पिछले कुछ महीनों से भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) लगातार कई वजहों से खबरों में है. इन दिनों संस्थान के एक छात्र द्वारा महानिदेशक को लिखा गया एक पत्र चर्चा का विषय बना हुआ है. पूरा पत्र इस प्रकार है…
सेवा में,
श्री के जी सुरेश जी
महानिदेशक,
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली
विषय: संस्थान में व्याप्त असीमित गुंडागर्दी के संदर्भ में
श्रीमान महोदय,
प्रार्थी आशुतोष कुमार राय, हिंदी पत्रकारिता का विद्यार्थी हूँ| महोदय मैं एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूँ| यहां से मिली कर्तव्य और ईमानदारी को बचाये रखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ| श्रीमान मध्यम वर्गीय परिवार के ताने-बाने ने मेरे अंदर स्वाभिमान भी कूट-कूट कर भरा है| मेरी यह कोशिश भी रहती है कि खुद को इस प्रकार बना सकूं जिससे मेरे अभिभावक मुझ पर फक्र महसूस कर सकें| महोदय मैं एक विद्यार्थी हूँ और बहस के साथ विचारों के आदान-प्रदान के हरेक माध्यमों में गहरी आस्था रखता हूँ| गाँधी के आदर्शों पर खड़ी की गयी लोकतंत्र के संसद और बाबा साहब के संविधान को अपना धर्म और धर्मग्रंथ मानता हूँ| यह मेरे लिए गीता और कुरान से सर्वोपर है क्योंकि संविधान ने मुझे सबके समान बताया है और अभिव्यक्ति और आलोचना करने की स्वतंत्रता दी है| व्यक्ति से लेकर शासन-प्रशासन की निरंकुशता पर सवाल उठाना हरेक प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी का आवश्यक लक्षण है| बात जब पत्रकारिता के विद्यार्थी की हो तो यह उसका लक्षण नहीं परम कर्तव्य है.
महोदय लेकिन अब यह कर्तव्य का निर्वहन कुछेक लोगों के लिए गले की हड्डी बनती हुई नजर आ रही| हमारे द्वारा लिखे गए लेखों पर वह गुंडों की तरह संस्थान परिसर में मारपीट की धमकी और गाली-गलौज करते हैं| गाय को माँ कहने वाले राघवेंद्र सैनी (हिंदी पत्रकारिता) और मुदित शर्मा (हिंदी पत्रकारिता) हमें माँ-बहन की गालियां देते हुए हाथापाई पर उतर आते हैं| साथ ही साथ आरएसएस के साथ अपने दिव्य संबंधों का हवाला देते हुए आप के संरक्षण का गुणगान करते हैं| उनको लेकर यह मेरी व्यक्तिगत शिकायत नहीं है |आये दिन वह यह अव्यवहारिक दुस्साहसिक कार्य को अंजाम देते हैं|यह देखा भी गया है की प्रशासन की तरफ से भी इनकी सक्रियता का बकायदे सहयोग लिया जाता है| ताज़ा उदाहरण है विवेकानंद फाउंडेशन और भारतीय जनसंचार संस्थान के सहयोग से कराया गया ‘कम्युनिकेटिंग इंडिया’ सेमिनार जिसमें इन दो चार लोगों की उपस्थिती पर हमने सवाल उठाये थे| हमारा सवाल था की जब दो सौ से भी ज्यादा विद्यार्थी संस्थान में मौजूद हैं फिर यहीं गिने-चुने ही लोग हर सेमिनार को किसकी अनुमति से अटेंड करते हैं| इस सवाल से तिलमिलाए विशेषकर इन दो लोगों ने मुझसे निपटने की धमकी दी|
इनकी धमकियों में जो गुंडई का पुट था वह कुछ ऐसा था की पहले तो यह पुस्तकालय के बाहर हमारे साथी अंकित कुमार सिंह से हाथापाई और फिर बाद में मारपीट की धमकी दी, साथ ही साथ उनके फेसबुक पोस्ट को हटाने की मांग की| चूंकि पोस्ट को मैंने भी सराहा था इसलिए उसके अगले दिन मुझको भी ”अगला नजीब” बनाने की चेतावनी दी| मुदित शर्मा और राघवेंद्र सैनी ने गाली देते हुए संस्थान से बाहर मेरी औकात बताने के लिए अपनी बात रखी जिसको मैं सिर्फ त्वरित उत्साह का परिणाम नहीं मानता|
महोदय मैं एक निर्भीक विद्यार्थी हूँ जो कहीं से भी इस संस्थान और भारतीय लोकतंत्र केलिए अपराध की श्रेणी में नहीं आता| इस स्थिति में अगर मेरे साथ कोई भी दुर्घटना घटित होती है तो इसके लिए सीधे तौर पर संस्थान प्रशासन जिम्मेदार होगा| साथ ही साथ मैं यह जानना भी चाह रहा की जिस तरह से इनको हमारे ऊपर वरीयता दी जा रही इसके पीछे के मुख्य कारण क्या है? क्या सच में इनको असीमित छूट दी जा चुकी है क्योंकि न तो पिछली शिकायतों पर कोई कारावाई होती है न ही इनको कोई सजा होती है| महोदय सरकारी और गैर सरकारी हरेक सेमिनारों में आपके साथ इनकी खिलखिलाती तस्वीरें सोशल मीडिया पर बकायदे प्रकाशित और सम्पादित होती रहती है, इसलिए आपकी घनिष्टता को लेकर एक आश्चर्यजनक आश्वस्ति जेहन में उतरती है|
महोदय आर टी वी विभाग के वैभव ने भी मुदित की शिकायत की थी जिसमें मुदित ने वैभव को हॉस्टल में आकर मारने की धमकी दी थी |इस पर अनुशासनात्मक कारावाई का आज तक इंतज़ार है| मैं इंतज़ार का धीरज नहीं रख पाऊंगा| मैं चाहता हूँ की आप इन पर अनुशासनात्मक कारावाई करें| यह कार्यवाई निष्पक्ष रूप से हो इसके लिए दोनों लोगों को तत्काल प्रभाव निलंबित कर जाँच होने तक संस्थान से बाहर रखा जाय| मैं संस्थान से उम्मीद रखता हूँ की मेरी शिकायत पर तत्काल प्रभाव से कार्यवाई की जायेगी अन्यथा मुझे सुचना प्रसारण मंत्रालय का दरवाजा खटखटाना होगा | अगर मेरी बातों को वहां भी अनसुना किया जायेगा तो अंततः मुझे संस्थान परिसर में भूख़ हड़ताल पर जाना पड़ेगा |
प्रार्थी
आशुतोष कुमार राय
हिंदी पत्रकारिता
९५४०४१५४७२