तुम्हारे बाद…
लोगों से सुना है कि किसी के जाने से कुछ नहीं बदलता, सब यूं ही चलता रहता है. लोग कहते थे तो मैं भी मानता था लेकिन जब से तुम गई हो तब से ये बात मेरे लिए आधी झूठी हो गई है. हाँ आधी झूठी! ये सच है कि किसी के जाने के बाद कुछ रुकता नहीं सब चलता रहता है लेकिन वो जाने वाला जिसके सबसे करीब होता है जिसे इस भरी दुनिया में अकेला छोड़ गया होता है उसके लिए चलने की रफ़्तार धीमी हो जाती है. तुम्हारे बाद मेरे लिए भी समय की रफ़्तार धीमी हो गई. तुम्हारे जाने के ये साल बहुत धीमे गुज़रते हैं जैसे मेरे ज़हन को तुम्हारी यादों ने कस कर पकड़ लिया हो, उन्हें छोड़ना ही न चाह रही हों.
तुम्हारे बाद मेरी ये मुस्कुराते रहने की आदत ही मेरी सबसे बड़ी दिक्कत बन गई. इस मुस्कुराते चेहरे की उदासी लोग झट से पकड़ लेते हैं और कहते हैं हौसला रख…मन करता है चिल्ला के कह दूं ‘नहीं रख होता मुझसे हौसला, कैसे रखूं हौसला.’
जिस उम्र तक आते आते पति पत्नी बच्चों को बड़ा होता देख थोड़े निश्चिन्त हो कर आगे के जीवन के सपनों को साकार करने में जुट जाते हैं उस उम्र में मैं तुम्हारी यादों के लायक रह गया बस. मुझे न चाहते हुए भी पाप करना पड़ा, समय समय पर बच्चे जब तुम्हारे लिए रोए तो उनके मन से एक मां की याद भुलाने में लग गया मैं. वो मां मां करते हैं और मैं उन्हें पिता का स्नेह दिखा के शांत करने की कोशिश करता हूं.
तुम्हारे बाद जैसे जिंदगी का स्वाद ही चला गया. घर के कोने कोने में मुझे तुम दिखती हो, लगता है अभी मुस्कुराते हुए आओगी और मेरा नाम लोगी. अपने कहते हैं कि तू बड़ा है बच्चों का पिता है ऐसे दिल छोटा करेगा तो कैसे होगा मगर मैं ये पूछता हूं कि मैं पिता हूं तो क्या मुझे रोने तक का हक़ नहीं!! मैं रोना चाहता हूं खुल के जो मैं जिंदगी की लड़ाई खुल कर लड़ने के लिए खुद को तैयार कर सकूं. हो सके तो किसी दिन चली आओ और अपने सामने रोने दो खुल के मुझे निकल लेने दो मन का सारा दुःख.
तुम्हारा न होना बहुत खलता है, कभी कभी लगता है जैसे बिना रूह के चल रहा हूं. आज दो साल हो गए तुम्हे गए हुए लेकिन लगता है जैसे कल तक मेरे पास थी तुम. मुझे हमेशा ऐसा ही लगेगा क्योंकि मैंने जो खोया है उसका घाटा मैं किसी डायरी के पन्ने या कैकुलेटर पर नहीं जोड़ सकता. तुम वहां चली गई हो जहां से मैं चाह कर भी तुम्हे वापिस नहीं ला सकता. अब बस ये शब्द ही हैं मेरे पास शायद तुम्हारे पास ये पहुंच जाएं… ईश्वर तुम्हारी रूह को सुकून दे और मेरी रूह में तुम्हे हमेशा ज़िन्दा रखे…
तुम्हारा
हरपाल
(हरपाल सिंह भाटिया डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर के टीवी पत्रकार हैं और कई सामाजिक संगठनों में सक्रिय हैं. दो साल पहले उनकी पत्नी असमय गुजर गईं.)
Pankaj soni
February 19, 2019 at 10:46 pm
बहुत ही गमगीन बातें भाटिया जी ने लिखी हैं जिन खूबसूरत पलों को जिया है। जो एक खुशहाल परिवार का होता है। इस अनुभव और मन की व्यथा को सुनकर आंख भर आईं। ईश्वर से प्रार्थना है कि हरप्रीत कौर जी की आत्मा को शांति दे और भाई भाटिया जी को दुख से निपटने की ताकत दे। साथ ही मीठे यादों के साथ भाटिया जी नई ऊंचाइयों को छुएं।