अजय कुमार, लखनऊ
समाजवादी पार्टी में पिछले कुछ महीनों में जिस तरह का घटनाक्रम चला उसके बारे में सब जानते-समझते हैं। पारिवार की लड़ाई थी। सड़क पर आई तो कुछ लोगों ने इस पर दुख जताया तो ऐसे लोगों की कमी भी नहीं थी जो अखिलेश के पक्ष में माहौल बनाते घूम रहे थे। परिवार की लड़ाई में कभी अखिलेश पक्ष तो कभी मुलायम खेमा भारी पड़ता दिखा, परंतु जीत का स्वाद अखिलेश पक्ष ने ही चखा। फिर भी ‘पिटे मोहरे’ की तरह एक बाप का फर्ज निभाते हुए नेताजी अपने सीएम बेटे को लगातार रिश्तों की अहमियत और जातिपात के सियासी समीकरण समझाते रहे।
वह यह भी कह रहे थे अखिलेश अपने पीछे खड़ी भीड़ को लेकर ज्यादा गंभीर न हो। नेताजी का कहना था सत्ता होती है तो काफी लोग जुड़ जाते हैं, लेकिन सत्ता जाते ही लोग किनारा करने में देरी नहीं लगाते है। मुलायम अपने अनुभव के आधार पर अखिलेश को सभी बातें समझा रहे थे, मगर अखिलेश युवा जोश से लबरेज थे। उन्होंने न तो पिता नेताजी की सुनी और न चचा शिवपाल यादव की बातों को गंभीरता से लिया।
इसके उलट अखिलश पक्ष की तरफ से कहा यह गया कि नेताजी को कुछ लोग गुमराह कर रहे हैं। इसलिये उनके सहारे अब समाजवादी सियासत को परवान नहीं चढ़ाया जा सकता है। अखिलेश गलत भी नहीं थे। शिवपाल और अमर सिंह जिस तरह से नेताजी के साथ उनकी छाया बनकर चल रहे थे, उससे अखिलेश की सोच को बल मिलता था, लेकिन अब हालात बदल गये हैं। कल तक जो शिवपाल सपा के कर्णधार थे, वह अब हाशिये पर चले गये हैं। उनके पास गुस्सा निकालने के अलावा कुछ नहीं बचा है। नेताजी से अब उनका मेल-मिलाप भी बहुत ज्यादा नहीं होता है।
आखिर अब चर्चा के लिये भी तो कुछ खास नहीं है। परंतु इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि नेताजी ने भाई शिवपाल को अपने दिल से निकाल दिया है। वह आज भी शिवपाल की पार्टी के लिये दी गई कुर्बानी को भूले नहीं हैं। बेटे से अधिक भाई को तरजीह देते हैं। मुलायम कोे इस बात का भी दुख है कि सब कुछ ठीकठाक हो जाने के बाद भी अखिलेश द्वारा उनके करीबियों को अपमानित किया जा रहा है। टिकट नहीं दिया जा रहा है। इसीलिये जब अंबिका चौधरी ने बसपा की सदस्यता ग्रहण की तो मुलायम का दर्द मीडिया के सामने आ ही गया कि अंबिका ने पार्टी के लिये काफी कुछ किया था।
खैर, अब सपा पर अखिलेश का वर्चस्व हो चुका है, लेकिन क्या अखिलेश पक्ष को इतने भर से संतोष नहीं है। कहीं जाने-अनजाने सत्ता के खेल में अखिलेश मर्यादाओं को तिलांजलि तो नहीं दे रहे हैं? ऐसा इसलिये कहा जा रहा है क्योंकि आजकल सत्ता के गलियारों में एक चर्चा आम होती जा रही है कि मुलायम को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है ताकि वह जनता या मीडिया के बीच जाकर कुछ ऐसा न बोल दें जिससे अखिलेश के मिशन 2017 पर ग्रहण लग जाये।
इस चर्चा को हाल ही में उस समय और बल मिला, जब मुलायम सिंह के करीबी और लोकदल के अध्यक्ष सुनील सिंह ने अखिलेश पर आरोप लगाया कि उन्होंने मुलायम सिंह को घर में नजरबंद (कैद) कर रखा है। इतना ही नहीं, अखिलेश पर एक और गंभीर आरोप यह भी लग रहा है कि उन्होंने मुलायम के करीबी पूर्व राज्यमंत्री मधुकर जेटली को भी धमकी दी है। लोकदल अध्यक्ष सुनील ने इस बारे में चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर मुलायम की सुरक्षा की भी मांग की है।
विरोधी इस तरह की अफवाह फैलाते तो समझ में आता, लेकिन वह लोग ही जब मुलायम की नजरबंदी की बात कह रहे हों जो मुलायम के करीबी हैं तो सवाल तो खड़ा होगा ही। इन बातों को इसलिये और भी बल मिल रहा है क्योंकि जिनका सियासत से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है, वह भी ऐसे ही सवाल खड़े कर रहे हैं। दरअसल, अखिलेश डरे हुए हैं कि नेताजी फिर वैसा ही कोई बयान न दे दें जैसा हाल ही में उन्होंने (मुलायम) दिया था।
गौरतलब हो, मुलायम ने कहा था कि अखिलेश मुस्लिमों के हितैषी नहीं हैं, वह जावेद अहमद को डीजीपी नहीं बनाना चाह रहे थे, मेरे कहने पर ही जावेद डीजीपी बन पाये थे। सोशल मीडिया पर भी इस तरह की बिना प्रमाणित ट्वीट आ रहे हैं, ‘जैसा धोखा मुलायम ने चौधरी चरण सिंह, वी. पी. सिंह व चन्द्रशेखर को दिया था, वैसा ही खुद मुलायम को बेटे अखिलेश व भाई रामगोपाल के हाथों भुगतना पड़ रहा है। मुलायम सिंह के घर के बाहर बैरीकेडिंग लगाकर लोगों को उनके पास जाने से रोका जा रहा है। टीपू-ए-औरंगजेब की हुड़दंगई सेना ने पुलिस की मदद से शाहजहाँ-ए-मुलायम को एक तरह से नजर बंद कर दिया है।’
बहरहाल, इस तरह की चर्चाओं पर विराम नहीं लगा तो चुनावी समर में समाजवादी पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ताज्जुब इस बात की भी है कि अखिलेश पक्ष ऐसा कोई भी कदम नहीं उठा रहा है, जिससे जनता के बीच यह मैसेजे जाये कि इस तरह की खबरों का सच्चाई से कोई सरोकार नहीं है। हकीकत तो यही है इस तरह की चर्चाओं को नेताजी मुलायम सिंह यादव ही विराम लगा सकते हैं, लेकिन इसके लिये उन्हें सार्वजनिक रूप से अपनी बात कहनी होगी। प्रेस नोट जारी करके या कुछ तस्वीरों के सहारे इस तरह की चर्चाएं थमने वाली नहीं है। बसपा की तरफ से भी इस तरह की चर्चाओं को बल दिया जा रहा है।
यहां बताते चलें कि आज जैसे मुलायम को नजरबंद किये जाने की चर्चा चल रही है, ठीक वैसी ही चर्चा कुछ वर्षों पूर्व बसपा के संस्थापक मान्यवर काशीराम को लेकर भी चली थी। तब कहा जाता था कि तत्कालीन बसपा महासचिव मायावती ने काशीराम को नजरबंद कर रखा है। काशीराम के घर वालों ने भी इस तरह के आरोप लगाये थे। उस समय सपाई चटकारे लेकर इस तरह की खबरों को प्रचारित-प्रसारित किया करते थे। हो सकता हो बसपाई मुलायम के बहाने हिसाब बराबर कर रहे हों।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.