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सियासत

मोदी विरोधी कई साहित्यकारों-पत्रकारों ने भी कश्मीर पर साहसिक फैसले के लिए कहा- शाबास सरकार!

barkha dutt
@BDUTT
The @AmitShah move to scrap #Article370 #Article35A completes Syama Prasad Mukherjee call: “Ek Desk mein do vidhan, do Pradhan, do nishan nahin ho sakte”. But to be legally valid it needs the consent of Jammu and Kashmir. Sooner or later state will have a new government. Then?

Sagarika Ghose
@sagarikaghose
Modi government has now forced “integration” of Kashmir with India, through diktat & show of force. Hope BJP government can now deliver development, jobs, industry and welfare to Kashmiris as well as to the rest of India and not let the region slide into another Palestine

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Ajit Anjum
@ajitanjum
आख़िरकार @narendramodi और @AmitShah की जोड़ी ने वो ऐतिहासिक फैसला करके दिखा दिया,जिसका वादा @BJP4India जनसंघ के जमाने से करती रही है.बदले दौर का ही तकाजा है कि सपा, बसपा से केजरीवाल तक समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं.#JammuAndKashmir #Article370revoked #35AAnd370 #Article370

punya prasun bajpai
@ppbajpai
साहसिक और एतिहासिक निर्णय…
बधाई प्रधानमंत्री जी!

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Vinod Kapri
@vinodkapri
मोदी सरकार ने निंसंदेह ऐतिहासिक और बेहद साहसिक फ़ैसला किया है। उम्मीद है इस फ़ैसले से कश्मीर को एक नई दिशा मिलेगी।#Article370

Dibang
@dibang
याद है ना आपको गृहमंत्री अमित शाह का लोक सभा का जून 28, 2019 का बयान: ‘मैं मानता हूँ 370 है लेकिन ये अस्थाई है परमानेंट नहीं. 370 हमारे संविधान का अस्थाई मुद्दा है. ये याद रखिएगा’. उड़ गया अनुच्छेद 370, कश्मीर में अनुच्छेद 370 खंड एक को छोड़ कर बाकी सभी खंड लागू नहीं होंगे, मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, अब नहीं रहा जम्मू-कश्मीर राज्य, अब होंगे दो केंद्रशासित प्रदेश, लद्दाख होगा केंद्रशासित प्रदेश, जम्मू कश्मीर भी एक केंद्रशासित प्रदेश.

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सौजन्य : ट्विटर


Uday Prakash : कई तरह की व्याख्याएँ होंगी, भविष्य को लेकर कई तरह की अटकलें लगेंगी और बहसें होंगी, लेकिन आज की तारीख़ (५ अगस्त २०१९) इतिहास में दर्ज तो हो ही गयी। यह काग़ज़ के पन्नों पर नहीं, इस उपमहाद्वीप के भूगोल पर उकेरा गया वर्तमान है, जो अब आने वाले भविष्य के हर पल के साथ इतिहास बनता जा रहा है। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर आज के दिन भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया, अब उस स्वर्ग या जन्नत के फ़रिश्ते भी देश के सामान्य नागरिकों के अविभाज्य अंग बन कर उसमें घुलमिल जायं, इससे अधिक और क्या कामना हो सकती है? अब जम्मू-कश्मीर समेत समूचे देश की जनता के मूलभूत संवैधानिक नागरिक अधिकार समान और एक हो गये हैं। अब हमारे संघर्ष और उपलब्धियाँ, जय और पराजय भी एक ही होंगे।

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जाने-माने साहित्यकार उदय प्रकाश की एफबी वॉल से.

Satyendra PS : 370 और 35 A खत्म करना स्वागत योग्य कदम है। विपक्षी दलों को भी इस फैसले का स्वागत करने की जरूरत है। यह अस्थाई प्रावधान थे। अस्थाई प्रावधान इसीलिए किया गया था कि शांति होने पर इसे खत्म कर दिया जाएगा। सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, भीम राव अम्बेडकर का भी यही मकसद था। अब कश्मीर में शांति बनाना असल काम है, वरना सदन में खत्म करने का कोई मतलब नहीं बनेगा।

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वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक न्याय विषय के विशेषज्ञ सत्येंद्र पीएस की एफबी वॉल से.

Asit Nath : बधाई, शुभकामनाएं। हो-हल्ला मत कीजिए। स्वागत कीजिए। एक बड़ी बीमारी के खात्मे के लिए सर्जरी की शुरुआत हो गई है। अनुच्छेद 370 वैसे भी कोई स्थाई अनुच्छेद नहीं था। संविधान में अनुच्छेद 370 को अस्थाई धारा के तौर पर ही जगह मिली थी। बाद के दिनों में इसे प्रेसिडेंशियल ऑर्डर से कभी भी हटाने का रास्ता भी साफ हो गया था। ये दोनों काम कांग्रेस की सरकारों ने ही किया था। इसलिए आज उस फैसले का विरोध कांग्रेस नहीं करे जिसका रास्ता खुद कांग्रेस ने साफ किया था। एक किस्म के कैंसर के इलाज के लिए ये सर्जरी ज़रूरी थी। स्वागत कीजिए और उस जम्मू-कश्मीर में सारे बड़े नेता पहुंचिए जहां इसका बड़ा असर संभावित है। जाइए और लोगों का भरोसा जीतकर 15 अगस्त के महात्यौहार की तैयारी कीजिए। तिरंगा लहराइए और कश्मीरियत के रंग में रंग जाइए। हां, सारे लोग इस बात का ख्याल ज़रूर रखिएगा कि गुमराह अवाम को रास्ता दिखाना भी राजसत्ता का धर्म है। अपनों का भरोसा जीतना राजसत्ता की जिम्मेदारी है।

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समाचार प्लस न्यूज चैनल के बेबाक एंकर असित नाथ की एफबी वॉल से.

Girish Malviya : यकीनन आज का राज्यसभा में जो भी अमित शाह ने कहा और किया, यह वाकई बड़ा और बोल्ड कदम है क्योंकि अभी तक मोदी सरकार का रुख यह रहा है कि दो तिहाई बहुमत होने पर धारा 370 को हटाया जाएगा. दूसरी बात यह है कि अभी तक 370 को हटाने के लिए संविधान संशोधन की बात की जाती रही है. अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को लेकर कहा था कि सालों से बने रहने के चलते अब यह धारा एक स्थायी प्रावधान बन चुका है, जिससे इसको खत्म करना असंभव हो गया है. इसलिए सरकार के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज जरूर किया जाएगा. लेकिन मोदी सरकार ने हजारो If and But को परे हटाते हुए एक निर्णायक पहल की है, आज इस बात को स्वीकार करना चाहिए. होइहि सोइ जो राम रचि राखा…

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इंदौर के निवासी और सोशल मीडिया के चर्चित लेखक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

Nitin Thakur : गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ कर दिया है कि वो जो कुछ कर रहे हैं उसका रास्ता सरकार ने कैसे निकाला। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के अंदर ही इसका प्रावधान है। केंद्र जो फैसला करता था उसे जम्मू-कश्मीर की विधानसभा अगर माने तो ही वो लागू हुआ करता था। अब चूंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा है तो साफ है कि राष्ट्रपति के आदेश मुताबिक संसद फैसले ले सकती है। अलग से उसे पास कराने की ज़रूरत बची ही नहीं।

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इससे कुछ बातें साफ हैं। पहली तो ये कि जब महबूबा ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की थी तो केंद्र ने राज्यपाल के सहारे इसे जानबूझकर फेल किया था। आपको याद होगा तब ये कहा गया था कि राजभवन की फैक्स मशीन खराब थी इसलिए महबूबा का फैक्स आया ही नहीं। लग रहा है कि बीजेपी ने राज्यपाल शासन को आगे बढ़ाया ही इसलिए था क्योंकि वो अनुच्छेद 370 को दंतहीन बनाने की तरफ बढ़ रही थी, जिसके लिए ज़रूरी था कि वहां सरकार ना बने सके।

सच तो ये है कि मोदी सरकार ने कुछ भी असंवैधानिक ढंग से नहीं किया बल्कि संविधान से ही नुक्ते खोजकर बदलाव लाया गया है। अनुच्छेद 370 एक टेंपरेरी प्रावधान था और ये खुद नेहरू की सरकार भी मानती थी। इसे एक दिन खत्म होना था और आज भी ये खत्म नहीं हुई है बल्कि उस तरफ एक कदम बढ़ाया गया है। दिक्कत ये है कि जम्मू-कश्मीर ने भारतीय संघ से दोस्ती जिन शर्तों पर की थी उन्हें निरस्त करने का तरीका गलत है। जम्मू-कश्मीर के उन अलगाववादियों की बात करना बेकार है जो पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं या अलग होना चाहते हैं। उनकी कल्पनाएं व्यर्थ हैं और कोई भी उनका समर्थन नहीं करेगा। सवाल उन नेताओं का है जो भारत के संविधान में विश्वास रखते हुए अब तक चुनाव लड़ रहे थे और उन्हीं के सहारे दुनिया में संदेश जा रहा था कि कश्मीरी आवाम खुद को भारतीय मानता है।

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कश्मीर के ऐसे नेताओं को भरोसे में ना लेना सरासर गलत है। पीडीपी वो दल है जिसका नेता देश का गृहमंत्री रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस वो दल है जिसके लोग बिना हथियार के उन हमलावरों से लड़े थे जिन्हें 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर में भेजा था। फारुक अब्दुल्ला तो कश्मीर में राष्ट्रवादी नारे लगाने के लिए विख्यात रहे। अनुच्छेद 370 में ऐसी ना जाने कितनी बातें हैं जो सत्तर साल बाद खत्म होनी चाहिए और वाजपेयी-मनमोहन ने इसके लिए सबकी सहमति का रास्ता चुना था। वर्तमान सरकार बांह मरोड़कर फैसले ले रही है जिस पर सिर्फ वही खुश हो सकता है जो सहमति की ताकत ना समझता हो। हिंदूवादी संगठन अगर खुश हैं तो क्या ये समझना मुश्किल है कि वो आखिर खुश किस बात पर हो रहे हैं? ना तो नेहरू, ना पटेल और ना कोई भारतीय अनुच्छेद 370 के लगे रहने का समर्थक हो सकता है। इसे हटना था, हटना चाहिए भी लेकिन सिर्फ इतिहास में नाम दर्ज कराने का लोभ अगर सरकार को इसे कच्चे मौके पर इस तरह हैंडल करने के लिए मजबूर कर रहा है तो ये गंभीर बात है। अब होना ये चाहिए कि महबूबा और उमर को बुलाकर बात की जानी चाहिए और उनके भरोसे ज़मीन पर कश्मीरियों को समझाना चाहिए कि ऐसी किसी धारा का लगे रहना उनके भले में भी नहीं है। उन्हें बाकी तमाम राज्यों की तरह भारतीय संघ का हिस्सा बन जाना चाहिए। अगर सरकार ऐसा करने में फेल रही तो सिर्फ कागज़ों से कोई धारा भले हट जाए मगर दिलों में वो दीवार की तरह खड़ी रहेगी।

चर्चित ब्लागर और पत्रकार नितिन ठाकुर की एफबी वॉल से.

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Narendra Nath : 370 हटाने के फैसले में कोई हैरानी नहीं होनी चाहये। न इसपर बीजेपी पर सवाल उठ सकता है। पार्टी ठोक कर,खुल कर इस मुद्दे पर चुनाव पूर्व स्टैंड लेकर वोट मांगती रही है। जाहिर है,कोई धोखा नहीं दिया है। मुझे तब हिप्पोक्रेसी लगती है जब चुनाव पूर्व कुछ बोलें और चुनाव बाद कुछ। जाहिर है, आप फैसले से सहमत हो या नहीं, आप इनके नियत पर सवाल नहीं उठा सकते। हां, सवाल उमर या महबूबा के लिए है जो बीजेपी के रुख को जानते हुए भी सत्ता भोग सकती है तो अब क्यों रूदाली?

पत्रकार नरेंद्र नाथ की एफबी वॉल से.

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Nadim Akhter : कश्मीर पे दुकानदारी बहुत हो रही थी। अगर राष्ट्र मजबूत है तो संघ के सदस्य राज्य मजबूती से इसके साथ जुड़े होने चाहिए। कश्मीर के राजा ने अपनी रियासत को हिंदुस्तान में मिलाया था, मगर कुछ शर्तों के साथ। अंग्रेजों के बनाये नियम से वे कश्मीर को पाकिस्तान में भी मिला सकते थे। पर बात नीयत की है। कश्मीर में राजनीति की दुकानदारी हो रही थी। स्थानीय नेता पाकिस्तान के हाथों में खेल रहे थे। लंबे समय से। अगर आप चीन की तरह मजबूत हैं तो तिब्बत को अपने हाथ से नहीं जाने देंगे, फिर चाहे कोई कितना भी हल्ला करता रहे।

अगर मैं भी देश का गृहमंत्री होता तो कश्मीर को भारतीय संघ के अंदर बिना कोई शर्त ले आता। 1947 में क्या हुआ, वो परिस्थितियां अलग थी। आज 70 साल बाद कश्मीर हमारे कब्जे संघ में शामिल होगा, बिना कोई स्पेशल स्टेटस के। पूर्वोत्तर के जितने राज्यों (नागालैंड आदि) को अलग-अलग जो स्टेटस मिले हुए हैं, वह भी खत्म होना चाहिए। मेरा वश चले तो मैं पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी भारत में मिला लूँ। विभाजन का फैसला गलत था। हम हिन्दू-मुसलमान के नाम पे लड़ते रहेंगे, ये सिलसिला चलेगा अभी, तब तक जब तक हम ये समझ नहीं जाएंगे कि इस देश से ना हिंदुओं को खत्म किया जा सकता है और ना मुसलमानों को। अंत में दोनों को मिलकर साथ ही रहना है।

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बस एक चिंता है। कश्मीर के साथ हमें कश्मीरियों को भी अपनाना होगा। कश्मीर कोई ज़मीन नहीं है, वह एक ज़िंदा कौम है और ये भी सच है कि मुस्लिम कश्मीरियों की एक जमात पाकिस्तान के साथ जाना चाहती है। उनको हमें प्यार से जीतना होगा। इसके लिए दूरदर्शी नीति बनानी पड़ेगी। बुलेट से हल नहीं निकलेगा। राजसत्ता की बंदूक घाटी में आतंकवाद को ही बढ़ाएगी। अपनी नीतियों से हमें पाकिस्तान को वहां अलग थलग करना होगा ताकि कश्मीरी उसके हाथ में ना खेल सकें। यानी गरम और नरम दोनों रुख चाहिए। कुछ कुछ ठीक वैसा ही, जैसे नक्सल समस्या से निपटने के लिए हम नक्सलियों को समर्पण करवाकर देश की मुख्यधारा में लाते हैं। बाकी कानून धारा 370 पे बड़ा जटिल है। जानकार कहते हैं कि 370 हटाएंगे तो कश्मीर भारत का अंग ही नहीं रहेगा क्योंकि इसी के तहत वह भारतीय संघ में सम्मिलित हुआ था। यहां संसद का बनाया कानून/ संशोधन भी मान्य नहीं होगा, क्योंकि ये कश्मीर के भारत में शामिल होने की कड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट भी अपने एक फैसले में धारा 370 को मान्यता दे चुका है। सो लम्बी कानूनी लड़ाई चल सकती है।

इस मामले में पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ हुआ है, जिसका खुलासा बाद में होगा। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के सामने यूं ही नहीं कहा था कि कश्मीर मामले पे वो मध्यस्थता करने को तैयार हैं। बैक चैनल से बहुत कुछ हुआ होगा। इसलिए अभी ये स्थिति साफ नहीं है कि पाकिस्तान के कब्जे में जो कश्मीर है ( POK), उसकी हैसियत क्या होगी? क्या उसे पाकिस्तान को देकर LOC को स्थायी अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर बना दिया जाएगा? और चीन के कब्जे में जो कश्मीर का हिस्सा है, उसका क्या होगा? क्या भारत और पाकिस्तान उसे हमेशा के लिए चीन को दे रहे हैं? ( बदले में कुछ लेंगे भी)। कुछ कुछ ऐसी ही कोशिश मुशर्रफ और वाजपई जी ने की थी पर आडवाणी जी के लँगड़ी मारने से मुशर्रफ बीच में ही आगरा से उड़ लिए। कश्मीर पे आगे क्या होगा, इस पे पूरी दुनिया की नज़र है क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु सम्पन्न देश हैं। इसलिए ये लिख कर रख लीजिए कि आज धारा 370 पर भारत सरकार ने जो ऐलान किया है, उसके लिए अमेरिका को पहले विश्वास में लिया गया है और सारे मित्र देशों को भी। अभी ये आगाज़ है। आगे बहुत कुछ होगा।

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वरिष्ठ पत्रकार नदीम एस. अख्तर की एफबी वॉल से.

Arvind Pathik मोदी के ज़्यादातर फैसलों से असहमत रहता हूं, पर यह एकदम सही औऱ साहसी फैसला है.

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