं अन्य सम्बंधित न्यायाधीशगणों के समक्ष एक विस्तृत प्रत्यावेदन प्रस्तुत किया और नियमावली में संशोधन की मांग की।
एडवोकेट हैदर ने इस बाबत उच्चतम न्यायालय में स्वयं एक जनहित याचिका दायर की। सय्यद मोहम्मद हैदर रिजवी बनाम महानिबंधक इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं अन्य -रिट याचिका (सिविल) संख्या 475/2018 की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 02/07/2018 के माध्यम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विलंबतम प्रकरण में कार्यवाही करने को निर्देशित किया।
आदेश के अनुपालन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी नियमावली में संशोधन करते हुए 10 दिन की पूर्व सूचना / नोटिस की बाध्यता समाप्त करते हुए उक्त अवधि को १० दिन के स्थान पर २ दिन कर दिया है। सरकारी गैजेट में छपने के बाद से यह दूरगामी संशोधन प्रवृत्त हो गया है और इस संशोधन से उन लाखों वादकारियों को त्वरित न्याय मिलेगा जो बिना सुनवाई के जेल की यातना झेलते थे। एडवोकेट मोहम्मद हैदर रिजवी के द्वारा इस संशोधन की प्रति पूरे प्रदेश के पुलिस अधीक्षकों, उप महानिरीक्षकों सहित जिला मजिस्ट्रेटों, पुलिस महानिरीक्षकों , पुलिस महानिदेशक एवं प्रमुख सचिव गृह इत्यादि को अनुपालनार्थ प्रेषित कर दिया है।
Aklesh jain
January 19, 2019 at 5:05 pm
Very good job done by adv. Mohd hadar rizvi sahab.
Congrats
Mohd Sarwar
January 20, 2019 at 1:21 pm
Very good initiative… humanity need a person like you…