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सियासत

आज ही जज लोया शहीद हुए थे, उन्हें 100 करोड़ रुपये और एक बंगले का आफर था!

30.11.2014, ठीक पांच साल पहले सीबीआई के एक जज नागपुर की यात्रा पर थे जो सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे। सीबीआई ने इसमें अमित शाह को अभियुक्त बनाया था जो उस समय गुजरात में मंत्री थे। जज की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई।

लोगों को बताया गया था कि जज सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरे थे और रात में सीने में दर्द की शिकायत की थी। सुपर स्पेशलिटी वॉकहार्ट हार्ट अस्पताल की बजाय, उन्हें हड्डियों के एक अस्पताल में ले जाया गया जो पहली मंजिल पर था।

हड्डियों के इस अस्पताल ने जब कुछ करने से मना कर दिया, तो उन्हें एक अन्य अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

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मृत जज ने अपने पिता से कहा था कि एक मामले में अनुकूल निर्णय देने के लिए उनपर भारी दबाव है और इसके बदले उन्हें बॉम्बे में 100 करोड़ और अपार्टमेंट की पेशकश की थी और यह पेशकश किसी अन्य ने नहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने की थी।

प्रसंगवश उस रात नागपुर में मोहित शाह भी मौजूद थे ।

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जज थे, बृजगोपाल हरकिशन लोया।

जब वे मर गए, तो मुंबई के मुख्य न्यायाधीश अपने साथी जज के शव के साथ उनके अपने पैतृक गांव नहीं गए। जो 500 किलोमीटर दूर लातूर में है ।

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पूरे तीन महीने तक वे परिवार से मिलने भी नहीं गए।

पद संभालने वाले अगले जज ने अमित शाह को क्लीन चिट दी।

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किसी ने एक अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट में लचर अपील। उस समय के सीजेआई दीपक मिश्र ने सीबीआई कोर्ट के फैसले की पुष्टि की और अमित शाह आजाद हो गए।

आप आज रात जब सोएं तो सोचिएगा कि जज लोया को 30.11.2014 की रात से लेकर 1.12.2014 की सुबह मरने से पहले क्या हुआ होगा।

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इसे यूं ही जाने मत दीजिए।

पत्रकार और उद्यमी Vinod Chand की एफबी वॉल से. मूल पोस्ट अंग्रेजी में है जिसका हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने किया है.

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Ravish Kumar : जज लोया को किसने मारा, चलती ट्रेन में अख़बार बनकर खड़े हो गए लोग… जज लोया की मौत की रिपोर्टिंग के लिए मीडिया का बड़ा हिस्सा शांत रहा। मौत की परिस्थिति पर ही सवाल उठे हैं और मांग जांच की हुई है, इसके बाद भी इस सामान्य मांग पर सबने किनारा कर लिया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है और फ़ैसला सुरक्षित है। इस बीच कैरवान पत्रिका की रिपोर्ट सिहरन पैदा करती है कि किस तरह से पोस्टमार्टम के दस्तावेज़ बदल देने के संकेत मिलते हैं। आज मुंबई से एक मित्र ने कुछ तस्वीरें साझा की तो लगा कि आपसे साझा करता हूं।

विनोद सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने जज लोया की मौत के सवाल को अपने टी शर्ट पर चिपका लिया है। उनके कुछ साथियों ने इस तरह से पहले भी मुंबई में प्रदर्शन किया है। हाईकोर्ट में प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने पकड़ भी लिया। आज विनोद चंद और उनके साथियों ने मुंबई के लोकल में ये टी शर्ट पहनकर यात्रा की है। अंधेरी, दादर, चर्चगेट जैसे स्टेशन पर खड़े होकर लोगों का ध्यान खींचा है।

पुलिस भगाती रही और ये दूसरे स्टेशन की तरफ भाग कर अपना प्रदर्शन करते रहे। जज लोया को किसने मारा। मुझसे रोज़ दस सवाल किए जाते हैं कि आपने इस पर नहीं बोला, उस पर नहीं लिखा मगर कोई इसे लेकर सवाल नहीं करता, जज लोया को लेकर कोई बोल क्यों नहीं रहा है।

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सवाल पूछने वाला यह नहीं कहता कि वह भी जज लोया की मौत से जुड़े सवालों को पूछना चाहता है। जब मीडिया नहीं होगा तो आदमी को ही मीडिया बन जाना होगा। ये लोग एक अख़बार की तरह आपके सामने खड़े हो गए हैं। चलती ट्रेन में लाइव चैनल बन गए हैं। जब सत्ता मीडिया को ख़रीद लेगी तब ऐसे ही लोग ख़बर बनकर आपके सामने आ जाएंगे।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की आज के ही दिन लिखी गई एक साल पुरानी पोस्ट.

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