Sanjaya Kumar Singh
हिन्दी के सारे अखबार पढ़ जाइए और अंग्रेजी में एक टेलीग्राफ… टेलीग्राफ से आपको सूचना ज्यादा मिलेगी… शीर्षक से लेकर तस्वीर तक अनूठी होगी… कल भी पहली खबर आई कि माल्या ने भारत छोड़ने से पहले वित्त मंत्री से मुलाकात की थी… अरुण जेटली ने मुलाकात स्वीकार तो की पर कहा मैंने कभी उन्हें मिलने का समय नहीं दिया…
उन्होंने राज्यसभा सदस्य होने के विशेषाधिकार का दुरुपयोग किया और मैं अपने कमरे में जा रहा था तो दौड़ते हुए आए और मैंने उनकी बात नहीं सुनी… आज (13 सितंबर 2018 को) मीडिया ने इस खबर को इतना ही चलाया-दिखाया… खबर इतनी ही नहीं है…
जेटली ने भले ही माल्या के दावे को “तथ्यात्मक रूप से गलत या झूठा” कह दिया पर वह सच साबित हो चुका था… मैंने मिलने का समय नहीं दिया और राज्य सभा में वो मिल लिए – से बात स्पष्ट है… बाद में माल्या ने स्वयं कहा कि वे जेटली से संसद में मिले थे…
इस बारे में टेलीग्राफ ने लिखा है कि माल्या ने सरकार के स्मृति लोप को ठीक कर दिया और बताया कि कैसे वे जेटली से मिले… टेलीग्राफ ने इस खबर को पहले पेज पर लगभग आधे में छापा है… खबर में जो विस्तार और सूचनाएं हैं वो भले दुर्लभ न हों पर मौके पर पेश की गई हैं…. दो शब्दों के शीर्षक, “द जेटलैग” का जवाब नहीं…. क्या नहीं है इन दो शब्दों में…. हिन्दी अखबारों का जो हाल है वो तो है ही, उस पर आज दैनिक भास्कर ने सूचना दी है कि नेट पर भी वह मुफ्त नहीं मिलेगा… मतलब अब भास्कर देखना बंद… जय श्रीराम…
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
इसी मुद्दे पर देखिए ये दो टिप्पणियां…
Ajay Setia : संसद के सेंट्रल हाल में हुई मीटिंग को औपचारिक मीटिंग नहीं कहा जा सकता । वहां तो हर रोज, हर पल सब के सामने मीटिंग होती है । कांग्रेस और भाजपा के नेताओं की दिन में दस बार मीटिंग होती है । सोनिया राहुल को भी कितने ही भाजपाई सांसद मिलते हैं।
Sanjaya Kumar Singh आप सही हैं। बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। यही तो जेटली कह रहे हैं और माल्या ने बाद में करेक्शन कर दिया कि वो संसद में ही मुलाकात की बात कह रहा था और एएनआई की खबर है कि उसने साफ कहा है कि वह जेटली को बता चुका था कि वह लंदन जा रहा है। वैसे, अनौपचारिक मुलाकात में (राज्य सभा का सदस्य होने के विशेषाधिकार का दुरुपयोग करते हुए) यह निवेदन किया जा सकता है कि लुक आउट नोटिस में शब्द बदल जाएं … ये आरोप किसी पप्पू के नहीं सुब्रमणियम स्वामी के हैं जो उन्होंने पहले लगाए थे और कल के माल्या के आरोप के बाद किसी ने उसे रीट्वीट किया …। वित्त मंत्रालय में औपचारिकता चलती हो अदालतों में और वकालत में मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों का भी होता है। पीएल पूनिया ने कहा है कि वे लोग पहले खड़े-खड़े और फिर बैठकर बात करते रहे। इसकी पुष्टि सीसीटीवी के रिकार्डिंग से हो सकती है। फिर मुलाकात औपचारिक हो या अनौपचारिक क्या फर्क पड़ता है?
https://www.youtube.com/watch?v=UmK1ihBhbN0