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पाकिस्तान में भी चिरकुट और दोयम दर्जे के टीवी चैनल व पत्रकार हैं

आज सुबह-सुबह इंटरनेट पर एक लिंक मिला जिस पर लिखा था “Horrific Footage of Inside Army Public School“…यानी कि पाकिस्तान में बच्चों के कत्ल के बाद स्कूल के अंदर की तस्वीरें, उसका वीडियो. यह पढ़कर ही दिल दहल गया कि मीडिया को मिली उसकी अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग सिर्फ अपने यहां नहीं, वहां भी हो रहा है. पाकिस्तान में भी ऐसे चिरकुट और दोयम दर्जे के टीवी चैनल और पत्रकार हैं, जो खून के सौदागर हैं. मासूम बच्चों का लहू बेचने से उन्हें भी गुरेज नहीं. चूंकि अब मैं टीवी नहीं देखता, ना न्यूज चैनल और ना एंटरटेनमेंट चैनल, सो पता नहीं कि हमारे यहां मीडिया में इसकी कैसी कवरेज की गई..पाकिस्तानी चैनलों ने जब -मौत के इस तमाशे- को बेचना शुरू किया होगा, तो कितने हिन्दुस्तानी चैनलों ने -साभार- दिखाते हुए unedited footage जस के तस भारतीय दर्शकों को भी परोसे होंगे…

आज सुबह-सुबह इंटरनेट पर एक लिंक मिला जिस पर लिखा था “Horrific Footage of Inside Army Public School“…यानी कि पाकिस्तान में बच्चों के कत्ल के बाद स्कूल के अंदर की तस्वीरें, उसका वीडियो. यह पढ़कर ही दिल दहल गया कि मीडिया को मिली उसकी अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग सिर्फ अपने यहां नहीं, वहां भी हो रहा है. पाकिस्तान में भी ऐसे चिरकुट और दोयम दर्जे के टीवी चैनल और पत्रकार हैं, जो खून के सौदागर हैं. मासूम बच्चों का लहू बेचने से उन्हें भी गुरेज नहीं. चूंकि अब मैं टीवी नहीं देखता, ना न्यूज चैनल और ना एंटरटेनमेंट चैनल, सो पता नहीं कि हमारे यहां मीडिया में इसकी कैसी कवरेज की गई..पाकिस्तानी चैनलों ने जब -मौत के इस तमाशे- को बेचना शुरू किया होगा, तो कितने हिन्दुस्तानी चैनलों ने -साभार- दिखाते हुए unedited footage जस के तस भारतीय दर्शकों को भी परोसे होंगे…

मुझे पता नहीं, ऐसा कितने बड़े लेवल पर भारतीय टीवी न्यूज चैनलों ने किया है लेकिन एक विश्वास पक्का है. वो ये कि हमारे टीवी न्यूज चैनल, खासकर हिन्दी के न्यूज चैनल -तिल का ताड़- बनाने में माहिर हैं. यहां टीआरपी की जंग इतनी तेज है कि कत्ल और खून-खराबे की ऐसी हृदय विदारक घटनाएं भी न्यूज रूम में जश्न का माहौल पैदा कर देती हैं. कुछ अतिउत्साही प्रोड्यूसर-एंकर-असाइमेंट और आउटपुट के लोग तो यहां तक कह बैठते हैं कि चलो, आज बढ़िया माल मिला है. आज तो इन विजुअल्स पर खूब खेलेंगे. फिर शुरु होता है इंसानों की मौत को बेचने का युद्धाभ्यास. फटाफट डिसिजन हो जाता है कि इस पर कौन-कौन और क्या-क्या स्पेशल बनेगा?? और फिर उसमें ऐसे प्रोड्यूसर-पत्रकार लगाए जाते हैं जो अपनी कलम से लफ्फाजी करके, शब्दों का मायाजाल बुनकर दर्शकों को इमोशनल करने, उन्हें देर तक उनके चैनल से चिपके रहने और अगर अति हो जाए तो दर्शकों को -रुलाने- का माद्दा रखता हो. यानी कि जिसकी कलम में तथाकथित जादू हो. जो जानता हो कि मौत को कैसे बेचना है. और फिर अतिउत्साही एंकर भी उस दिन खूब उछलते-मचलते हैं. उस दिन अपने वार्डरोब से सबसे झकास एंकरिंग वाला सेट निकालते हैं. मेकअप भी टंच होना चाहिए. और हां, दिखाने के लिए थोड़े गुस्से और थोड़े गम की छींटे स्क्रीन पर डालते रहना है. लेकिन उस दिन उसकी एंकरिंग ऐसी होनी चाहिए कि लोग सिर्फ उसे ही देखें, उसे ही सुनें और उसी के बताए-बनाए-बुने शब्दों से पूरी घटना को देखें.

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लाशों और खून के धब्बों के विजुअल्स स्ट्रॉन्ग तभी बनेंगे जब एंकर अपनी दमदार आवाज में खनक-खनक कर लोगों को बताएगा-बताएगी कि देखिए, आतंक-दहशतगर्दी का ये खेल. आज इंसानियत शर्मशार हो गई, मासूम बच्चों की रूह कब्ज करने आए फरिश्तों का भी दिल दहल गया होगा, कांप गया होगा, जब आसामान से उतरकर उन्होंने धरती पर ये मंजर देखा होगा. देखिए, इस लाल खून को, देखिए इन दीवारों को, इन किताबों को, कुर्सी-टेबल-मेज-कुर्सी-बगीचे सबको ध्यान से देखिए. ये सब उस खौफनाक मंजर के मूक गवाह हैं. देखिए इन सबको और सोचिए. देखिए क्योंकि ये सब हम दिखा रहे हैं. क्योंकि मैं बोल रहा हूं-रही हूं, सो देखिए. और अकेल मत देखिए. अपने पूरे परिवार को दिखाइए. पूरा परिवार टीवी के सेट से चिपककर सिर्फ हमारा चैनल देखिए क्योंकि घटना की पहली और EXCLUSIVE तस्वीरें सिर्फ और सिर्फ हमारे पास हैं. अभी कहीं मत जाइए. अभी मौत के तमाशे की कुछ और EXCLUSIVE PICTURES हमारे पास आ रही हैं. हम आपको पल-पल की खबर दे रहे हैं, देते रहेंगे. अरे दर्शकों, हमारा वश चलता और उन कमबख्त आतंकवादियों ने हमें पहले ही मेल-वेल कर दिया होता, जैसा वो आतंकवादी घटना के बाद हमें मेल करके हमले की जिम्मेदारी लेते हैं, तो हमलोगों ने चुपचाप अपने ओबी वैन वहां फिट कर दिए होते. हम तो मासूम बच्चों को गोली मारने, उन्हें तड़पकर जमीन पर गिरने, उनके लहुलुहान होने और छटपटाने-मरने, सबके लाइव विजुअल्स आपको दिखा देते. हां एडिटर साहब कहते तो विजुअल को BLUR यानी धुंधला जरूर कर देते लेकिन इतना ही धुंधला करते कि आपको सब दिख जाए. हत्या के लाइव विजुअल्स देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएं. आपका बच्चा अपनी मम्मी की गोद में दुबक जाए, वो इतना डर जाए कि अगले दिन स्कूल जाने से मना कर दे और कह दे कि मम्मी, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, वहां आतंकवादी आते हैं, हमें भी गोली मार देंगे. मैं मरना नहीं चाहता मम्मी. मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.

अगर ये दहशत, ये डर, ये खौफ और ऐसा थ्रिल हम आपके, अपने दर्शकों के दिलोदिमाग पर पैदा ना कर पाए तो थू है हम पर. हमारी सारी पत्रकारिता पर. हमारी कलम पर. मौके का फायदा उठाने और साप्ताहिक टीआरपी बटोरने की हमारी लत पर. आखिर टीआरपी आएगी तभी तो मालिक खुश रहेगा. हमसब की नौकरी बची रहेगी. सब को तनख्वाह मिलती रहेगी. तो हम तैयार हैं. इस -दुखदायी- घटना की, इस मानवीय त्रासदी की, इतिहास के इस फफोले की, इंसानियत का कलेजा चीर कर उसे लहुलुहान करने वाली इस घटना की महाकवरेज के लिए, महा-महा कवरेज के लिए. बस आप कहीं जाइएगा नहीं. हम पल-पल और सेकेंड की खबर आप तक पहुंचा रहे हैं और पहुंचाते रहेंगे. बस प्लीज, आप चैनल चेंज मत करिएगा. अरे प्रोड्यूसर, असाइनमेंट डेस्क, ये क्या कर रहे हो यार, इतने बच्चे मर गए, किसी के मां-बाप के रोने-बिलखने के शॉट्स नहीं आए क्या ??!! अरे अपना आदमी वहां नहीं है तो क्या हुआ, सारे पाकिस्तानी चैनलों को मॉनिटरिंग पर डाल दो. सबकी लाइव रिकॉर्डिंग करो और इनजेस्ट करवाते रहो. पीसीआर वालों, ये क्या कर रहे हो बॉस. दूसरे चैनल इतने STRONG LIVE VISUALS चला रहे हैं. ये फीड हमारे पास भी तो है. लाइव काटो यार. देखा जाएगा. वैसे भी साले पाकिस्तानी चैनल एडिट करके ही तो शॉट चला रहे होंगे. कहीं कुछ उल्टा-पुल्टा दिखे तो स्विच कर जाना…लेकिन देखो, विजुअल्स हर हाल में चलाओ. मां-बाप के
रोने-गाने-चीख-पुकार-मातम-फायरिंग-आर्मी का कॉम्बैट ऑपरेशन, सब कुछ. कुछ छूटना नहीं चाहिए. हमे हर हाल में इस हफ्ते की टीआरपी सबसे ज्यादा चाहिए. COMPETITOR CHANNELS से हमारी टीआरपी बहुत आगे होनी चाहिए. सब लग जाओं यारों. आज काम करने का दिन है. जान लड़ा दो. जनता को अपने चैनल से चिपका दो. अरे यार, कुछ रिटायर्ड कर्नल-ब्रिगेडियर को स्टूडियो बुलाओ ना. कुछ वीएचपी-बजरंग दल वालों को भी. हो सके तो कुछ इस्लाम के जानकारों को भी, और भारत-पाक रिश्तों पर बोलने वाले तथाकथित एक्सपर्ट्स को भी. हॉट डिबेट करवाओ यार. विजुअल साथ में चलाते रहो. और बीच-बीच में एंकर का थोबड़ा-चेहरा भी दिखाते रहो. देखो, आज बहुत मेहनत कर रहा है-रही है वो…और पीसीआर, तुम एंकर को हर नई जानकारी से अपडेट करते रहो…कुछ छूटना नहीं चाहिए…आज इतने दिनों बाद तो खबर से खेलने का मौका आया है…भिड़ जाओ बॉस…नाक मत कटवाना मेरी…ओए, ग्राफिक्स डिपार्टमेंट, तुम लोग क्या कर रहे हो, एडिटोरियल को कोऑपरेट करो…अरे यार, आउटपुट, इसमें क्या एनिमेशन बनवा सकते हैं हमलोग??!!! ये दिखा सकते हैं क्या कि आतंकवादी कहां से आए और कैसे-कैसे हमला किया??? क्या पूरी जानकारी है…कन्फर्म करो, इनपुट से बात करो बॉस. ये साले इनपुट वाले, हमेशा से कामचोर हैं..ना ढंग से दूसरे चैनल वॉच कर सकते हैं, ना कोई काम की खबर कन्फर्म करा पाते हैं…कोई बोलो यार. मुझेे घटना की पूरी डिटेल चाहिए. एनिमेशन बनवाना है. ग्राफिक्स वालों को कहो, क्या कर रहे हो सब. सब के सब कामचोर हैं. बस इन्क्रीमेंट और प्रोमोशन चाहिए. देख लो भाई लोगों, अगर कवरेज अच्छी नहीं रही, टीआरपी लुढ़की तो सबको समेट दूंगा. कहे देता हूं. साला, सब काम मैं ही करूं. मै ही सोचूं, मैं ही विचारूं और मैं ही चलाऊं. तुम लोग पॉकेट में हाथ धर के न्यूज रूम में बॉसगीरी करते रहो. टहलते रहो. देख क्या रहे हो यार. जाओ, काम पर लग जाओ. और देखो..हमें सबसे आगे रहना है…बात करो, दो-तीन रिपोर्टर-एंकर को पाकिस्तान रवाना करना है. बात करो. जितनी जल्दी हम वहां पहुंचेंगे, उतना शानदार. मैं भी बात करता हूं….और हां, एक बार फिर बोल रहा हूं, विजुअल्स से कोई समझौता नहीं…सब चलाओ और दिखाओ…मैं यहीं हूं…लोग कम पड़ रहे हों तो छुट्टी कैंसल करके सबको बुला लो…

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तो दोस्तों, ऊपर मैंने जो कुछ लिखा, ये है न्यूज चैनलों के अंदर होने वाली चहलपहल का एक नजारा. लेकिन ये सब काल्पनिक है. इनका वास्तविकता से कोई लेनादेना नहीं. वास्तविकता देखनी है तो एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल के इस अधकचरे पत्रकार को देखिए. कैसे ये स्कूल के अंदर जाकर बच्चों के खून से सनी चीजों की नुमाइश कर रहा है. खून से सनी उनकी टोपियां, कॉपियां, जूते सब उठा कर दिखा रहा है. फिर जब उसके हाथ में खून गया तो उसे पोंछ भी रहा है…और हद तो तब हो गई जब ये कमअक्ल कमबख्त (ऐसे लोग पत्रकारिता के नाम पर कलंक ही है) एक बच्चे की स्कूल की कॉपी में लिखे अंग्रेजी के शब्द “THE END” पर कैमरा ZOOM IN करवा के ये कहता है कि देखिए. शायद उस बच्चे को भी मालूम था कि आज उसकी जिंदगी का The End होने वाला है…क्या उसकी किताबों को देखकर उसके मा-बाप रोएंगे??? अरे कमबख्त. उसके मां-बाप आंसू नहीं बहाएंगे तो क्या करेंगे. वो तो रोएंगे ही लेकिन तुम कब पत्रकारिता छोड़कर मिट्टी खोदने का काम शुरू करोगे?? क्या इतनी भी इंसानियत तुम्हारे अंदर नहीं बची कि बच्चों के खून से सनी टोपियां उठाकर, वो भी ऐसे कि जैसे कोई गंदी चीज हो, कैमरे पर दिखाते हो, फिर उस टोपी को फेंककर अपने हाथ को देखते हो कि उस पर खून लग गया है और उसे पोंछते हो, कैमरे से छुपाकर. ये बताते हो कि यहां खून की गंध आ रही है, मासूमों के खून की गंध. ये दिखाते हो कि ये देखिए, छोटे-छोटे बच्चों के खून से सने पैरों के निशान…देखिए यहां से भागने की कोशिश कर रहे थे बच्चे…और ये निशान उसी के हैं…और ये सब बताते हुए तुम्हारी आंखें चमक उठती हैं…आप लोग देख सकते हैं कि इस नामुराद तथाकथित पाकिस्तानी रिपोर्टर की आंखें कैसे चमक रही हैं..जैसे कि ये दुनिया की कोई आठवीं अनोखी चीज लोगों को दिखा रहा है…किसी शैतान की तरह इसकी आंखें घूम रही हैं, आवाज और चेहरे के हाव-भाव. सब संवेदनाशून्य…बस ऊलजलूल कुछ भी बोले जा रहा है ये…और मौत की, मासूमों के खून की तस्वीरें बड़ी बेशर्मी से दिखा रहा है….मैंने आंखें बंद-बंद कर बहुत मुश्किल से इस वीडियो को देखा है…आपमें हिम्मत है तो कोशिश कीजिएगा इसे देखने की और ये समझने की कि इंसानियत की दरोदीवार क्या आज इतनी जर्जर हो गई है कि सबकुछ महज एक नाटक में सिमटकर रह गया है???!! हर चीज के दाम बढ़ रहे हैं लेकिन इंसानियत क्यों इतनी सस्ती होती जा रही है??!! और पत्रकारिता ??!! खासकर टीवी पत्रकारिता, क्या खबरों को रिपोर्ट करने और उसे दिखाने में अब रिपोर्टर-डेस्क और सम्पादक क्या कोई फिल्टर नहीं लगाते…क्या महज बाजार, कम्पिटिशन, बिजनेस, टीआरपी और नौकरी, क्या चौथा खंभा कुछ इन्हीं शब्दों के बीच सिमटकर रह गया है??!! क्या सोशल मीडिया चौथे खंभे पर नकेल कसने के लिए पांचवें खंभे के रूप में विकसित हो रहा है या फिर चौथा खंभा वक्त रहते संभल जाएगा और इस विकसित हो रहे पांचवें खंभे को अपने में मिलाकर  वाकई में जनता की आवाज बनने का मैकेनिज्म डिवेलप कर पाएगा??!! सवाल बहुत हैं और जवाब बहुत थोड़े. फिलहाल पाकिस्तान के उस महान न्यूज चैनल के महान संवाददाता की ये घटिया कवरेज का वीडियो लिक यहां डाल रहा हूं. हिम्मत हो तो देखिएगा, वरना मैंने सबकुछ लिखकर तो बयां कर ही दिया है.

कई चैनलों और अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके और इन दिनों आईआईएमसी दिल्ली में अध्यापन कर रहे पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से. नदीम का लिखा ये भी पढ़ सकते हैं…

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