urmilesh : अनुच्छेद 370 खत्म करने का सरकार का अविवेकपूर्ण, असंगत, और ग़ैर ज़रूरी कदम! संविधान तोड़ने-मरोड़ने की दबंगई! आर्थिक-सामाजिक मोर्चे पर अपनी विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने का हथकंडा! संविधान नहीं, RSS के फरमान के मद्देनजर किया यह फैसला! भारतीय अवाम का नहीं, सिर्फ संघ का एजेंडा!
Rajdeep Sardesai : In pure political terms, @AmitShah and the BJP seem to have scored a triumph with move to scrap Article 370; many oppn parties also supporting it in parliament. PDP MPs who protested removed from the Rajya Sabha. narrative of ‘muscular’ nationalism is well and truly back again.
Prakash K Ray : दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा है, पर दुनिया के सबसे ज़्यादा मिलिट्राइज़्ड ज़ोन के बारे में फ़ैसला वहाँ नज़रबंदी और पाबंदी लगाकर प्रेज़िडेंशियल ऑर्डर से किया गया है। जो इस पर सवाल कर रहे हैं, उन्हें ट्रेटर, टेररिस्ट आदि कहा जा रहा है। यही बड़ा लोकतंत्र, बड़ा जनादेश और बड़ा काम है, तो लानत है।
Samarendra Singh : करार की बहुत अहमियत होती है। करार दो या उससे अधिक व्यक्तियों, समुदायों, संस्थाओं, संस्थानों, राज्यों और देशों के बीच होता है। कोई करार यूं ही नहीं हो जाता। उसके पीछे लंबी बातचीत होती है। मिलकर, साथ चलने की सोच और समझ होती है। आपसी साझेदारी का अहसास होता है। स्वतंत्र मौजूदगी, स्वतंत्र अस्तित्व की स्वीकृति होती है। कोई भी करार बातचीत के जरिए, आपसी सहमति के साथ तोड़ा जा सकता है। ताकि दोस्ती बनी रहे। रिश्तों की खुशबू बनी रहे। करार को ढोते रहने पर कई बार सड़ांध पैदा हो जाती है। रिश्तों में नफरत का भाव पैदा हो जाता है। ऐसे संबंध बातचीत से आपसी सौहार्द के साथ खत्म नहीं होते। करार कड़वाहट के साथ टूटते हैं। हादसे के साथ खत्म होते हैं। भविष्य में कई बार संबंध मीठे हो जाते हैं और कई बार नफरत बढ़ जाती है। शेष भारत के साथ कश्मीर के करार में भी सड़ांध पैदा हो गई थी। अब सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। कश्मीर के साथ हुआ करार एक झटके में तोड़ दिया है। बड़ा साहसिक फैसला है। इसका असर होगा। बड़ा असर होगा। बड़ी प्रतिक्रिया होगी। लंबी प्रतिक्रिया होगी। और संबंध कैसे रहेंगे? यह भविष्य तय करेगा। यह साहसिक फैसला- एक खौफनाक हादसा है या सुनहरे अध्याय की शुरुआत यह भविष्य तय करेगा। उसी से भविष्य तय होगा।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, प्रकाश के रे और समरेंद्र सिंह की उपरोक्त टिप्पणियां उनके ट्विटर/एफबी एकाउंट से ली गई हैं.
Daya Sagar : नामुमकिन अब मुमकिन है। आखिर धारा 370 खत्म हो गई। ये धारा कश्मीर समस्या के अब तक न सुलझने की असल वजह थी। अब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक हिन्दुस्तान, एक संविधान और एक निशान है। राजनीतिक इच्छाशक्ति का ये एक नायाब उदाहरण है। बेशक इससे कश्मीर के हालात खराब होंगे। पर ये खराब हालात तो पिछले सत्तर सालों से हैं। कैंसर को काट कर निकाल दिया जाए तो प्राण बचने की उम्मीद बढ़ जाती है। वर्ना कैंसर सिर्फ तकलीफ देता है। अगर आपको लगता है कि धारा 370 भारत और कश्मीर के बीच मंगलसूत्र का काम करती थी, तो माफ कीजिए आप गलत हैं। पाकिस्तानी कबायली हमलावरों ने जो कश्मीर पर हमला किया था तो राजा हरि सिंह बिना शर्त जम्मू कश्मीर का भारत से विलय के कागजात पर दस्तख्त किए थे. तब धारा-370 कहीं नहीं थी। तब भारतीय सेना ने उन कबायली हमलावरों को कश्मीर से खदेड़ दिया था जो कश्मीर में लूटपाट और औरतों के साथ बलात्कार करते श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। विलय के बहुत बाद में संविधान सभा में धारा-370 नेहरू की देन है। धारा 370 के हाशिए पर ये साफ लिखा था कि- जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में ये अस्थायी विधान है। लेकिन इस अस्थायी प्रावधान को खत्म करने की हिम्मत अब तक किसी में नहीं थी। कश्मीर को लेकर एक दिन कोई कड़ा फैसला लेना था, सो आज ले लिया गया। याद रखिए ये कोई चुनावी फैसला नहीं है। ये देशहित में लिया गया फैसला है। हम सबको नरेन्द्र मोदी सरकार साथ खड़ा होना चाहिए। (वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर की एफबी वॉल से.)
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Mrityunjay Thakur
August 6, 2019 at 12:13 am
ये उर्मिलेश या उनके जैसे कमसोची और क्षुद्र मानसिकता वाले पत्तलकारों को शायद समझ में नहीं आए कि जो हुआ है उसका मायने मतलब क्या है। जरा अपनी मनोहर पोथी के अध्याय से बाहर निकलो जनाब, एक सशक्त हिन्दुस्तान तुम्हारा इस्तकबाल कर रहा है। आर्थिक मोर्चे पर हम अगली बार बात करेंगे।