नोटबंदी से जनता को हो रही परेशानी छुपाने के लिए पुलिस ने पत्रकारों को धमकाना शुरू कर दिया है. घटना दिल्ली के सफ़दरजंग एनक्लेव की है जहां आइसीआइसीआइ बैंक के कर्मचारियों ने अंग्रेज़ी पत्रिका कारवां के पत्रकार सागर के साथ बदसलूकी की. फिर दिल्ली पुलिस ने आईकार्ड देखने के बाद भी उन्हें पत्रकार मानने से इनकार कर दिया. धमकाया यूं- ‘सरकार बदल गई है. ऐसे कहीं वीडियो मत बनाया कर.’
पत्रकार सागर के मुताबिक वे रविवार शाम 4 बजे सफ़दरजंग एनक्लेव में आइसीआइसीआइ बैंक की शाखा से पैसे निकालने गए. दस मिनट बाद बैंककर्मियों ने बिना घोषणा दरवाज़ा बंद कर दिया. लोगों को उम्मीद थी कि दरवाज़ा फिर खुलेगा. बाहर बैठे कर्मचारी ने बताया कि सर्वर डाउन है. लोगों ने पूछा कि फिर भीतर गए लोग कैसे पैसे निकाल पा रहे हैं, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया. कतार में खड़े लोग बेचैन होने लगे. करीब 4.50 पर सफेद शर्ट पहना एक कर्मचारी बैंक के बाहर आया तो एक अधेड़ शख्स ने प्रबंधक से मिलवाने और बात करवाने की उससे गुज़ारिश की. इस दौरान एक बूढ़ी महिला भीतर के कर्मचारियों का ध्यान खींचने के लिए कांच का दरवाज़ा खटखटाए जा रही थी. जब कर्मचारी ने कोई जवाब नहीं दिया तो लोग भड़क गए. अधेड़ उम्र के शख्स के साथ उसकी झड़प हुई और बुजुर्ग महिला दोनों के बीच फंस गई.
सागर लिखते हैं कि ऐसी घटना कोई अपवाद नहीं थी क्योंकि एक दिन पहले शनिवार को दिल्ली पुलिस के पास ऐसी घटनाओं से संबंधित 4500 कॉल आए थे. इस घटना को सागर अपने मोबाइल फोन के कैमरे से रिकॉर्ड करने लगे, जिस पर सफेद शर्ट वाले कर्मचारी ने उन्हें रोका. उसके बाद वह आगे बढ़ा और सागर को खींचता हुआ सीढि़यों से नीचे सड़क तक ले गया. वे बताने लगे कि वे प्रेस से हैं लेकिन उसने उनकी नहीं सुनी. इसके बाद दूसरे कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें घेर लिया.
सागर बताते हैं कि सफेद शर्ट वाले बैंक कर्मचारी ने उनसे कहा, ”तेरे को मैं बताता हूं, तू बच के नहीं जाएगा, तू जानता नहीं मेरे को, मेरे ऊपर पहले से केस है, मैं खुद पुलिस हूं.” दूसरे कर्मचरी ने आवाज़ लगायी, ”पुलिस को बुलाओ, इसे थाने ले जाओ.” फिर सफेद शर्ट वाले ने किसी को फोन लगाकर बुलवाया. घबराकर पत्रकार ने 100 नंबर पर फोन लगाया और पुलिसवालों को वहां के हालात के बारे में सूचना दी. उनके पास ऑटोमेटेड संदेश आया, ”पीसीआर पैट्रोल वाहन ईजीएल-22 मोबाइल 9821002822 आपके पास जल्द पहुंच रहा है.”
इस दौरान सागर इंतज़ार करते रहे और सफेद शर्ट वाला शख्स उन पर नज़र बनाए हुए था. थोड़ी देर बाद एक सिपाही मोटरसाइकिल से आया. यह मानते हुए कि पुलिस उनके कहने पर आई है, वे उसके पास जाकर अपनी शिकायत कहने लगे. पुलिसवाले ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि बैंक कर्मचारी को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, लेकिन वे यहां से निकल जाएं वरना बड़े अधिकारी आ जाएंगे. करीब पंद्रह मिनट बाद दो पुलिसवाले बैंक में आए. उनमें से एक सुमेर सिंह हाथ में डायरी लिए उनके पास पहुंचा. सागर लिखते हैं, ”जब मैंने उसे अपना परिचय बताया तो वह उसका सबूत मांगने के लिए आगे आया और बोला- दिखा भाई, कार्ड दिखा, क्या प्रेस है, देखते हैं.”
दि कारवां से जारी प्रेस कार्ड दिखाने पर वह नहीं माना और उसने कहा, ”ये कोई प्रेस नहीं है. ले चल थाने इसको.” सागर ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन उसने कहा, ”थाने ले जा के तहकीकात करेंगे, सब समझ आ जाएगा तुझे.” फिर सिंह ने उनसे पूछा, ”किसने परमीशन दिया… कन्हैया को हमने अंदर किया था, याद है. तू क्या है. सरकार बदल गयी है. ऐसे कहीं वीडियो मत बनाया कर.” इसके बाद सुमेर सिंह बैंक कर्मचारी की ओर पलटे जिसके खिलाफ़ सागर ने शिकायत की थी और उनसे सलाह ली कि क्या करना है, ”आप कहोगे तो हम थाने ले जाएंगे, मगर फिर तहकीकात होगी, नहीं तो जाने दूंगा.”
सागर बताते हैं- कर्मचारी ने कहा कि वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता. सिंह ने कहा वीडियो डिलीट करो. तब तक मुझे नहीं जाने दिया जब तक कि मैंने उसे दिखा नहीं दिया कि वीडियो डिलीट कर दिया है. हालांकि तब तक वीडियो की एक कॉपी अपने सहकर्मियों को भेज चुका था. अपना नाम, पिता का नाम, पता आदि लिखवाने के बाद 6 बजे मुझे जाने दिया गया, एक शिकायतकर्ता के तौर पर नहीं बल्कि एक अपराधी के रूप में जिसे पुलिसवाले की उदारता के कारण छोड़ दिया गया था. मैंने अपना प्रेस कार्ड वापस लिया और दरवाज़े की ओर बढ़ा, तो सिंह ने कहा- भारत के नागरिक हैं, इसलिए छोड़ रहे हैं. छोटी-मोटी तो झड़प होती रहती है, तो क्या वीडियो बनाओगे? मैं हिल गया था. पुलिसवालों ने मेरा विवरण ले लिया है इसलिए चिंता थी कि वे मुझे बाद में कॉल करेंगे और उत्पीड़न करेंगे. डर था कि इतनी देर में मेरे मन में जो डर समा चुका था, उसके चलते मैं एक पत्रकार के बतौर अपना काम नहीं कर पाऊंगा.
इस घटना पर दिल्ली पुलिस के बड़े अफसर चुप्पी मारे हैं.