Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

जिला संवाददाता के लिए सीएम को आंख दिखाने वाले दिग्गज संपादक केबी माथुर को जानिए..

बात 80-90 के दशक में हिंदी पत्रकारिता से शुरू करें तो हिंदी को अंग्रेजी पत्रकारिता के ऊपर का ओहदा दिलाने में किसी पत्रकार का जिक्र होगा तो कमलेश बिहारी माथुर या केबी माथुर या फिर माथुर साहब जो आप कह लीजिए, का नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा. केबी माथुर ही वह शख़्सियत थे जिन्हें अमृत बाज़ार पत्रिका के महान पत्रकार तुषार कांति घोष ने इलाहाबाद से अमृत प्रभात नामक समाचार पत्र निकालने के लिए चयनित किया था और फिर उन्हें अपनी टीम बनाने के लिए अधिकृत किया था.

माथुर साहब ने अपनी टीम के लिए एक से एक नायाब नायकों को चुना था जो पत्रकारिता जगत में वर्षों से अपनी रोशनी बिखेर रहे थे. हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पर जो लोग आज हैं, उनमें अधिकतर को माथुर साहब ने अपनी कलम से तराश कर इस मुकाम तक उड़ान भरने का हौसला दिया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

केबी माथुर अमृत प्रभात में समाचार संपादक के रूप में आने से पहले लखनऊ के स्वतंत्र भारत समाचार पत्र में मुख्य उप संपादक रहे थे. समाचारों की पहचान और संपादन के मामले में उनकी पकड़ काबिलेतारीफ थी. यही कारण रहा कि उन्हेंनया अख़बार निकालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. असल में पत्रिका समूह ने जब अमृत प्रभात शुरू करने की योजना बनाई तो उस समय नॉदर्न इंडिया पत्रिका नाम से अंग्रेजी में पहले से ही एक अख़बार प्रकाशित होता था, पत्रिका के मालिकों की सोच थी कि कुछ हिंदी के पत्रकार रख कर उनसे अंग्रेजी की खबरों का अनुवाद करके हिंदी का अख़बार निकाल लिया जाएगा. खर्चा भी कम लगेगा.

लेकिन माथुर साहब ने पहली ही मुलाकात में मालिकान से स्पष्ट कर दिया था कि वह दोयम दर्जे का अख़बार नहीं निकालेगें. वह जो अख़बार निकालेगें वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र अख़बार होगा, किसी दूसरी भाषा के अख़बार पर आश्रित न होकर हिंदी अख़बार की अपनी टीम होगी. अपनी सोच और अपने व्यक्तित्व से माथुर साहब ने पहली मुलाकात में मालिकों को प्रभावित कर लिया और उन्हें पूर्ण रूप से स्वतंत्र अख़बार निकालने और अपनी टीम बनाने की इजाज़त मिल गई.

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह माथुर साहब की पहली मुलाकात पर पहली सफलता थी और उसके बाद लगभग दो दशकों तक उन्होंने अमृत प्रभात में खबरों के चयन से लेकर नियुक्ति तक किसी भी मामले में किसी की भी दखलंदाज़ी नहीं चलने दी.

माथुर साहब के बारे में कहा जाता है कि वे कभी खबरों से कोई समझौता नहीं करते थे. मंत्रियों की घुड़की में नहीं आए. उनसे जुड़ा एक किस्सा बताया जाता है कि, एक जिला संवाददाता को निकालने की सिफारिश उस समय के प्रभावशाली पॉलिटीशियन अरुण नेहरू ने की, लेकिन माथुर साहब ने नकार दिया. तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने भी माथुर साहेब को सीएम आवास में बुलाकर रात्रि भोज के दौरान संवाददाता को निकालने की सिफारिश की लेकिन माथुर साहब टस से मस नहीं हुए. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री का काम अख़बार के मसलों में दखल देने का नहीं है.’

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस बात से नाराज एनडी तिवारी ने केबी माथुर साहब की शिकायत पत्रिका के मालिक तरुण कांति घोष से की. जो कांग्रेस के सांसद भी थे. तरुण कांति घोष लखनऊ आए और सीएम आवास पहुंचे, जहां उन्होंने माथुर साहब से कहा.. ‘देखो माथुर, तिवारी जी क्या कह रहे हैं, शायद उनको किसी संवाददाता से शिकायत है, तिवारी जी मेरे छोटे भाई हैं लेकिन मुख्यमंत्री हैं, इनकी बात सुन लो.’

इसके जवाब में केबी माथुर ने स्पष्ट रूप से कहा कि, ‘अगर संवाददाता कहीं गलत हो तो उसे निकालने में उन्हें कोई गुरेज नहीं लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं निकाल देगें कि उसने अरुण नेहरू के खिलाफ खबर लिखी है और अरुण नेहरू एक शक्तिशाली व्यक्ति हैं.’

Advertisement. Scroll to continue reading.

सीएम आवास से बाहर आकर तरुण कांति घोष ने केबी माथुर से कहा, ‘माथुर, मैंने अपना काम कर दिया, अब आप अपना काम करिए, जो आपके मन में हो.’ निश्चित रूप से यह वाक्य बताता है कि तरुण कांति घोष ने भी अपनी दोनों जिम्मेदारी बखूूबी निभाई, पार्टी का कार्यकर्ता होने की और अख़बार का प्रोफेशनल मालिक होने की. ऐसे मालिक भी मुश्किल से ही मिलते हैं.

बहुत कम लोगों को शायद मालूम हो कि माथुर साहब मुख्यतः इटावा के रहने वाले थे. यहीं से स्कूली शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया और फिर लखनऊ विश्विद्यालय से हिंदी में मास्टर्स किया. पत्रकारिता का जुनून भी यहीं से चढ़ा. बताया जाता है कि उस दौरान उनका चयन भारत सरकार के जन संपर्क विभाग में फील्ड ऑफिसर के पद पर हो गया और चमोली में नियुक्ति भी मिल गई. इस नौकरी में दो-गुना वेतन, सरकारी गाड़ी और अन्य सुविधाएं थीं लेकिन माथुर साहब ने उस समय स्वतंत्र भारत में उप-संपादक की आधे वेतन और बिना सुविधाओं की नौकरी को तवज्जो दिया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

संपादक सत्यनारायण जायसवाल जी के अवकाश ग्रहण कर लेने के बाद माथुर साहब ही अमृत प्रभात के संपादक बने और बखूबी इसका कार्यभार संभाला. अमृत प्रभात, इलाहाबाद और लखनऊ दोनों जगह से बंद होने के बाद माथुर साहब को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा. संस्थान में बीस वर्ष गुज़ारने और मालिकों की लापरवाही व गलत निर्णयों से संस्था डूबने की तरफ बढ़ चली. मालिकों के बढ़ते खर्चे रूकने का नाम नहीं ले रहे थे.

इसी बीच दिल्ली की एक बड़ी कंपनी ‘मॉनेट इस्पात एंड एनर्जी’ ने उन्हें अपनी कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की पोस्ट ऑफर की. वेतन था वर्तमान से चार गुना ज्यादा, साथ में अन्य सुविधाएं. यह बड़ी चुनौती थी पत्रकारिता की दुनिया से अलग. लेकिन माथुर साहब ने नई चुनौती स्वीकार कर ली. नए क्षेत्र का अध्ययन शुरू किया. अपने व्यक्तित्व में वक़्त की मांग के अनुरूप बदलाव किया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

केबी माथुर ने पत्रकारिता की दुनिया में झंडे गाड़ने के बाद पेट्रोलियम के क्षेत्र में न सिर्फ अपना झंडा फहराया बल्कि लोगों के लिए एक प्रेरणा भी बने की किसी एक भूमिका में टाइप्ड ना होकर जीवन को हर तरह की चुनौतियों को झेलने लायक तैयार रखना चाहिए.

यहां लगभग दशक भर काम करने के बाद उम्र की डिमांड को देखते हुए अंततः 78 साल की आयु में उन्होंने इस कंपनी को गुड बाय कह दिया. बहरहाल, इस कंपनी ने उन्हें वह सब कुछ दिया जो दो दशक की नौकरी में पत्रिका ग्रुप नहीं दे पाया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इनपुट है कि आजकल केबी माथुर साहब, पत्नी श्रीमती कुमकुम माथुर के साथ दिल्ली के नजदीक वैशाली में रहते हैं. इसके अलावा उनका अधिकतर समय कनाडा में बेटे तन्मय, बहू प्रियंका और तीन साल की पोती आद्या के साथ बेहद शानदार बीतता है.

नीचे पढ़िए विवाह की 50वीं वर्षगांठ पर पत्नी के लिए लिखी गयी कुछ पंक्तियां…

Advertisement. Scroll to continue reading.

के बी माथुर-

Advertisement. Scroll to continue reading.
Advertisement. Scroll to continue reading.
Advertisement. Scroll to continue reading.
Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और संपादक सुभाष राय आज फ़ेसबुक पर लिखते हैं-

Advertisement. Scroll to continue reading.

आदरणीय कमलेश बिहारी माथुर मेरे पत्रकार जीवन के पहले शिक्षक संपादक रहे। वह 1980 से 86 के बीच का समय था, जब उनके निर्देशन में काम करने का अवसर मिला। मैं युवा था, बहुत शरारती लेकिन बहुत मेहनती। माथुर साहब हर शरारत को रचनात्मक ऊर्जा में बदल देने का हुनर जानते थे। उनके साथ काम करना आनंद और स्फूर्ति से भर देने वाला होता था। वे बंदिशों पर यकीन नहीं करते थे, कुछ नया करने का पूरा मौका देते थे। यह मेरे लिए सीखने और सीखते हुए कुछ नया कर गुजरने का दौर था। मैं जो कुछ हूँ, उसमें माथुर साहब का बड़ा योगदान है। कभी- कभी उनसे मुलाकात होती है तो वे अपने बच्चों की तरह स्नेह देते हैं, खुशी से भर जाते हैं। आज भी वे पूरी तरह सक्रिय, जीवंत हैं। मैं चाहूँगा कि वे इसी तरह रहें। उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन के 50 वर्ष पूरे किये। बहुत शुभकामनाएँ। स्नेह मधुर ने याद दिलाया। उन्हें धन्यवाद।

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. शैलेश श्रीवास्तव

    December 26, 2023 at 11:16 pm

    इस खबर को उन्हें पढ़ना चाहिए जो गोदी मीडिया का रोना रोते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement