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सियासत

विनोद राय के रहस्योद्घाटन से ईमानदारी के (कठ) पुतले मनमोहन सिंह की हवा सबसे ज्यादा खिसकी है : ओम थानवी

Om Thanvi : विनोद राय ईमानदार और कर्मठ अधिकारी रहे हैं; CAG के नाते उन्होंने सरकारी योजनाओं-आयोजनों में अरबों के घोटाले उजागर किए। उनका कहना राजनीति में भूचाल से कम नहीं है कि कोयला खदानों वाले घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटाले में शामिल कतिपय गुनहगारों की खाल बचाने के लिए उनके पीछे नेता और उनके सहपाठी अधिकारियों तक को दौड़ा दिया गया।

<p>Om Thanvi : विनोद राय ईमानदार और कर्मठ अधिकारी रहे हैं; CAG के नाते उन्होंने सरकारी योजनाओं-आयोजनों में अरबों के घोटाले उजागर किए। उनका कहना राजनीति में भूचाल से कम नहीं है कि कोयला खदानों वाले घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटाले में शामिल कतिपय गुनहगारों की खाल बचाने के लिए उनके पीछे नेता और उनके सहपाठी अधिकारियों तक को दौड़ा दिया गया।</p>

Om Thanvi : विनोद राय ईमानदार और कर्मठ अधिकारी रहे हैं; CAG के नाते उन्होंने सरकारी योजनाओं-आयोजनों में अरबों के घोटाले उजागर किए। उनका कहना राजनीति में भूचाल से कम नहीं है कि कोयला खदानों वाले घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटाले में शामिल कतिपय गुनहगारों की खाल बचाने के लिए उनके पीछे नेता और उनके सहपाठी अधिकारियों तक को दौड़ा दिया गया।

राय के रहस्योद्घाटन से ईमानदारी के (कठ) पुतले मनमोहन सिंह की हवा सबसे ज्यादा खिसकी है। प्रधानमंत्री ही नहीं, वे कोयलामंत्री भी थे जब महाघोटाला हुआ। पैसा उन्होंने खुद नहीं बनाया, पर बनाने दिया, यह कोई मामूली अपराध नहीं। विनोद राय ठीक कहते हैं कि “सत्ता में रहने के लिए सब कुछ दांव पर नहीं लगाया जा सकता; गठबंधन-राजनीति की वेदी पर शासन को बलि नहीं चढ़ाया सकता।”

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यह कहना मुनासिब नहीं जान पड़ता कि राय पहले क्यों नहीं बोले, या कौन-कौन नेता उन पर दबाव डालने आए, वे उनके नाम क्यों नहीं बताते। हालांकि किताब अभी आई नहीं है और राय का कहना है कि तथ्यों के साथ अनेक नाम किताब में मिलेंगे, पर असल बात सरकारी तौर-तरीकों को उजागर करना है जिनके कारण महाघोटालों पर परदा पड़ा रहता है। राय की जगह कोई शख्स लंबलेट यानी पूर्ण आत्मसमर्पण कर देने वाला महामुनीम भर रहा होता तो कोयले की कालिख और राष्ट्रमंडल खेलों का कीचड़ कांग्रेस पर कभी न पड़ा होता। किताब मिले तो पढ़ें और कुछ आँखें खुलें। ऐसे काम के लिए कभी देरी नहीं नापी जानी चाहिए — हर वक्त मुकम्मल है।

वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता अखबार के संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.

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