सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिज रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक और चिट्ठी लिखी
एक और मोदी सरकार का दावा है कि भृष्टाचार पर उसका ज़ीरो टालरेंस है और कथित भ्रष्ट नौकरशाह एक एक करके बर्खास्त भी किये जा रहे है लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एस एन शुक्ला को बदनीयती से अपने अधिकारों के दुरुपयोग का दोषी मानते हुए इनको पद से हटाए जाने की उच्चतम न्यायालय सिफारिश के बावजूद 17 महीने से अधिक बीत जाने के बाद भी मोदी सरकार अभी तक संसद में महाभियोग प्रस्ताव नहीं लायी। एक बार महाभियोग प्रस्ताव यदि संसद में स्वीकार किया जाता है तो उसकी जाँच होती है।मन जा रहा है की जाँच में सत्ता रूढ़ दल से जुड़े बड़े बड़े नामों तक इसकी आंच पहुंच सकती है इसलिए सरकार इस सिफारिश पर कुंडली मारकर बैठ गयी है। अब एक बार फिर वर्तमान उच्चतम न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक और चिट्ठी लिख कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एस एन शुक्ला को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने का आग्रह किया है।
जस्टिस गोगोई की ओर से प्रधानमंत्री को ये रिमाइंडर है। पिछले साल जनवरी में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा भी प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के दोषी इस जज को हटाने को कह चुके हैं।भ्रष्टाचार खत्म करने की सरकार की मुहिम के बावजूद जस्टिस शुक्ला के मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ है।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला के आदेश पर आपत्ति जताते हुए उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई थी। तब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस के अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी के जायसवाल की इनहाउस कमेटी से इन आरोपों की जांच कराई थी।कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ साफ और पर्याप्त सबूत हैं. उन्हें अविलंब हटाया जाय।18 महीने यानी डेढ़ साल पहले उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बने इस इनहाउस पैनल ने जस्टिस शुक्ला को बदनीयती से अपने अधिकारों के दुरुपयोग का दोषी मानते हुए इनको पद से हटाए जाने की सिफारिश की थी। जस्टिस शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय के आदेश की अनदेखी कर एक निजी मेडिकल कॉलेज को दाखिले की समयसीमा बढ़ाने की छूट दी थी।
जस्टिस शुक्ला के इस मनमाने और अनुशासनहीन आदेश पर उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने गंभीर एक्शन लेते हुए जस्टिस शुक्ला को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेने को कहा था, लेकिन जस्टिस शुक्ला ने दोनों में से कुछ भी करने से साफ इंकार कर दिया था। तब भी मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने प्रधानमंत्री से जस्टिस शुक्ला को हटाने के लिए संसद में प्रक्रिया शुरू करने को कहा था, लेकिन डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी आजतक कुछ नहीं हुआ।
जस्टिस शुक्ला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आठवें सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। वे 2005 में उच्च न्यायालय नियुक्त किए गए थे और 17 जुलाई 2020 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने काली सूची में डाले गए लखनऊ के कुछ निजी मेडिकल कॉलेजों को उच्चतम न्यायालय की रोक के बावज़ूद नए दाख़िले शुरू करने की इजाज़त दी। इन आरोपों की जांच के लिए बनायी गयी समिति ने जस्टिस शुक्ला पर लगाए गए आरोपों को सही पाया. उनके आचरण पर भी गंभीर टिप्पणियां कीं। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने 23 जनवरी18 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले को निर्देश दिया कि जस्टिस शुक्ला से सभी अदालती कामकाज वापस ले लिया जाए।साथ ही प्रधानमंत्री से जस्टिस शुक्ला को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की भी सिफ़ारिश की थी।इसके बाद जस्टिस शुक्ला से सभी अदालती कामकाज वापस ले लिए गए और वे बैठकर वेतन एवं अन्य सुविधाएँ ले रहे हैं।
दरअसल मेडिकल प्रवेश घोटाले के नाम से जाने जाने वाले इस पूरे मामले की एसआईटी जांच की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में आई, जिसकी सुनवाई 9 नवंबर, 2017 को जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जे चेलामेश्वर की पीठ ने की। बेंच ने इसे गंभीर माना और इसे पांच वरिष्ठतम जजों की बेंच में रेफर कर दिया। इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को भी रखा गया और सुनवाई के लिए 13 नवंबर 2017 की तारीख तय की गई। इसी तरह के एक और मामले का जिक्र कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म (सीजेएआर) नाम की संस्था ने भी 8 नवंबर 2017 को जस्टिस चेलामेश्वर की अगुवाई वाली बेंच के सामने रखा था। उस मामले में पीठ ने 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय की थी।
लेकिन 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में हुए एक हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने जस्टिस चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा 9 नवंबर को दिए गए उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत को रिश्वत देने के आरोपों में एसआईटी जांच की मांग वाली दो याचिकाओं को संविधान पीठ को रेफर किया गया था। इस पूरी बहस के दौरान वकील प्रशांत भूषण और चीफ जस्टिस के बीच तीखी नोंकझोंक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी रिपोर्ट या एफआईआर में किसी जज का नाम नहीं है।
दरअसल सीबीआई ने जिस आधार पर ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज कुद्दूसी और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, उसका आधार वह बातचीत थी, जिससे आभास मिलता है कि उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट की अदालतों में रिश्वत देने की योजना बनाई जा रही है। आरोप है कि कुद्दूसी ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय में भी मामले में मनमाफिक फैसला दिलाने का वादा किया था।
गौरतलब है कि शनिवार को सीजेआई रंजन गोगोई के द्वारा प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखे जाने की खबर सामने आई थी, जिसमें उन्होंने देश की अदालतों में लंबित पड़े मुकदमों को निपटारे के लिए जज की संख्या बढ़ाने और हाई कोर्ट के जजों के रिटायर्ड होने की आयु सीमा को 62 साल से 65 साल किए जाने का पीएम को सुझाव दिया था।

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.
Comments on “मेडिकल प्रवेश घोटाले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को हटाने की फाइल पर सरकार की कुंडली”
Report is in detail nd can be appriciatedBut whether without final prove nd also that who r involved r what Acton was taken special y when the allegation against the then c j I was also there in.my view the action is too hars as this may be a case of wrong interpretation of the order of apex court but not illegal exercise of judicial power.one thing also clear that why any action was not taken against other judge who was part of the order xBut in one point I agree that the outcome of the inquiry may bring some name of big politicians nd so no further action is bieng taken nd which forced the c j I to write letter
मैंने कई बार भड़ांस के समाचारों को ट्वीट किया लेकिन ट्विटर पर रीट्वीट नही हुआ लगता हैं सरकार ने सही आलोचना करना स्वीकार नहीं किया।ध्यान रखें।
मैंने कई बार भड़ांस के समाचारों को ट्वीट किया लेकिन ट्विटर पर रीट्वीट नही हुआ लगता हैं सरकार ने सही आलोचना करना स्वीकार नहीं किया।ध्यान रखें।