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मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था- सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए

Devpriya Awasthi : अपने देश और समाज को समझना है तो एनडीटीवी पर रवीश कुमार और फेसबुक पर हिमांशु कुमार को फालो कीजिए. आपको रवीश के बारे में अपनी राय बनाने और रखने का पूरा अधिकार है लेकिन, सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठान के विरोध में उनका नजरिया मुझे और मुझ सरीखे बहुत से लोगों को पसंद आता है. मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था कि सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए.

<p>Devpriya Awasthi : अपने देश और समाज को समझना है तो एनडीटीवी पर रवीश कुमार और फेसबुक पर हिमांशु कुमार को फालो कीजिए. आपको रवीश के बारे में अपनी राय बनाने और रखने का पूरा अधिकार है लेकिन, सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठान के विरोध में उनका नजरिया मुझे और मुझ सरीखे बहुत से लोगों को पसंद आता है. मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था कि सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए.</p><script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script>

Devpriya Awasthi : अपने देश और समाज को समझना है तो एनडीटीवी पर रवीश कुमार और फेसबुक पर हिमांशु कुमार को फालो कीजिए. आपको रवीश के बारे में अपनी राय बनाने और रखने का पूरा अधिकार है लेकिन, सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठान के विरोध में उनका नजरिया मुझे और मुझ सरीखे बहुत से लोगों को पसंद आता है. मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था कि सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए.

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सत्ता और व्यवस्था का समर्थन करना जितना आसान है, सतत विरोध करना उतना ही मुश्किल. जहां तक रवीश द्वारा २.२० करोड़ रुपए के सालाना पैकेज की बात है, मोदी और उनकी सरकार के समर्थन में चाटुकारिता की हद तक जुटे दर्जनों पत्रकार इससे भी ज्यादा पैकेज पा रहे हैं. रही बात अपने मालिक के हित में बात करने की, क्या कोई भी कर्मचारी अपने मालिक के हितों को नुकसान पहुंचाकर उसके संस्थान में टिका रह सकता है.

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मैं ३६ साल के कैरियर में आठ संस्थानों और १० राज्यों में काम करने के अनुभव के साथ कह सकता हूं कि किसी भी संस्थान में मालिक या अपने वरिष्ठ अधिकारियों का विरोध करना है तो हर समय इस्तीफा जेब में रखना चाहिए. मैं तो भाग्यशाली था कि मेरे दौर में वैकल्पिक रोजगार के लिए ज्यादा भटकना नहीं पड़ता था. आज तो वैकल्पिक रोजगार मिलना बहुत मुश्किल हो गया है.

वरिष्ठ पत्रकार देवप्रिय अवस्थी की एफबी वॉल से.

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