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अमर उजाला की पत्रकारीय राजनीति को बूझिये!

हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उन सबमें आज 17वीं लोकसभा के गठन के बाद संसद के संयुक्त सत्र को राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के संबोधन की खबर लीड है. अलग अलग अखबारों ने इसे भिन्न शीर्षक से छोटी या बड़ी खबर के रूप में लीड बनाया है. दैनिक हिन्दुस्तान में फ्लैग शीर्षक है, राष्ट्रपति ने संसद में सरकार के भावी कार्यों का खाका पेश किया. मुख्य शीर्षक है, आर्थिक भगोड़ों पर शिकंजा और कसेगा. नवभारत टाइम्स ने इसका फ्लैग शीर्षक बनाया है, राष्ट्रपति ने रखा मोदी 2.0 का रोड मैप जबकि मुख्य शीर्षक है, अबकी बार … एक देश एक चुनाव चाहेगी सरकार. नवोदय टाइम्स ने इसी बात को, एक देश, एक चुनाव है समय की मांग : कोविंद – शीर्षक से लीड बनाया है.

साप्ताहिक शुक्रवार में प्रकाशित

दैनिक जागरण का शीर्षक है, तत्काल तीन तलाक और हलाला पर रोक जरूरी: कोविंद. उपशीर्षक है, राष्ट्रपति का अभिभाषण – सरकार के कामकाज की झलक दिखी, कहा, एक देश एक साथ चुनाव समय की मांग है. राजस्थान पत्रिका में भी यह खबर लीड है और फ्लैग शीर्षक है, राष्ट्रपति का अभिभाषण एक साथ चुनाव, तीन तलाक पर मांगा सहयोग. हर सिर पर छत, सभी को इलाज और अंतरिक्ष में तिरंगा @ 2022. ऐसा कम ही होता है कि हिन्दी के सभी अखबारों में एक ही खबर लीड हो. आज यह खबर लीड है तो इसका कारण यह भी है कि इस एक खबर को कई शीर्षक से छापा जा सकता था और ऐसी दूसरी टक्कर की खबर नहीं रही होगी. लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण को महत्व देना और उसे प्रमुखता से प्रकाशित करना भी एक बड़ा कारण है. खासकर इसलिए भी कि वे सरकारी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं। एक साथ चुनाव कराने के संविधान संशोधन जैसे मुद्दे का भी।

ऐसे में आज अमर उजाला में पहले पन्ने पर एक दिलचस्प खबर है. मुझे लगता है कि किसी और से संबंधित होती तो इतनी प्रमुखता नहीं पाती. खबर है, राष्ट्रपति के संबोधन के वक्त मोबाइल में व्यस्त थे राहुल. उपशीर्षक है, 17वीं लोकसभा कांग्रेस अध्यक्ष का वीडियो वायरल. मैं खबर छापने और उसे पहले पन्ने पर रखने के संपादकीय विवेक को चुनौती नहीं देता. मैं संपादकीय विवेक के उपयोग की चर्चा कर रहा हूं जो अटपटा लग रहा है. क्योंकि, इस शीर्षक को देखते ही मेरा ध्यान इस बात पर गया कि अखबार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण को लीड नहीं बनाया है. यानी खुद तो राष्ट्रपति के अभिभाषण को महत्व नहीं दिया (जबकि उसका असर हजारों-लाखों पाठकों पर होता है) पर राहुल गांधी ने नहीं दिया तो खबर है. अगर राष्ट्रपति का संबोधन इतना महत्वपूर्ण था तो उसे दैनिक जागरण की तरह छह कॉलम में छापना चाहिए था. वह भी संपादकीय विवेक ही है और वहां राहुल गांधी की यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है.

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संपादकीय विवेक के नाम पर आपने खुद भाषण के कुछ अंश पहले पन्ने पर नहीं रखे (विज्ञापन के कारण, ब्यूरो ने इतनी ही खबर दी या आपको इतना ही महत्वपूर्ण लगा, उसमें मेरी दिलचस्पी नहीं है) पर सुनने वाले ने कोई अंश नहीं सुना या नजरअंदाज किया तो वह पहले पन्ने की खबर! अगर बात इतनी ही होती तो मुझे अटपटा नहीं लगता. अखबार ने कांग्रेस की सफाई भी छापी है – सोनिया से हिन्दी शब्दों के अर्थ पूछ रहे थे. यह खबर ऐसी है जो सिर्फ अमर उजाला में पहले पन्ने पर जगह पाती है – एक पाठक के रूप में मेरे लिय यह महत्वपूर्ण है. मेरा मानना है कि राहुल गांधी को राष्ट्रपति के संबोधन की रिपोर्टिंग तो करनी नहीं थी और जिन्हें करनी थी उन्होंने क्या किया यह खबर पढ़कर पता चल जाएगा. हालांकि संसद में भाषण सुने बगैर अच्छा लिखने के लिए रिकॉर्डिंग से लेकर एजेंसी की कॉपी और मित्रों का सहयोग सब उपलब्ध होता है. ऐसे में राहुल गांधी अगर अपनी मां के साथ बैठे थे तो उनके पास राष्ट्रपति के अभिभाषण की रिकॉर्डिंग, अखबारों की खबरें और मां से पूछकर जान लेने का विकल्प भी है. मेरे ख्याल से कांग्रेस का स्पष्टीकरण आने के बाद तो यह खबर पहले पन्ने के लायक नहीं ही थी.

वैसे भी संघी ट्रोल और अखबार में अंतर होना चाहिए. यह अलग बात है कि स्पष्टीकरण भी यही है कि वे सोनिया गांधी से हिन्दी शब्दों के अर्थ पूछ रहे थे. अब राहुल को हिन्दी के शब्द सोनिया से पूछने पड़ते हैं, गूगल करना पड़ता है तो खबर भले हो, राजनीति ज्यादा है. क्योंकि हिन्दी नहीं जानना राजनीतिक कमजोरी ही हो सकती है. ऐसे में यह खबर राजनीति है. ऐसी राजनीति जो आंध्र प्रदेश में सत्ता गंवाने वाले तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को बृहपतिवार को एक और झटका लगने की खबर को राष्ट्रपति के अभिभाषण से ज्यादा महत्व देती है और छह में से चार सांसद भाजपा में शामिल हो गए – सूचना को नमक तेल लगाकर लीड बना देती है.

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(साप्ताहिक ‘शुक्रवार’ में मीडिया पर मेरा कॉलम)

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की फेसबुक पोस्ट

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