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सुख-दुख

मथुरा की मीडिया शहर के कोतवाल पर मेहरबान है या वाहन चोर गैंग पर?

अब तक आपने पुलिस की कार्यप्रणाली के खट्टे-मीठे अनुभव बहुत देखे और सुने होंगे किन्तु लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया के अनुभव शायद कभी-कभी महसूस किये होंगे या सुने होंगे लेकिन मेरे साथ घटी घटना को सुनकर शायद लोकतंत्र शर्मिंदा हो जाये लेकिन दोलत के भूखे भेड़ियों की सेहत पर इसका कोई असर पड़ेगा इसकी मुझे भी कल्पना नहीं है। वैसे मैने ढ़ाई दशक के पत्रकारिता के कार्यकाल में अपनी कलम के माध्यम से हजारों पीड़ितों की निस्वार्थ मदद कर उन्हैं राहत दिलाई है लेकिन पिछले दिनों 20 फरवरी को मेरे कार्यालय के बाहर से मेरी बाइक न. यूपी 85 यू 5666 चोरी हुई तो मुझे पुलिस के साथ-साथ मीडिया के सहयोग की जरूरत महसूस हुई। जिसमें पहले तो मुझे पुलिसिया कार्यशैली का सामना करना पड़ा और मथुरा कोतवाल से तड़का-भड़की हुई और जिसके चलते तहरीर लेने से इंकार कर दिया गया।

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अब तक आपने पुलिस की कार्यप्रणाली के खट्टे-मीठे अनुभव बहुत देखे और सुने होंगे किन्तु लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया के अनुभव शायद कभी-कभी महसूस किये होंगे या सुने होंगे लेकिन मेरे साथ घटी घटना को सुनकर शायद लोकतंत्र शर्मिंदा हो जाये लेकिन दोलत के भूखे भेड़ियों की सेहत पर इसका कोई असर पड़ेगा इसकी मुझे भी कल्पना नहीं है। वैसे मैने ढ़ाई दशक के पत्रकारिता के कार्यकाल में अपनी कलम के माध्यम से हजारों पीड़ितों की निस्वार्थ मदद कर उन्हैं राहत दिलाई है लेकिन पिछले दिनों 20 फरवरी को मेरे कार्यालय के बाहर से मेरी बाइक न. यूपी 85 यू 5666 चोरी हुई तो मुझे पुलिस के साथ-साथ मीडिया के सहयोग की जरूरत महसूस हुई। जिसमें पहले तो मुझे पुलिसिया कार्यशैली का सामना करना पड़ा और मथुरा कोतवाल से तड़का-भड़की हुई और जिसके चलते तहरीर लेने से इंकार कर दिया गया।

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इसकी जानकारी मैने सभी मीडिया कर्मियों को लिखित तथा मोबाइल द्वारा दिये जाने के बावजूद भी दो-तीन पत्रकारों ने जो पुलिस की दलाली से दूर रहते हैं उन्होंने तो बाइक चोरी का समाचार प्रकाशित किया लेकिन प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रकार बाइक चोरी की घटना को छिपा गये। मेरे द्वारा करीब दो दर्जन करीब पत्रकारों से सहयोग की अपेक्षा की लेकिन कोई कोई मेरे साथ मदद के लिए खड़ा हुआ नजर नहीं आया। बल्कि कोतवाली पुलिस द्वारा पकड़े गये बाइक चोर गैंग की मदद करते हुऐ कई पत्रकार कोतवाली के चक्कर लगाते नजर आये। इसके अलावा कई लोग मुझे मीडिया कर्मियों को पार्टी, गिफ्ट, लिफाफा उनके साथ खर्चा करने या फिर पुलिस से लेन-देन कर एफआईआर दर्ज कराने का सुझाव देते रहे। जिसे मेरे जमीर ने मंजूर नहीं किया।

मीडिया की कार्यशैली को देखकर मुझे लगा कि जब मेरे साथी मीडिया कर्मियों का एक पुराने पत्रकार के साथ यही व्यवहार है तो उनका आम जनता और पीड़ितों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा। इसे देखकर मैने अपने मित्र स्वच्छ छवि के तेज तर्रार मथुरा बार एशोसियेशन के तत्कालीन अध्यक्ष एवं वर्तमान प्रत्याशी विजयपाल सिंह तौमर एड. जिन्होंने जवाहरबाग को भी कब्जाईयों के कब्जे से जनहित याचिका के माध्यम से मुक्त कराया था को पूरी घटना से अवगत कराया तो उन्होंने एसएसपी मथुरा से मोबाईल पर सम्पर्क स्थापित किया लेकिन वार्ता न होने पर अगले दिन वह मेरे साथ एसएसपी कार्यालय पहुंचे जहां एसएसपी की अनुपस्थिति में एसपी क्राइम राजेश कुमार सौनकर से मुलाकात कर पुलिस की कार्यप्रणाली से अवगत कराया। जिसके बाद बाइक चोरी की घटना पांच दिन बाद दर्ज हो सकी। लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बावजूद भी बाइक चोरी की खबर की एक लाइन भी प्रकाशित नहीं की गई।

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मथुरा की मीडिया मथुरा कोतवाल पर मेहरबान है या फिर वाहन चोर गैंग पर यह तो वही जाने अथवा फिर मुझसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है यह मेरी जानकारी से बाहर है। लेकिन मैं आम जनता पीड़ितों, शोषितों के साथ – साथ मीडिया कर्मियों के हर सुख-दुःख में अवश्य शामिल होता रहा हूं। इसके बावजूद भी मेरे साथ मीडिया के हुऐ इस व्यवहार ने – ‘‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’’ की कहावत को सटीक चरितार्थ किया। एक तरफ प्रैस वार्ता के नाम पर समौसे, पकौड़े, लिफाफे, पटका, शराब की बोतल, कपड़े, तस्वीर की चाहत में पत्रकारों की भीड़ नजर आती है। बल्कि इसके बदले रस्सी को सांप बनाने में भी अपनी शान समझतें हैं। लेकिन मीडिया खबर अथवा सहयोग के बदले किसी अपने पीड़ित पीड़ित भाई से भी सुविधाशुल्क या फिर किसी अन्य सुविधा की उम्मीद करे तो उससे ज्यादा और शर्मनाक क्या हो सकता है।

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मीडिया के इस व्यवहार को देखकर मुझे देश के रक्षामंत्री एवं पूर्वजनरल वी.के. सिंह के वो शब्द याद आ रहे हैं कि ‘‘पत्रकारों की स्थिति वैश्याओं से भी बदतरहै’’ जो आज के माहौल में सटीक साबित हो रहे हैं। जो दौलत और दलाली की चाहत में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ – साथ अपनों का गला घोटनें में भी पीछे नहीं है। जिसने मानवता के नाम पर पुलिस और नेताओं को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। हालांकि आज भी कुछ पत्रकारों की ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह् नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन वह आज के माहौल में पुलिस-प्रशासन-नेताओं-माफियाओं से दूरी बनाकर जैसे तैसे अपना जीवन यापन करने पर मजबूर हैं। लेकिन वह ‘असली’ पत्रकारों की श्रेणी से बाहर होते दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि ‘‘जो सबसे बड़ा दलाल है, वही पत्रकारिता में मालामाल है’’ की पक्तियां को सटीक चरितार्थ है। और उसके लिये ‘‘दौलत है ईमान मेरा’’ सर्वोपरि है।

मफतलाल अग्रवाल
वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
[email protected]

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