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उत्तर प्रदेश

लड़ाई रंग लाई! : वेंडर को पेटीएम ने दिए 7 करोड़, न्यूज24 वाले श्रीवास्तवजी मकान छोड़ गए!

दो अच्छी खबरें हैं. एक दफे पेटीएम के एक वेंडर की पीड़ा हम लोगों ने भड़ास पर पब्लिश की थी कि कैसे उसके करोड़ों रुपये पेटीएम ने दबा दिए और वेंडर भागा भागा मारा मारा फिर रहा है. उस प्रकरण की कहानी भड़ास पर छपने और उस पीड़ित शख्स के साथ लगातार खड़े रहने, पुलिस प्रशासन की मदद दिलाने की वजह से उसे अंतत: जीत हासिल हुई. करीब 7 करोड़ रुपये पेटीएम ने उसे दे दिए.

पीड़ित वेंडर को ये सफलता दिलाने में अपने बड़े भाई अशोक शर्मा जी का काफी योगदान रहा जिन्होंने लखनऊ से ही पुलिस प्रशासन पर इस मामले में पेटीएम के खिलाफ एफआईआर करने के लिए दबाव बनाया. लगातार दबाव और चौतरफा घिरने के चलते पेटीएम को बातचीत के लिए टेबल पर आना पड़ा. इसमें 7 करोड़ रुपये देने की बात तय हुई. ये सात करोड़ रुपये वेंडर को मिल गए.

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देखें पीड़ित वेंडर का वो वीडियो जिसमें वो अपनी दुख भरी कहानी बताते सुनाते रो पड़ा था-

https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/2440369262916015

भड़ास पर छपी संबंधित खबर ये है-

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पीड़ित वेंडर ने थैंक्यू के लिए मुझे फोन किया और कहा- सर मेरे लिए आदेश करिए. अपन बोले- मस्त रहो. वैसे, कुछ ने सलाह दी कि इससे कुछ परसेंट आपको लेना चाहिए था.

अपन ने जवाब दिया- भाई अगर यही परसेंट वाला खेल सीख गए होते या खेल रहे होते तो आज पत्रकारिता न करके लखनऊ-दिल्ली के किसी फाइव स्टार में बैठकर दलाली कर रहा होता. हां, दलाली-कमीशनबाजी से पैसे तो कमाए जा सकते हैं, खूब पैसे बना लिए जाते हैं, पर अपन को न ज्यादा पैसा चाहिए न कम पैसा चाहिए. अपन जीवन और धन, दोनों से संतुष्ट हैं. क्योंकि, ज्यादा पैसा आनंद नहीं दे सकता. पैसे एक सीमा तक ही जीवन के लिए जरूरी होते हैं. अगर आप क्रमश: डिटैच होते जाते हैं समाज दुनिया से तो पैसे की जरूरत नगण्य रह जाती है.

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खैर, इस वेंडर की सफलता की कहानी बताने के बाद अब दूसरी अच्छी खबर बताता हूं. न्यूज24 वाले जो श्रीवास्तव जी मकान कब्जाए थे, वे चुपचाप मकान खाली कर निकल लिए हैं. उस मकान के असली मालिक का आखिरी दफे जो फोन आया था तो उसने यही बताया था कि हफ्ते भर पहले उसने खाली किया लेकिन अभी तक चाभी हैंडओवर नहीं किया है. मैंने कहा- भाई सांप निकल गया, बस केवल पूछ अटकी है. वह भी निकल जाएगी. मस्त रहिए. मजे करिए.

वो मकान मालिक काफी प्रसन्न था, गदगद था, कृतज्ञ था. ऐसे अनजान किस्म के पीड़ितों के चेहरे पर जब मुस्कान आती है तो लगता है कि चलो कुछ सार्थक काम हो पाया.

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ये दोनों ही सूचनाएं पुरानी हैं. पेटीएम वाली तो कई महीने पहले की है. मकान वाली हफ्तों पहले की है. अपन भड़ास की खबर का असर टाइप नहीं छापते हैं. समस्या जरूर छापते हैं पर उसका अगर निदान हो गया तो क्रेडिट लेने में थोड़ा संकोच तो होता ही है. लेकिन ये सफलता की कहानियां भी छपनी चाहिए क्योंकि हमारा समाज अब भी संघर्ष करने, सही के लिए आवाज उठाने, सत्य के लिए लड़ रहे लोगों के पक्ष में खड़े होने से हिचकता है, बचता है. इन सफलता की कहानियों से, खबरों से लोग इंस्पायर होंगे.

ये पाजिटिव खबरें, ये सफलता की खबरें बताती हैं कि जो मैदान में उतरेगा, वह जीतेगा. जो डर गया, समझो मर गया. क्योंकि ये पूरा सिस्टम, ये कंपनियां, ये कारपोरेट, ये नेता-परेता, भ्रष्ट अफसर-दलाल पत्तलकार सब के सब केवल आम लोगों को डराने में लगे हैं. इनके डराए से डर गए तो समझे मर गए. इसलिए आप भी इन दोनों सफल हुए साथियों को बधाई दीजिए और काम पर चलिए!

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जैजै
यशवंत

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. कन्हैया शर्मा मैथिल

    November 8, 2019 at 12:00 pm

    बहुत खूब बड़े भाई यशवंत जी आपकी बेबाक पत्रकारिता को सलाम आज अगर पत्रकारिता जिंदा है तो वह आप जैसे लोगों की वजह है में आपकी खबरें सालों से पढ़ता हूँ और बहुत कुछ सीखने की कोशिश भी करता हूं वैसे पत्रकारिता के छेत्र में मैने अपने आप मे काफी बदलाव किए है जिनकी वजह से एक सुकून भरा समय कट रहा है जिसमे भड़ास का काफी योगदान है आपकी खबरें बहुत कुछ सीखने को देती है और भी युवा पत्रकारों को भड़ास का अनुसरण करना चाहिए

    ///एक अदना पत्रकार
    कन्हैया शर्मा मैथिल

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