पहला पत्र रवीश कुमार का एमजे अकबर के नाम…..
आदरणीय अकबर जी,
प्रणाम,
ईद मुबारक़। आप विदेश राज्य मंत्री बने हैं, वो भी ईद से कम नहीं है। हम सब पत्रकारों को बहुत ख़ुश होना चाहिए कि आप भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता बनने के बाद सांसद बने और फिर मंत्री बने हैं। आपने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। फिर उसके बाद राजनीति से लौट कर सम्पादक भी बने। फिर सम्पादक से प्रवक्ता बने और मंत्री। शायद मैं यह कभी नहीं जान पाऊँगा कि नेता बनकर पत्रकारिता के बारे में क्या सोचते थे और पत्रकार बनकर पेशगत नैतिकता के बारे में क्या सोचते थे? क्या आप कभी इस तरह के नैतिक संकट से गुज़रे हैं? हालाँकि पत्रकारिता में कोई ख़ुदा नहीं होता लेकिन क्या आपको कभी इन संकटों के समय ख़ुदा का ख़ौफ़ होता था?
अकबर जी, मैं यह पत्र थोड़ी तल्ख़ी से भी लिख रहा हूँ। मगर उसका कारण आप नहीं है।आप सहारा बन सकते हैं। पिछले तीन साल से मुझे सोशल मीडिया पर दलाल कहा जाता रहा है। जिस राजनीतिक परिवर्तन को आप जैसे महान पत्रकार भारत के लिए महान बताते रहे हैं, हर ख़बर के साथ दलाल और भड़वा कहने की संस्कृति भी इसी परिवर्तन के साथ आई है। यहाँ तक कि मेरी माँ को रंडी लिखा गया और आज कल में भी इस तरह मेरी माँ के बारे में लिखा गया। जो कभी स्कूल नहीं जा सकी और जिन्हें पता भी नहीं है कि एंकर होना क्या होता है, प्राइम टाइम क्या होता है। उन्होंने कभी एनडीटीवी का स्टुडियो तक नहीं देखा है। वो बस इतना ही पूछती है कि ठीक हो न।अख़बार बहुत ग़ौर से पढ़ती है। जब उसे पता चला कि मुझे इस तरह से गालियाँ दी जाती हैं तो घबराहट में कई रात तक सो नहीं पाई।
अकबर जी, आप जब पत्रकारिता से राजनीति में आते थे तो क्या आपको भी लोग दलाल बोलते थे, गाली देते थे, सोशल मीडिया पर मुँह काला करते थे जैसा मेरा करते हैं। ख़ासकर ब्लैक स्क्रीन वाले एपिसोड के बाद से। फिर जब कांग्रेस से पत्रकारिता में आए तो क्या लोग या ख़ासकर विरोधी दल, जिसमें इन दिनों आप हैं, आपके हर लेखन को दस जनपथ या किसी दल की दलाली से जोड़ कर देखते थे? तब आप ख़ुद को किन तर्कों से सहारा मिलता था? क्या आप मुझे वे सारे तर्क दे सकते हैं? मुझे आपका सहारा चाहिए।
मैंने पत्रकारिता में बहुत सी रिपोर्ट ख़राब भी की है। कुछ तो बेहद शर्मनाक थीं। पर तीन साल पहले तक कोई नहीं बोलता था कि मैं दलाल हूँ। माँ बहन की गाली नहीं देता था। अकबर सर, मैं दलाल नहीं हूँ। बट डू टेल मी व्हाट शूड आई डू टू बिकम अकबर। वाजपेयी सरकार में मुरली मनोहर जोशी जी जब मंत्री थे तब शिक्षा के भगवाकरण पर खूब तक़रीरें करता था। तब आपकी पार्टी के दफ्तर में मुझे कोई नफ़रत से बात नहीं करता था। डाक्टर साहब तो इंटरव्यू के बाद चाय भी पिलाते थे और मिठाई भी पूछते थे। कभी यह नहीं कहा कि तुम कांग्रेस के दलाल हो इसलिए ये सब सवाल पूछ रहे हो। उम्र के कारण जोशी जी गुस्साते भी थे लेकिन कभी मना नहीं किया कि इंटरव्यू नहीं दूँगा और न ऐसा संकेत दिया कि सरकार तुमसे चिढ़ती है। बल्कि अगले दिन उनके दफ्तर से ख़बरें उड़ा कर उन्हें फिर से कुरेद देता था।
अब सब बदल गया है। राजनीतिक नियंत्रण की नई संस्कृति आ गई है। हर रिपोर्ट को राजनीतिक पक्षधरता के पैमाने पर कसने वालों की जमात आ गई। यह जमात धुआँधार गाली देने लगी है। गाली देने वाले आपके और हमारे प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाए हुए रहते हैं और कई बार राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े प्रतीकों का इस्तमाल करते हैं। इनमें से कई मंत्रियों को फालो करते हैं और कइयों को मंत्री। ये कुछ पत्रकारों को भाजपा विरोधी के रूप में चिन्हित करते हैं और बाकी की वाहवाही करते हैं।
निश्चित रूप से पत्रकारिता में गिरावट आई है। उस दौर में बिल्कुल नहीं आई थी जब आप चुनाव लड़े जीते, फिर हारे और फिर से संपादक बने। वो पत्रकारिता का स्वर्ण काल रहा होगा। जिसे अकबर काल कहा जा सकता है अगर इन गाली देने वालों को बुरा न लगे तो। आजकल भी पत्रकार प्रवक्ता का एक अघोषित विस्तार बन गए है। कुछ घोषित विस्तार बनकर भी पूजनीय हैं। मुझसे तटस्थता की आशा करने वाली गाली देने वालों की जमात इन घोषित प्रतिकारों को कभी दलाल नहीं कहती। हालाँकि अब जवाब में उन्हें भी दलाल और न जाने क्या क्या गाली देने वाली जमात आ गई है। यह वही जमात है जो स्मृति ईरानी को ट्रोल करती है।
आपको विदेश मंत्रालय में सहयोगी के रूप में जनरल वी के सिंह मिलेंगे जिन्होंने पत्रकारों के लिए ‘प्रेस्टिट्यूड’ कहा। उनसे सहमत और समर्थक जमात के लोग हिन्दी में हमें ‘प्रेश्या’ बुलाते हैं। चूँकि मैं एन डी टी वी से जुड़ा हूँ तो N की जगह R लगाकर ‘रंडी टीवी’ बोलते हैं। जिसके कैमरों ने आपकी बातों को भी दुनिया तक पहुँचाया है। क्या आपको लगता है कि पत्रकार स़ख्त सवाल करते हुए किसी दल की दलाली करते हैं? कौन सा सवाल कब दलाली हो जाता है और कब पत्रकारिता इस पर भी कुछ रौशनी डाल सकें तो आप जैसे संपादक से कुछ सीख सकूँगा। युवा पत्रकारों को कह सकूँगा कि रवीश कुमार मत बनना, बनना तो अकबर बनना क्योंकि हो सकता है अब रवीश कुमार भी अकबर बन जाये।
मै थोड़ा भावुक इंसान हूँ । इन हमलों से ज़रूर विचलित हुआ हूँ। तभी तो आपको देख लगा कि यही वो शख्स है जो मुझे सहारा दे सकता है। पिछले तीन साल के दौरान हर रिपोर्ट से पहले ये ख़्याल भी आया कि वही समर्थक जो भारत के सांस्कृतिक उत्थान की आगवानी में तुरही बजा रहे हैं, मुझे दलाल न कह दें और मेरी माँ को रंडी न कह दें। जबकि मेरी माँ ही असली और एकमात्र भारत माता है। माँ का ज़िक्र इसलिए बार बार कह रहा हूँ क्योंकि आपकी पार्टी के लोग ‘एक माँ की भावना’ को सबसे बेहतर समझते हैं। माँ का नाम लेते ही बहस अंतिम दीवार तक पहुँच कर समाप्त हो जाती है।
अकबर जी, मैं यह पत्र बहुत आशा से लिख रहा हूँ । आपका जवाब भावी पत्रकारों के लिए नज़ीर बनेगा। जो इन दिनों दस से पंद्रह लाख की फीस देकर पत्रकारिता पढ़ते हैं। मेरी नज़र में इतना पैसा देकर पत्रकारिता पढ़ने वाली पीढ़ी किसी कबाड़ से कम नहीं लेकिन आपका जवाब उनका मनोबल बढ़ा सकता है।
जब आप राजनीति से लौट कर पत्रकारिता में आते थे तो लिखते वक्त दिल दिमाग़ पर उस राजनीतिक दल या विचारधारा की ख़ैरियत की चिन्ता होती थी? क्या आप तटस्थ रह पाते थे? तटस्थ नहीं होते थे तो उसकी जगह क्या होते थे? जब आप पत्रकारिता से राजनीति में चले जाते थे तो अपने लिखे पर संदेह होता था? कभी लगता था कि किसी इनाम की आशा में ये सब लिखा है? मैं यह समझता हूँ कि हम पत्रकार अपने समय संदर्भ के दबाव में लिख रहे होते हैं और मुमकिन है कि कुछ साल बाद वो ख़ुद को बेकार लगे लेकिन क्या आपके लेखन में कभी राजनीतिक निष्ठा हावी हुई है? क्या निष्ठाओं की अदला बदली करते हुए नैतिक संकटों से मुक्त रहा जा सकता है? आप रह सके हैं?
मैं ट्वीटर के ट्रोल की तरह गुजरात सहित भारत के तमाम दंगों पर लिखे आपके लेख का ज़िकर नहीं करना चाहता। मैं सिर्फ व्यक्तिगत संदर्भ में यह सवाल पूछ रहा हूँ। आपसे पहले भी कई संस्थानों के मालिक राज्य सभा गए। आप तो कांग्रेस से लोकसभा लड़े और बीजेपी से राज्य सभा। कई लोग दूसरे तरीके से राजनीतिक दलों से रिश्ता निभाते रहे। पत्रकारों ने भी यही किया। मुझे ख़ुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेसी सरकारों की इस देन को बरक़रार रखा है। भारतीय संस्कृति की आगवानी में तुरही बजाने वालों ने यह भी न देखा कि लोकप्रिय अटल जी ख़ुद पत्रकार थे और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने अख़बार वीरअर्जुन पढ़ने का मोह त्याग न सके। कई और उदाहरण आज भी मिल जायेंगे।
मुझे लगा कि अब अगर मुझे कोई दलाल कहेगा या माँ को गाली देगा तो मैं कह सकूँगा कि अगर अकबर महान है तो रवीश कुमार भी महान है। वैसे मैं अभी राजनीति में नहीं आया हूँ। आ गया तो आप मेरे बहुत काम आयेंगे। इसलिए आप यह भी बताइये कि पत्रकारों को क्या करना चाहिए। क्या उन्हें चुनाव लड़कर, मंत्री बनकर फिर से पत्रकार बनना चाहिए। तब क्या वे पत्रकारिता कर पायेंगे? क्या पत्रकार बनते हुए देश सेवा के नाम पर राजनीतिक संभावनाएँ तलाश करती कहनी चाहिए? ‘यू कैन से सो मेनी थिंग्स ऑन जर्नलिज़्म नॉट वन सर’!
मैं आशा करता हूँ कि तटस्थता की अभिलाषा में गाली देने वाले आपका स्वागत कर रहे होंगे। उन्हें फूल बरसाने भी चाहिए। आपकी योग्यता निःसंदेह है। आप हम सबके हीरो रहे हैं। जो पत्रकारिता को धर्म समझ कर करते रहे मगर यह न देख सके कि आप जैसे लोग धर्म को कर्मकांड समझकर निभाने में लगे हैं। चूँकि आजकल एंकर टीआरपी बताकर अपना महत्व बताते हैं तो मैं शून्य टीआरपी वाला एंकर हूँ। टीआरपी मीटर बताता है कि मुझे कोई नहीं देखता। इस लिहाज़ से चाहें तो आप इस पत्र को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। मगर मंत्री होने के नाते आप भारत के हर नागरिक के प्रति सैंद्धांतिक रूप से जवाबदेह हो जाते हैं।उसी की ख़ैरियत के लिए इतना त्याग करते हैं। इस नाते आप जवाब दे सकते हैं। नंबर वन टी आर पी वाला आपसे नहीं पूछेगा कि ज़ीरो टी आर पी वाले पत्रकार का जवाब एक मंत्री कैसे दे सकता है वो भी विदेश राज्य मंत्री। वन्स एगेन ईद मुबारक सर। दिल से।
आपका अदना,
रवीश कुमार
उपरोक्त पत्र के जवाब में रवीश कुमार के नाम जी न्यूज के रोहित सरदाना का पत्र यूं है….
आदरणीय रविश कुमार जी
नमस्कार
सर, ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, फेस टाइम के दौर में आपने चिट्ठी लिखने की परंपरा को ज़िंदा रखा है उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. हो सकता है कि चिट्ठियां लिखने की वजह ये भी हो कि ट्विटर, फेसबुक पे लोग जवाब दे देते हैं और चिट्ठी का जवाब मिलने की उम्मीद न के बराबर रहती है, इस लिए चिट्ठी लिखने का हौसला बढ़ जाता हो. पर हमेशा की तरह एक बार फिर, आपने कम से कम मुझे तो प्रेरित किया ही है कि एक चिट्ठी मैं भी लिखूं – इस बात से बेपरवाह हो कर – कि इसका जवाब आएगा या नहीं.
ये चिट्ठी लिखने के पहले मैंने आपकी लिखी बहुत सी चिट्ठियां पढ़ीं. अभी अभी बिलकुल. इंटरनेट पर ढूंढ कर. एनडीटीवी की वेबसाइट पर जा कर. आपके ब्लॉग को खंगाल कर. एम जे अकबर को लिखी आपकी हालिया चिट्ठी देखी. पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी देखी. मुख्यमंत्रियों के नाम आपकी चिट्ठी देखी. विजय माल्या के नाम की चिट्ठी देखी. पुलिस वालों के नाम भी आपकी चिट्ठी देखी.
सर लेकिन बहुत ढूंढने पर भी मैं आपकी वरिष्ठ और बेहद पुरानी सहयोगी बरखा दत्त के नाम की खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि नीरा राडिया के टेप्स में मंत्रियों से काम करा देने की गारंटी लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगी?
बहुत तलाशने के बाद भी मैं आपके किसी ठिकाने पर वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रहे आशुतोष जी (जो अब आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं) के नाम आपकी कोई खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि साल-डेढ़ साल तक स्टूडियो में हॉट-सीट पर बैठ कर , अन्ना के पक्ष में किताब लिखना और फिर उस मेहनत कूपन को पार्टी प्रवक्ता की कुर्सी के बदले रिडीम करा लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगे?
सर मैंने बहुत ढूंढा, लेकिन मैं आपके पत्रों में आशीष खेतान के नाम कोई चिट्ठी नहीं ढूढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि सवालों में घिरे कई स्टिंग ऑपरेशनों, प्रशांत भूषण जी के बताए पक्षपातपूर्ण टू जी रिपोर्ताजों के बीच निष्पक्ष होने का दावा करते अचानक एक पार्टी का प्रवक्ता हो जाना अगर दलाली है – तो क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी शेयर करेंगे?
सर मैं अब भी ढूंढ रहा हूं. लेकिन राजदीप सरदेसाई के नाम आपका कोई पत्र मिल ही नहीं रहा. जिसमें आपने पूछा हो कि 14 साल तक एक ही घटना की एक ही तरफ़ा रिपोर्टिंग और उस घटना के दौरान आए एक पुलिस अफसर की मदद के लिए अदालत की तल्ख टिप्पणियों के बावजूद, वो हाल ही में टीवी चैनल के संपादक होते हुए गोवा में आम आदमी पार्टी की रैली में जिस तरह माहौल टटोल रहे थे, अगर वो दलाली है, तो क्या राजदीप जी आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी लेंगे?
सर मैंने बहुत तलाशा. लेकिन मैं उन सब पत्रकार (पढ़ें रिपोर्टर) दोस्तों के नाम आपकी कोई चिट्ठी नही ढूंढ पाया, जिन्हें दिल्ली सरकार ने ईनाम के तौर पर कॉलेजों की कमेटियों का सम्मानित सदस्य बना दिया. सर जब लोग आ कर कहते हैं कि आपका फलां साथी रसूख वाला है, उससे कह के दिल्ली के कॉलेज में बच्चे का एडमिशन करा दीजिए. आपका मन नहीं करता उनमें से किसी से पूछने का कि क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी आपके साथ बांटेंगे?
पत्रकारों का राजनीति में जाना कोई नई बात नहीं है. आप ही की चिट्ठियों को पढ़ के ये बात याद आई. लेकिन पत्रकारों का पत्रकार रहते हुए एक्टिविस्ट हो जाना, और एक्टिविस्ट होते हुए पार्टी के लिए बिछ जाना – ये अन्ना आंदोलन के बाद से ही देखा. लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ थी. मैं भी जाता था अपनी 3 साल की बेटी को कंधे पर ले कर. मैं भीड़ में था. आप मंच पर थे. तब लगा था कि क्रांतिकारी पत्रकार ऐसे होते हैं. लेकिन फिर इंटरव्यू में किरण बेदी को दौड़ाते और अरविंद केजरीवाल को सहलाते आपको देखा तो उसी मंच से दिए आपके भाषण याद आ गए.
क्रांतिकारी से याद आया, आपकी चिट्ठियों में प्रसून बाजपेयी जी के नाम भी कोई पत्र नहीं ढूंढ पाया. जिसमें आपने पूछ दिया हो कि इंटरव्यू का कौन सा हिस्सा चलाना है, कौन सा नहीं, ये इंटरव्यू देने वाले से ही मिल के तय करना अगर दलाली है – तो क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी लेंगे?
सर गाली तो लोग मुझे भी देते हैं. वही सब जो आपको देते हैं. बल्कि मुझे तो राष्ट्रवादी भी ऐसे कहा जाता है कि जैसे राष्ट्रवादी होना गाली ही हो. और सर साथ साथ आपसे सीखने की नसीहत भी दे जाते हैं. पर क्या सीखूं आपसे ? आदर्शवादी ब्लॉग लिखने के साथ साथ काले धन की जांच के दायरे में फंसे चैनल की मार्केटिंग करना?
सर कभी आपका मन नहीं किया आप प्रणय रॉय जी को एक खुली चिट्ठी लिखें. उनसे पूछें कि तमाम पारिवारिक-राजनीतिक गठजोड़ (इसे रिश्तेदारी भी पढ़ सकते हैं) के बीच – आतंकियों की पैरवी करने की वजह से, देश के टुकड़े करने के नारे लगाने वालों की वकालत करने की वजह से, लगभग हर उस चीज़ की पैरवी करने की वजह से जो देश के बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को आहत करती हो – अगर लोग आपको दलाल कहने लगे हैं तो क्या वो इसकी ज़िम्मेदारी लेंगे?
उम्मीद करता हूं आप मेरे पत्र को अन्यथा नहीं लेंगे. वैसे भी आपकी चिट्ठी की तरह सारे सोशल मीडिया ब्लॉग्स और अखबार मेरे लिखे को हाथों हाथ नहीं लेंगे. लेकिन आपकी राजनीतिक/गैर राजनीतिक सेनाएं इस चिट्ठी के बाद मेरा जीना हराम कर देंगी ये मैं जानता हूं. जिन लोगों का ज़िक्र मेरी चिट्ठी में आया है – वो शायद कभी किसी संस्थान में दोबारा नौकरी भी न पाने दें. पर सर मैं ट्विटर से फिर भी भागूंगा नहीं. न ही आपको ब्लॉक कर दूंगा (मुझे आज ही पता लगा कि आपने मुझे ब्लॉक किया हुआ है, जबकि मेरे आपके बीच ये पहला संवाद है, न ही मैंने कभी आपके लिए कोई ट्वीट किया, नामालूम ये कड़वाहट आपमें क्यों आई होगी, खैर).
सर आप भगवान में नहीं मानते शायद, मैं मानता हूं. और उसी से डरता भी हूं. उसी के डर से मैंने आप जैसे कई बड़े लोगों को देखने के बाद अपने आप को पत्रकार लिखना बंद कर दिया था, मीडियाकर्मी लिखने लगा. बहुत से लोग मिलते हैं जो कहते हैं पहले रवीश बहुत अच्छा लगता था, अब वो भी अपने टीवी की तरह बीमार हो गया है. शायद आप को भी मिलते हों. वो सब संघी या बीजेपी के एजेंट या दलाल नहीं होते होंगे सर. तो सबको चिट्ठियां लिखने के साथ साथ एक बार अपनी नीयत भी टटोल लेनी चाहिए, क्या जाने वो लोग सही ही कहते हों?
आपका अनुज
रोहित
mahipal
July 8, 2016 at 9:47 am
सर लेकिन बहुत ढूंढने पर भी मैं आपकी वरिष्ठ और बेहद पुरानी सहयोगी बरखा दत्त के नाम की खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि नीरा राडिया के टेप्स में मंत्रियों से काम करा देने की गारंटी लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगी?
सर आप भगवान में नहीं मानते शायद, मैं मानता हूं. और उसी से डरता भी हूं. उसी के डर से मैंने आप जैसे कई बड़े लोगों को देखने के बाद अपने आप को पत्रकार लिखना बंद कर दिया था, मीडियाकर्मी लिखने लगा. बहुत से लोग मिलते हैं जो कहते हैं पहले रवीश बहुत अच्छा लगता था, अब वो भी अपने टीवी की तरह बीमार हो गया है. शायद आप को भी मिलते हों. वो सब संघी या बीजेपी के एजेंट या दलाल नहीं होते होंगे सर. तो सबको चिट्ठियां लिखने के साथ साथ एक बार अपनी नीयत भी टटोल लेनी चाहिए, क्या जाने वो लोग सही ही कहते हों? ye rohit sadana ne apne man ki bhdas nikali h ravish ki badti lokpriyata dekhte hue ravish ne jo ptra mj akabar ko likha h us se koe lena dena nhi h rohit ki chitti ka
अनुराग श्रीवास्तव अन्ना
July 8, 2016 at 12:31 pm
यशवंत जी सच कहूं तो आजकल के युग में मीडिया का रोल क्या है ये बहुत से मीडिया घराने भूल चुके है मग़र मैं हर उस शख्स के ख़िलाफ़ निंदा करता हूँ जो किसी की माँ बहन को गाली देतें हैं क्यों की दुनिया की कोई भी माँ ये नही चाहती की उसकी कोख़ में जो औलाद पल रही है उसकी वजह से उसके गर्भ को लज्जित होना पड़े मग़र यशवंत जी वास्तव में आज पत्रकारिता का स्तर देश हित के लिए न् होकर महज TRP की होड़ में नज़र आता है जो देश के लिए और इस कलम के पेशे के साथ गद्दारी है । रही बात NDTV की तो रविश जी आप एक योग्य पत्रकार हो निःसंदेह मग़र आप स्वयं कभी गहन चिंतन करियेगा की क्या NDTV निस्पक्ष ख़बरों का प्रसारण करता है नही । पर मैंने ज़ी न्यूज़ को निष्पक्ष पत्रकारिता करते हुए देखा है महसूस किया रोहित सरदाना जी को सुधीर चौधरी जी को सुमित अवस्थी जी को समाचार प्लस के पूर्व एडिटर इन चीफ़ अमिताभ अग्निहोत्री जी को क्या उन्हें कोई सरकार या व्यक्ति विशेष अलग से धन बल देता था सबसे बड़ा उधारण यसवंत जी ही हैं निष्पक्ष पत्रकारिता का जिनकी जेल यात्रा भी उन्होंने सज़ा के तौर पर नही एक पत्रकार कलम का सिपाही बनकर काटी और आज यसवंत जी फिर से वहीँ है । मग़र आज अग़र एक शोशल नेटवर्किंग सर्वे करा लिया जाये तो रविश जी मैं दावे के साथ कहता हूँ की NDTV की TRP नीचे से प्रथम आएगी । कृपया मेरे कमेंट को अन्यथा न् लेकर उसके ऊपर गहन विचार करें हो सकता हैं कि मैं अभी उस योग्य न् होऊँ मग़र मैंने स्वयं 11 वर्ष कानपुर शहर को पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रदान कियें है और आज उसी का नतीज़ा है कि मैं साधारण से असाधारण बन गया हूँ । वजह यही रही है कि निष्पक्ष पत्रकारिता करने पर संसथान आपको रोकता है क्यों की उसे अपना बिज़नेस भी देखना है मगर आज ज़ी न्यूज़ इसी वजह से सबका प्रिय है क्यों की बेबाक और सत्य वार्ता पर कर्मचारियों की और सुभाष चंद्रा जी की राय में मतभेद नही नज़र आता हाँ ये कुछ दिनों में जरूर हो सकता है कि लोग ज़ी न्यूज़ को भी भगवा न्यूज़ और उनके कर्मचारियों को हिंदू धर्मी चैनल का नाम कर्ता धर्ता घोषित कर दें ।
कलम का हर सच्चा सिपाही देश हित में ही कार्य करता है
भड़ास4मिडिया का शुक्रिया इस पोस्ट को सार्वजानिक करने के लिए ये एक बेहद गंभीर मुद्दा है बस इसे समझने के लिए आज समझदारों की कमी है ।
सरदाना जी, रवीश जी को भी सिर्फ 2 साल से ही डर लगने लगा है, इसके पहले देश में और समाज में अमन, चैन था हजा
July 8, 2016 at 7:39 pm
😉
Agnimitra
July 8, 2016 at 7:42 pm
[b]पत्रों के इस मौसम में एक पत्र मेरा भी रोहित सरदाना के नाम [/b]
रोहित भाई,
अच्छा लिखते है आप. अक्सर टीवी वालों से ये शिकायत रहती है की वे लिखते पढ़ते नहीं. रविश कुमार के बाद आपने ने ये मिथ तोडा. आप न भी लिखते तो भी किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता पर फिर भी आपने लिखा, अच्छा किया. हो सकता है की रवीश जी ने भी पढ़ा हो और जवाब भी दे.
वो जवाब दें या न दें आप दोनों का दर्शक होने के नाते मैं जरूर कुछ कहना चाहता हूँ.
आपने रविश कुमार को बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, प्रणव राय, आशुतोष, पुण्यप्रसून और आशीष खेतान के नाम भी पत्र लिखने की नसीहत दी. बरखा और प्रणब राय को तो वो नहीं लिख सकते. नौकरी सबको प्यारी होती है. रोटी सबके पेट को चाहिए. भूखे भजन न होए गोपाला पर बाकियों को वो लिख सकते है.
आपने लिखा की पत्रकार रहते हुए एक्टिविस्ट हो जाना आपने अन्ना आन्दोलन के बाद देखा पर जनता पत्रकार रहते हुए दलाल हो जाना बहुत ज़माने से देखती आ रही है.
आपको रवीश से पूछना चाहिए था की उन्होंने ये पत्र राजीव शुक्ला और अरुण शौरी को क्यों नहीं लिखा जब वो केंद्र सरकार में मंत्री हो गए थे या उससे पहले चन्दन मित्रा (पायनियर), शोभना बरतिया (हिंदुस्तान टाइम्स) या महेंद मोहन गुप्ता (दैनिक जागरण) को जो अखबारों के मालिक/संपादक रहते हुए राज्यसभा सांसद हो गए. क्या उन्हें अपने अखबारों में ये नहीं लिखना चाहिए की इस अख़बार का मालिक/सम्पादक कांगेस या भाजपा का सांसद है.
आपको रवीश से पूछना था की जब NDTV की एक महिला पत्रकार के साथ कांग्रेस के एक बड़े नेता ने अभद्रता की तो क्यों उस एंकर को बाहर जाकर जी समूह के अख़बार DNA स्तम्भ लिख कर अपनी व्यथा बयान करनी पड़ी. तब क्यों नहीं रविश ने NDTV को पत्र लिखकर पुछा की ये खबर NDTV में क्यों नहीं चली.
पर सबको पत्र लिखने का जिम्मा रवीश को ही क्यों. आप भी तो अच्छा लिखते है. आप ही लिख दीजिये.
और आप इन लोगो के साथ साथ ये पत्र दीपक चौरसिया को भी लिख सकते है जिनको अटल सरकार में केबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था. जो अटल सरकार जाने के बाद कुछ समय वो बेरोजगार रहे और फिर से पत्रकार हो गए.
इसके साथ ही साथ आप रजत शर्मा को भी लिख सकते है की उनके चैनल इंडिया टीवी की पत्रकार तनु शर्मा का क्या मामला था क्योंकि इस खबर को इक्का दुक्का अखबारों के अलावा किसी चैनल ने नहीं चलाया. आपके चैनल ने भी नहीं. पर लिखते समय सावधान रहे क्योंकि रजत जी जो एक ज़माने में ABVP कार्यकर्त्ता थे इस तरह के सवाल पूछने पर १० करोड़ का केस कर देते है.
वैसे मेरा व्यक्तिगत मत है की आशीष खेतान भले ही प्रवक्ता कितने ही घटिया है पर उन्होंने जो भी स्टिंग किये अगर एक में भी पकडे जाते तो उन्हें जान से हाथ धोना पड़ता. पर फिर भी रोहित भाई आप उनको भी लिखिए और जब आशीष खेतान के सवालों में घिरे स्टिंग पर पत्र लिखियेगा तो लगे हाथ एक पत्र सुधीर चौधरी को भी लिखियेगा उमा खुराना स्टिंग के बारे में की उसमे कौन सा राष्ट्रवाद था. अगर उनको लिखियेगा तो उनसे पूछियेगा की संपादक का काम चैनल के लिए विज्ञापन लाना कब से हो गया और वो भी ब्लैकमेल करके.
पर इन सबको आप नहीं लिखेंगे क्योंकि नौकरी आप को भी प्यारी है और साथ ही आप बड़े सयाने भी है. आपको पता है की जी न्यूज़ के बाद आपको अगर कोई नौकरी देगा तो रजत शर्मा का इंडिया टीवी, राजीव शुक्ला का न्यूज़ २४ या दीपक चौरसिया का इंडिया न्यूज़. अपने पत्र में आपने अंग्रेजी वालों को लपेटा या सिर्फ उन वामपंथी चैनलों को जहाँ आपको नौकरी मिलने की सम्भावना नहीं है. आप तो सिर्फ रवीश कुमार को लिखेंगे क्योंकि वो आपका भला बुरा कुछ कर नहीं सकता.
आपने अपने पत्र में लिखा की रविश अन्ना के मंच से भाषण दे रहे थे. यदि ये सच है तो वाकई बड़ी हिम्मत की बात है क्योंकि वो एक कांग्रेस समर्थित चैनल में काम करते है और इसके बावजूद कांग्रेस सरकार विरोधी और भाजपा समर्थित आन्दोलन के मंच से यदि वो भाषण दे रहे थे तो ये काबिले तारीफ बात है. पर आपका वहां जाना बड़ी बात नहीं क्योंकि आपका चैनल आन्दोलन का वित्तीय रूप से भी समर्थन कर रहा था और सम्पादकीय रूप से भी. आप खुद कभी भाजपा विरोधी मंच पर नज़र आने से पहले हज़ार बार सोचेंगे की आका बुरा मान जायेगें.
वैसे तो अगर विचारधाराओं को दरकिनार करके देखा जाये तो आज की तारीख में रविश कुमार हिंदी में सबसे बेहतर एंकर है पर अब समय ऐसा है की मनोज कुरील आर के लक्ष्मण से बड़े कार्टूनिस्ट हो गए है और चेतन भगत हिंदुस्तान के सबसे बड़े लेखक तो आप रविश कुमार को टी आर पी की दौड़ में पछाड़ने के पूरे हक़दार है.
एक बात आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ की आपके समर्थक आपसे असहमत होने वालों की माँ बहनों से शारीरिक सम्बन्ध बनाने को आतुर क्यों रहते है. रवीश जब फेसबुक से भागे नहीं थे तो उनसे असहमत होने वालो को उनके फैन्स गाली नहीं देते थे. जरा सोचिये की कैसे दर्शक कमा रहे है आप लोग.
आपने अपने आपको पत्रकार लिखना बंद करके बहुत अच्छा किया क्योंकि आप अगर लिखते भी रहते तो भी कोई आपको राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी या एस पी सिंह नहीं मानता. पर आपको भी तो ये बनना नहीं है. आपके रोल मॉडल तो राजीव शुक्ला या रजत शर्मा होंगे (ये दोनों भी आपकी तरह एक समय में जी न्यूज़ के लिए कार्यक्रम करते थे).
आखिर में चलते चलते कहना चाहता हूँ की जी न्यूज़ को अपने दर्शकों को ये बताना चाहिए की आपके मालिक सुभाष जी भाजपा के सहयोग से राज्यसभा के सांसद है और २०१४ के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए प्रचार किया था. इससे दर्शक जी न्यूज़ की सम्पादकीय नीति के बारे में अधिक समझ पाएंगे.
कुल मिला कर हमाम में सभी नंगे है, जिनके घर शीशे के हो वगैरह वगैरह…
जिसकी फ़िक्र किसी को नहीं है
हिंदी न्यूज़ चैनल का एक पिटा हुआ दर्शक
bhavishya menaria
July 9, 2016 at 4:51 am
Vah! Rohit bhai. Thanks apne mere sir par savar ravish g ka bhoot utar diya bahut follow kiya inko lekin ab nahi. Rajdeep barkha or ye sab ek jamat ka hissa he. Inke liye samman tha lekin ab vo khtam ho gaya bedi mam or keju bhaiya vali baat likh aapne bata diya ki ye kaise hen. Kher
Ravi
July 10, 2016 at 12:04 pm
Rohit Sardana ji chee newz channel
Banshi dhar sharma
July 11, 2016 at 6:10 pm
रवीश कुमार जी बड़ा बुरा लगा कि लोग आपको दलाल कहने लगे किंतु आपने बिना किसी तथ्य के कैसे मान लिैया कि अखलाक और कलबुर्गी निर्दोस हैं
और ये हिंदु आतंकवाद है
Banshi dhar sharma
July 11, 2016 at 6:17 pm
रवीश जी भारत मेंसेकुेलर दूसरी प्रकार के लोग हैंहिंदुंविरोधीो जो भी हैं सेकुलर हैं
यहां हिंदु से तात्पर्य भारतीय संस्कृति के पोषक और आप भारतीय सेकुलर की अहम भूमिका में हं
याकुब के लिओ आपका लगातार डिबेट चलाना और उसे मासूम बताना किंतु धनंजय चटर्जा के समय आपका मौन क्या था
दलाली थी या सौदेबाजी