पत्रकारों और गैर पत्रकारों के वेतन, भत्ते व प्रमोशन से जुड़े मजीठिया वेज बोर्ड को अमल में लाने सम्बंधित माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांच जुलाई तक स्टेटस रिपोर्ट श्रम आयुक्त कार्यालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रेषित किया जाना है मगर अभी भी देश भर के पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लगातार फोन आ रहे हैं कि उनके समाचार पत्र कार्यालय में और ब्यूरो में श्रम आयुक्त कार्यालय की टीम सर्वे करने नहीं पहुंची। कुछ पत्रकारो का फोन था कि टीम तो पहुंची मगर किसी पत्रकार का स्टेटमेंट नहीं लिया गया।
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के श्रम कार्यालय में पत्रकारों की एक टीम पहुंची तो श्रम अधिकारी को मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। गोंडा के श्रम अधिकारियों को भी वर्किंग जर्नलिस्ट और नान वर्किंग जर्नलिस्ट के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। बलरामपुर के श्रम अधिकारी को मजीठिया वेज बोर्ड की अधिसूचना और सुप्रीम कोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा जी की मदद से भेज दिया गया। इसी तरह गुजरात से वरिष्ठ पत्रकार यास्मीन व्यास ने सूचना दी है कि भास्कर समूह अपने कर्मचारियो से फ़ार्म 20 जे भरवा रहा है वो भी जबरन। यास्मीन जी ने लेटर भी भेजा है।
नासिक से भास्कर समूह के पत्रकारों का आरोप है कि प्रबंधन कुछ लोगों से त्यागपत्र ले रहा है नहीं तो नौकरी से निकालने की धमकी दे रहा है। इसी तरह झारखण्ड से सूचना आई है कि वहाँ भी पत्रकारों का प्रबंधन शोषण कर ट्रांसफर कर रहा है। नोएडा में भी कुछ पत्रकारों का आरोप है कि उन लोगों का श्रम विभाग मदद नहीं कर रहा है। मुम्बई में भी टाइम्स आफ इंडिया के कुछ कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि उनके यहाँ सर्वे तो किया गया लेकिन सिर्फ कुछ लोगों के ही स्टेटमेंट लिए गए।
उज्जैन से एक शख्स ने फोन कर बताया कि उनके यहां श्रम अधिकारी पूरी तरह असहयोग कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट में केस चलने के बावजूद वह मानने को तैयार नहीं है कि पत्रकारों ने मजीठिया वेज बोर्ड लागू कराने के लिए कोई केस सुप्रीम कोर्ट में किया हुआ है। इसी देश के एक पत्रकार ने जो हालात बताये वो पत्रकारिता के लिए दुखद है। उसने बताया कि वह 6 हजार रुपये वेतन पाता है। प्रबंधन उसका ट्रांसफर दूसरे शहर में कर रहा है, क्या करूँ।
देश भर के कई ब्यूरो कार्यालयों से फोन आ रहे हैं कि श्रम आयुक्त कार्यालय के अधिकारी समाचार पत्र के कार्यालय में जा रहे हैं लेकिन ब्यूरो कार्यालयों में सर्वे नहीं कर रहे हैं। लब्बोलुआब ये कि मजीठिया वेज बोर्ड को अमल में लाने को लेकर देश भर में हालात बद से बदतर हो गया है। कई पत्रकार या गैर पत्रकार नौकरी जाने या ट्रांसफर के डर से सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है क्या होगा मजीठिया वेज बोर्ड का?
पत्रकार बंधुओं आप डरें नहीं। अब भी रास्ता है। माननीय सुप्रीमकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि यूनियनों की तरफ से भी क्लेम श्रम आयुक्त कार्यालय में किया जा सकता है। अब समय है देश भर में मोहल्ले मोहल्ले में खुले पत्रकार संघों को नींद से जगाइए और जो पत्रकार संघ पहले से जगे हैं उनका उत्साह बढाइये। पत्रकार संघों का काम क्या है? पत्रकारो के अधिकारों की लड़ाई लड़ना। लेकिन वास्तविकता ये है क़ि देश भर की अधिकाँश पत्रकार यूनियनें या पत्रकार संघ मजीठिया मामले पर मृत शैय्या पर पड़ी हैं। उन्हें जगाइए। इनके पदाधिकारियों को बोलिये कि श्रम आयुक्त, राज्य के चीफ सेक्रेटरी, मुख्यमंत्री और सुप्रीमकोर्ट के रजिस्टार को एक पत्र लिखकर वास्तविकता बतायें कि किस तरह माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश की अवहेलना की जा रही है।
ये लेटर स्पीडपोस्ट से या बाइहैंड दो दिन में भेजिए और पावती अपने पास रखिये। पत्रकार संघ इस पत्र में उन समाचार पत्र प्रतिष्ठानों और ब्यूरो का नाम और पता जरूर लिखकर बतायें कि उनके यहाँ सर्वे नहीं किया गया है। कुछ पत्रकारों के नाम भी जोड़ा जा सकता है कि इनका स्टेटमेंट नहीं लिया गया है। यही नहीं, पत्रकार बंधु चाहें तो निजी तौर पर भी सभी जगह पत्र लिख सकते हैं। याद रखिये राज्य के चीफ सेक्रेटरी को पत्र जरूर लिखिए क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ आदेश दिया है कि 5 जुलाई तक जिन राज्यों की स्टेटस रिपोर्ट नहीं आएगी वहां के चीफ सेक्रेटरी को 12 जुलाई को खुद सुप्रीमकोर्ट में हाजिर होना होगा। देश भर के पत्रकार संघों और यूनियनों से भी निवेदन है कि वे आगे आयें अन्यथा मजीठिया मामले में पत्रकारो का साथ न देने पर इतिहास आपको कभी माफ़ नहीं करेगा। जो संघ और यूनियन अब तक सोये हैं वे पत्रकारों के हित की लड़ाई लड़ने के लिए जग जाएं। जो पत्रकार यूनियन या संघ पत्रकारों के साथ पहले से कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहे हैं उनको धन्यवाद।
शशिकांत सिंह
shashikant singh
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
मुंबई
संपर्क : [email protected] , 9322411335
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