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सियासत

एसबीआई में खाता खुलवाने में झेल गये वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र

विकास मिश्र-

बैंकिंग सेक्टर में सबसे ज्यादा चुटकुले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर बने हैं। इस काउंटर से उस काउंटर पर भेजने, बार-बार बैंक के चक्कर कटवाने और फिर काम न होने पर न जाने कितने चुटकुले बने हैं। हाल फिलहाल में मैं भी इन अनुभवों से दो चार हुआ हूं।

दरअसल एसबीआई से मेरा अनचाहा नाता जुड़ा इस नाते क्योंकि मेरा होम लोन और कार लोन दोनों एसबीआई से ही है। पता चला कि होम लोन अगर कभी आप चुकता करना चाहें तो यहां का खाता होना जरूरी है। इस बैंक में हम पति पत्नी खाता खोलने के लिए पहुंचे। हमारी सोसाइटी से किलोमीटर भर दूर एसबीआई का राजनगर एक्सटेंशन ब्रांच है।

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सुबह 11 बजे ब्रांच में पहुंचे। खास बात ये थी कि ब्रांच में 90 फीसदी महिला कर्मचारी हैं। ज्यादातर युवा। ज्वाइंट अकाउंट खुलवाना था तो चार फार्म भरने के लिए दिए गए। फार्म भरते भरते उंगलियां टूटने लगीं। चार फोटो भी लगी। बीच बीच में बैंक का सर्वर हैंग होता रहा। आखिरकार किसी तरह 2 बजे तक फार्म जमा हो गया। फार्म लेने वाली देवी ने कहा कि अब जाइए दो-तीन दिन में आपके पास खाता खुलने का मैसेज आएगा। फिर ब्रांच आइएगा, खाता नंबर पता चलेगा और पासबुक मिलेगी।

दो दिन बाद मैसेज आया और तीसरे दिन मैं खुद पहुंच गया ब्रांच में। दो महिलाएं फार्म देने, सूचना देने और मोबाइल बैंकिंग में लॉग इन करवाने के लिए तैनात थीं। उनसे पूछा तो बोलीं- उस काउंटर पर जाइए। वहां लाइन लगी थी। आखिरकार नंबर आया। बोलीं- आप गलत काउंटर पर आ गए, आपको उस काउंटर पर जाना चाहिए था। मैंने बताया कि आपकी ही कर्मचारी ने यहां भेजा है। वो बोलीं- अब क्या बताएं, वहां चले जाइए। खैर, मैं दूसरे वाले काउंटर पर गया। वहां की मैडम बोली- अरे ये तो वो भी कर सकती थी। काम नहीं करना चाहती। फिर पूछा-चेकबुक और एटीएम के लिए अप्लाई किया है कि नहीं। मैंने कहा- खाता खुलवा रहे हैं तो चेकबुक तो चाहिए ही होगी। वो बोली-उसके लिए अलग से फार्म लगेगा। भरकर लाइए।

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चेकबुक का फार्म भरकर दिया। देखकर वो फिर बोली-यहां तो आपकी पत्नी के भी दस्तखत होने चाहिए। मैंने कहा-ज्वाइंट अकाउंट है। एक के ही दस्तखत से काम चल सकता है। जब एक के दस्तखत से पैसा निकल सकता है तो चेकबुक क्यों नहीं मिल सकती। उसने मुझे फिर पहली वाली के पास भेजा। पहली वाली ने कहा-कुछ नहीं कर सकते, आपको पत्नी के सिग्नेचर लाने ही होंगे।

मैं थोड़ा भड़का तो एक महिला आई। बोली-आपको मैडम बुला रही हैं। मैडम यानी बैंक मैनेजर। उन्होंने समस्या पूछी। बोलीं कि दरअसल नियम कानून तो यही हैं। आप घर जाइए, पत्नी से भी दस्तखत करवाइए। फिर फार्म स्कैन करके हमारे पास मेल कर दीजिए। आपको आने की जरूरत नहीं है।

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गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन सोचा कि आज देखें इनकी इंतेहा क्या है। घर आया, पत्नी को नीचे बुला लिया। फिर पहुंचे ब्रांच। अब फार्म पर दोनों के दस्तखत थे। देवी ने कहा कि हां ठीक है। अब आपकी चेकबुक हफ्ते-दस दिन में पहुंच जाएगी। खैर, कुछ नकद पैसे जमा किए, फिर एक चेक जमा किया। अब बारी थी मोबाइल एप योनो पर रजिस्ट्रेशन की। जिसे जिम्मेदारी सौंपी थी, वो फोन पर बिजी थी। फोन कट ही नहीं रहा था, वो फोन की बात और सामने के ग्राहक दोनों को संभालने की कोशिश कर रही थी। फिर अचानक बोली- अब मैडम के पास जाकर अप्रूव करवाइए। मैं पहले वाली मैडम के पास गया। खैर उन्होंने अप्रूव कर दिया। बताया गया कि अब आपका काम हो गया है।

घर आकर लॉग इन किया। एक बेनिफिशियरी एड किया, जिसका अप्रूवल पेंडिंग दिखाता रहा और फिर गायब हो गया। हफ्ते भर बीत गया था। चेकबुक आई नहीं थी। नकद पैसे निकालने थे। श्रीमती जी को साथ लेकर आज ब्रांच पहुंचा। विड्रॉल फार्म भरा। जब काउंटर पर गया तो बताया कि 50,000 रुपये से ज्यादा आप निकाल नहीं सकते। आप एक बार मैडम के पास जाइए, क्या पता अप्रूव हो जाए।

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मैं फिर उन्हीं पहली वाली मैडम के पास गया। पहचान तो गईं ही। मुस्कान भी फेंकीं। मैं भी मुस्कुराते हुए कहा-इस अंजुमन में हमको आना है बार-बार। खैर विड्रॉल फार्म देखीं और हाथ खड़े कर दिए कि 50 हजार रुपये से ज्यादा सिर्फ चेक से निकल सकता है। मैंने मुस्कुराते हुए पूछा- तो चेकबुक मेरे पास नहीं है, क्या ये मेरी गलती है। अब तक आया ही नहीं, हफ्ते भर हो गए खाता खुले। मैडम मुस्कुराईं और कंधे उचका दिए। बोलीं- आप नेट बैंकिंग से ट्रांसफर कर लीजिए। यहीं पर लॉग इन कर लीजिए, क्योंकि वहां ब्रांच अप्रूवल मांग सकता है, तो आप कहेंगे कि फिर चक्कर कटवा रही हूं। मैंने कहा-कोई बात नहीं, नहीं हो पाएगा तो फिर आ जाएंगे।

वो बोली- सर आपको गुस्सा बहुत आ रहा होगा, क्या करें। मैंने कहा-बिल्कुल नहीं। क्योंकि मुझे एक शेर याद आ गया था।

तुमसे उम्मीद-ए- करम तो जिन्हें होगी उन्हें होगी।
हमें तो देखना ये है कि तू जालिम कहां तक है।
(उम्मीद-ए-करम = कृपा, रहम, मेहरबानी)

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देश में बैंकिंग नए दौर में है। जहां अब खाता खोलने के लिए बैंक जाने की जरूरत नहीं। फार्म भरने की जरूरत नहीं। प्राइवेट बैंक में खाता खोलना हो तो बैंककर्मी घर आकर एक मशीन पर आपका अंगूठा लगवाकर खाता खोल जाता है। कई प्राइवेट बैंकों में सभी बैंकिंग सुविधाएं मक्खन की तरह हैं, लेकिन आज के डिजिटल दौर में भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अभी 19वीं सदी की चाल चल रहा है। नेट बैंकिंग कीजिए तो हर कदम पर पासवर्ड, ओटीपी की जरूरत पड़ती है। इतनी पड़ताल है, इतना मीन मेख है, इतनी बाधाएं हैं, फिर भी जब किसी विजय माल्या और नीरव मोदी को चूना लगाना होता है तो वो एसबीआई और पीएनबी जैसे बैंकों को ही चुनते हैं।

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