प्रसिद्ध सौंदर्यशास्त्री और साहित्य-चिंतक रमेश कुंतल मेघ 92 वर्ष की आयु में आज 1.9.2023 को स्मृतिशेष हो गए। मेघ जी के जाने से आलोचना और विचार के क्षेत्र में जो जगह खाली हुई है, वह शायद ही कभी भरी जा सके।
रमेश कुंतल मेघ जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे 1982 से ही जलेस के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। जयपुर सम्मेलन (सितंबर 2022) में उन्हें संगठन के संरक्षक मंडल में स्थान मिला।
जलेस को हमेशा उनका स्नेह और सहयोग मिलता रहा। वे जब तक सक्रिय रहे, जलेस दफ़्तर आते रहे। उनके व्याख्यान अपनी प्रासंगिकता और दार्शनिक तेवर व गहराई के लिए याद किए जाते हैं। उनकी आलोचना-भाषा अपनी विशिष्ट बनावट व गझिन संवेदना के लिए ख्यात रही। अमेरिका में उन्हें सौंदर्यशास्त्र पर व्याख्यान हेतु अतिथि विद्वान के तौर पर आमंत्रित किया गया।
मेघ जी की दिलचस्पी मुख्यतः आधुनिकता, सौंदर्यविज्ञान और समाजशास्त्र के अध्ययन में रही। सुदीर्घ कृति ‘विश्वमिथकसरित्सागर’ उनकी वर्षों की अनथक साधना का प्रतिफल थी। इस कृति के अलावा उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—’मिथक और स्वप्न’, ‘तुलसी: आधुनिक वातायन से’, ‘आधुनिकता बोध और आधुनिकीकरण’, ‘मध्ययुगीन रस दर्शन और समकालीन सौन्दर्य बोध’ , ‘क्योंकि समय एक शब्द है’, ‘कला शास्त्र और मध्ययुगीन भाषिकी क्रांतियाँ, ‘सौन्दर्य-मूल्य और मूल्यांकन’, ‘अथातो सौन्दर्य जिज्ञासा’, ‘साक्षी है सौन्दर्य प्राश्निक’ ,’वाग्मी हो लो!’, ‘मन खंजन किनके?’, ‘कामायनी पर नई किताब’, ‘खिड़कियों पर आकाशदीप” इत्यादि।
जनवादी लेखक संघ रमेश कुंतल मेघ के निधन पर उन्हें भावभीनी पुष्पांजलि अर्पित करता है। वे हमारे लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे।
संजीव कुमार (महासचिव)
बजरंग बिहारी तिवारी (संयुक्त महासचिव)
नलिन रंजन सिंह (संयुक्त महासचिव)
संदीप मील (संयुक्त महासचिव)
दीपक कबीर-
प्रोफेसर रमेश कुंतल मेघ…
- धवल केश वाले लंबे तगड़े हॉलीवुड इफेक्ट लिए एक प्रोफेसर जो लखनऊ विश्विद्यालय के घोर दक्षिणपंथी शिक्षक कुनबे में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर आए थे…
- एक दिन अपनत्व और समझाने की मुद्रा में मुझसे कहते हैं कि तुम्हारे हेड डाक्टर सूर्य प्रसाद दीक्षित और एक तिवारी जी की शिकायत है कि पूरा विभाग सामने पड़ने पर लपक पर पांव छूता है पर ये आपका दीपक कभी पैर नहीं छूता मगर आकर सबके बीच हंस हंस के बात करता है, थोड़ा उसे समझा दीजिए कि अकेले में न छुए, कम्युनिस्ट है ..कोई बात नहीं ,मगर अन्य छात्रों के बीच या तो न आए या आए तो थोड़ा ध्यान रखे,ऐसे सब पर गलत प्रभाव पड़ता है.., फिर मुस्कुराकर…यार छू लिया करो…या अवॉइड कर लिया करो…क्या जाता है.., बड़ी लड़ाइयों पर फोकस करो ..
- उनका शानदार घर, जो किसी आर्ट म्यूजियम की तरह लगता था,विकास नगर की मेन रोड पर…,फिर एक दिन उनका फोन आया कि बेच कर वापस जाना है ,लखनऊ बड़े मन से आया था पर लोगों ने अपनाया नहीं,किसी के पास मिलने जुलने का वक्त ही नहीं…। मेरे अग्रज साथी अवधेश मिश्रा उनके प्रति बहुत स्नेह रखते थे..डिस्कस करते रहे इतना अच्छा घर है..कोई अपना ले भी नहीं सकता। जाने कौन लेगा और इतनी कलात्मकता से भरा घर नष्ट हो जाएगा. जहां तक याद है उस वक्त वो घर सिर्फ 13 लाख का था..
4.अवधेश मिश्रा, जिनकी 1 या 2 जुलाई को गोंडा में हुई शादी में एक अजीब घटना हुई रमेश कुंतल मेघ जी के साथ, मगर इस स्नेहिल प्रोफेसर ने कितनी मैच्योरिटी के साथ वो सब हैंडल किया कि बरसों बरस जब मैं और अवधेश भाई उस घटना को याद करते तो उनके प्रति श्रद्धा से भर जाते ..
- मेरे पास एक पेपर सौंदर्य शास्त्र (पोएटिक्स या एस्थेटिक्स) का भी था, छात्र नेता होने की वजह से क्लास तो कभी जाना नहीं हो पाता था..उस पर दिसंबर आखिर में एक लंबी जेल अलग हो गई, जेल में शायद अवधेश भाई और सर्वेश भाई मिलने आए या सनत भाई, पर पहल के ताज़ा अंक के साथ इम्तहान की तैयारी के लिए “सौंदर्य शास्त्र” पर एक किताब दे गए । जेल से निकलने के कुछ हफ्तों में जब मैं प्रोफेसर रमेश कुंतल मेघ से मिला…तो वो बोले…इस सौन्दर्य शास्त्र के पेपर में तुम अकेले छात्र हो और मैं अकेला शिक्षक.., ज़ाहिर है तुमने मेरी एक भी क्लास पढ़ी नहीं..,तुम मेरे प्रिय हो..अब या तो तुम्हे मैं पढ़ाऊं..,फिर तुम्हारे अकेले के लिए पेपर बनाऊं…,और इतना ईमानदार भी बना रहूं कि पढ़ाने और पेपर के बीच अनजाने ही कोई बेइमानी भी स्थापित हो..या तुम कोई दूसरा पेपर ले लो..और उसमे भी मैं तुम्हारी मदद कर दूं..,फिर हंसे,क्यों बेकार मुझसे पेपर बनवाने की मेहनत करवाओगे
6.मुझे पता चला कि पंजाब में उन पर खतरा था, बतौर मार्क्सवादी वो उस वक्त आतंकवादियों के निशाने पर थे..पंजाब खालिस्तानी आतंकवादियों की गिरफ्त में था..,शायद कुछ हमले भी हुए थे..बहुत याद नहीं पर उन्होंने भी कई बातें बताई थी, बहरहाल उनको देखता तो इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में रोमांचित फील करता।
- एक दिन हिंदुस्तान अखबार का साहित्यिक पेज पढ़ते हुए मेरे प्रबुद्ध और ट्रेड यूनियन लीडर चाचा ने मुझसे कहा..ये रमेश कुंतल मेघ कौन लेखक है..कई हफ्तों से इनका लेख पढ़ने की कोशिश करता हूं..मगर कुछ समझ ही में नहीं आता..ऐसी हिंदी तो दिमाग चकरा देती है, ये कहना क्या चाहते हैं । मैंने मुस्कुराकर मेघ जी के बारे में बताया..उनकी गूढता की वजहों के बारे में, और कहा..आपको किसी दिन आमने सामने मिलवाऊंगा,बहुत प्यारे व्यक्ति हैं
- मेरी शादी कोर्ट में हुई थी, फिर साथियों और कॉमरेड्स के साथ एक रिसेप्शन, मेघ जी आए ,खुश थे..अगले दिन सुबह से तालिबान के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन था।मैं और वीना उसी में व्यस्त, शाम को जब घर पहुंचा तो पता चला मेघ जी का दो बार फोन आया था, जब तक समझता फिर फोन आ गया..,मैंने प्रदर्शन का बताया…,मगर उनके फोन की वजह कुछ और थी..बोले इतना अच्छा था तुम्हारे रिसेप्शन पर…सब मिले। पर बहुत भव्य लग रहा था..कोमरेड्स की शादी तो बस ऐसे ही हो जाती हैं, ये क्यूं किया.. ,फिर मैंने कहा कि भव्य नहीं जुगाड था..जगह लगभग निशुल्क, सारा इंतज़ाम जुगाड से..,पता नहीं कनविंस हुए या नहीं…पर कहा कि घर आना , ज़ीरो से शुरू कर रहे हो..कुछ चीजें हैं मेरे पास..चाहो तो ले जाना..
9.मुझे एक बात से ताज्जुब रहता था और थोड़ी शिकायत भी, कि घोषित मार्क्सवादी होते हुए भी वो दक्षिण पंथी शिक्षकों से कैसे निबाह लेते थे ,यहीं नहीं उनसे पर्याप्त सम्मान भी पाते रहे।
- MA second year वालों को फेयरवेल दे रहे थे फर्स्ट इयर वाले। बहुत इत्तेफ़ाक से यूनिवर्सिटी में मेरी पहली प्रेमिका बनी थी..,बाद में पता चला मुझसे सीनियर थी वो..,मैं फिलोसोफी डिपार्टमेंट का छात्र था, पर उसके चक्कर में फिलोसोफी छोड़ हिंदी में एडमिशन ले लिया। मेरे अब इधर आने जाने के कारण 23 मार्च को भगत सिंह वाले जुलूस पर हुए पुलिस हमले और गिरफ्तारी के बाद एक शहीदवेदी हिंदी डिपरमेंट में ही रखवा दी गई थी। मैं ज्यादा रुचि तो इन कार्यक्रमों में ले नहीं पाता था पर मेरी प्रेमिका का विदाई समारोह था..
कार्यक्रम दक्षिणपंथी शिक्षकों के निर्देशन में होता था..मुझे उस ढांचे को तोड़ना था, मैने मेघ जी को बता दिया इस बार देखिए क्या होगा..वो थोड़े सशंकित थे,समझा भी रहे थे.. ,मैंने हेड से कहा कि हम कार्यक्रम के पहले अपने देश के शहीदों को भी याद करेंगे..भाषा कुछ ऐसी थी कि वो मना नहीं कर पाए। या शायद सरस्वती मूर्ति के अनावरण की बात थी जो परंपरा थी । दूसरा शिक्षकों और छात्रों को सम्मान में टाइटिल दिए जाते हैं..मैंने कहा 2 लोगों के टाइटिल मैं लिखूंगा..और फर्स्ट इयर की तरफ से सेकंड इयर के लिए मैसेज भी मैं दूंगा। जब कैंटीन वगैरह से निपट कर हाल में पहुंचा तो सब तैयारियां हो चुकीं थीं, दो तीन लड़कियां एक प्लेट में नाश्ता लगा रहीं थी मगर उसमे चार पीस आ नहीं रहे थे,मैने कहा एक समोसा कम कर दो तो लड़कियों ने ऐसे देखा जैसे कुफ्र कर दिया..,प्लेट में अगर तीन चीजें दी गईं तो अपशगुन होगा..पांडे जी मार ही डालेंगे। मैने कहा ..तुम लोग जाओ..एंजॉय करो ,हम ये कर देते हैं..
पहले तो सब चीजों को जानबूझ कर तीन किया गया..
फिर जब उद्धघाटन हुआ तो मैंने जानकर हेड के साथ रमेश कुंतल मेघ को कपड़ा हटाने के लिए आमंत्रित किया , अंदर सरवती प्रतिमा की बजाय वही शहीद वेदी थी ,जिस पर खून जैसे टपके हुए धारे थे और लिखा हुआ था “अमर शहीदों को लाल सलाम ” … मेघ जी ने संक्षिप्त भाषण दिया..वो समझ गए खेल हो चुका है..नाश्ते की प्लेट आईं तीन तीन सामग्री वाली..लड़कियां मुझे घूरते हुए बांट रहीं थी और मैं पांडे जी को देखते हुए मुस्कुरा रहा था..
सेकेंडियर को मैसेज देते हुए मैने आज़ादी,प्रगतिशीलता जैसे कुछ लफ्जों का प्रयोग करते हुए साहिर की नज़्म का एक हिस्सा थोड़ा तर्जुमा करते हुए पढ़ा..
“कौन कहता है कि आहें हैं मुसीबत का इलाज
जान को अपने अबस रोग लगाती क्यों हो,
एक सरकश से मुहब्बत की तमन्ना करके..
खुद को जुल्मों (असल शब्द आइन) के फंदों में फंसाती क्यों हो,
तुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर लो..
वरना मां बाप जहां कहते हैं, शादी कर लो …
(ये अलग बात है ,उसने मां बाप जहां कहते थे शादी कर ली,अच्छा किया)
और फिर सारे टीचर्स के बाद फिर मैं माइक पर गया…
अब तक विभाग का परंपरागत इतिहास सकते में था…
मैंने पर्ची पर लिखा नाम पुकारा..
“प्रोफेसर रमेश कुंतल मेघ” के लिए…
” ओ मालिक,नेता धर्मगुरु..
इस ताकत से हो रू ब रू..
जो सुलग रही चिंगारी है…वो पहचान हमारी है..
तुम चुप बैठो,लाचारी है…ये लाल कारवां जारी है..
और ये कहते हुए उस पूरे विभाग में उस लाल कारवें के प्रतीक रमेश कुंतल मेघ के सम्मान में मुठ्ठी तान कर सैल्यूट कर दिया..
जाने क्लास को इन सब पॉलिटिकल जुमलेबाजी का मतलब कुछ समझ में आ रहा था या नहीं मगर अदा कुछ ऐसी थी कि पूरा क्लास मेघ जी के लिए सम्मान में खड़ा होकर तालियां बजाने लगा..
दो दिन बाद मैने मेघ जी से पूछा ,अंदर का क्या रिएक्शन था..
वो मुस्कुराए,बोले सब ठीक है, बस लोगों को तुम्हारी हरकतों में मेरी साजिश नज़र आ रही थी ,हंसे…बोले पढ़ाई पर ध्यान दो, वामपंथियों को पढ़ाई में सबसे आगे रहना होता है..
फिर मेघ जी मुझसे गुम होते चले गए..
छूटते चले गए… लखनऊ भी उनसे छूट गया..
बीच में कई बार उनकी याद आती, डर लगता अभी जीवित हैं या नहीं, अवधेश भाई या कोई और बताता …अभी हैं , प्लान बनता ,उन्हें फोन किया जाय,मिला जाय,मिलने चला जाय या बुलाया जाए…
मगर ये सब फकत बातें थीं…
हम कमजर्फ थे…एक फोन नहीं कर पाए..
जितनी बार जिक्र होता..बस एक सुकून रहता ,
अभी वक्त है…वो जीवित हैं स्वस्थ हैं…
आज वो स्मार्ट ,बलिष्ठ, हैंड स्टिक थामे धवल चोटी रखने वाला अमेरिकन प्रोफेसर जैसा माडर्न ,जो ऐसी हिंदी लिखता था कि लोग पूछते थे कि इसको हिंदी में कोई कर सकता है…
भारी आवाज़ में भोले कौतुक के साथ एक नौसिखिया उद्दंड छात्र से भी अपनत्व और बराबरी के संवाद करने वाला..
वो लाल कारवां …ठहर गया
वो जिसकी चमकती आंखों और अद्भुत व्याख्याओं से आप हर कविता ,हर आर्ट पीस को देखने की कमाल की सौंदर्य दृष्टि पा सकते थे…दुनिया थोड़ी खूबसूरत हो सकती थी..
(अवधेश भाई के पास मुझसे कई गुना ज्यादा किस्से होंगे)