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राज्यसभा tv… जिसकी सक्सेस स्टोरी दोहरा पाना बहुत मुश्किल है! 

चेतन दत्ता- 

राज्य सभा TV एक ऐसी success story है जिसको दोहराना बहुत मुश्किल है। और मैं चैनल की सफलता या उसके content की बात नहीं कर रहा। वो तो अपने आप में एक legend है कि सरकारी सिस्टम की lethargy और लालफीताशाही के बीच में भी कैसे एक अति सफल टीवी चैनल बनाया गया जिसने बिना अंधविश्वास या sensational खबर का सहारा लिए भी देश के top channels में जगह बनाई।

मैं बात कर रहा हूँ RSTV के साथ जुड़े पत्रकारों की, उन बच्चों की जिनकी शुरुआत RSTV से हुई, जिनकी ट्रेनिंग RSTV में हुई, जो young age में ही RSTV में आ गये। उनमें से लगभग सभी के सभी सफल हुए हैं, नई से नई ऊँचाई छू रहे हैं और निरंतर सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे हैं। अभी किसी पूर्व में RSTV में रहे पत्रकार की Facebook पोस्ट देखी तो याद आ गया कि कैसे उसका recruitment हुआ था, कैसे एक अति साधारण घर के बच्चे को बिना जान पहचान और backing के equal opportunity मिली और कैसे उसने इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपना जीवन सफल बनाया। मैं He / She नहीं लिखूँगा क्योंकि मक़सद किसी को embarrass करना नहीं है। सिर्फ़ एक सुखद याद ताज़ा हो गई।

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कई साल पहले की बात है। मैं एडमिनिस्ट्रेशन देखा करता था और CEO ऑफिस भी। ज़ाहिरी तौर पर मैं पत्रकारों (interns या trainees छोड़ कर) के selection में involve नहीं होता था पर RSTV के लोगों को याद होगा कि पर्दे के पीछे से कुछ कुछ अपना input दे ही देता था। एक दिन शाम के समय लिफ्ट से बाहर आया तो एक young बच्चा लिफ्ट में घुसा। साधारण से कपड़े और चेहरे पर अति मायूसी। हाथ में कुछ folder सा था जैसे intern ले कर आते थे। मैंने बाहर आ कर वसुधा से पूछा कि ये कौन था / थी और कैसे आना हुआ। उसने डिटेल से बताया और साथ ही ये भी कि इसको “मना” हो गया है। मैंने कहा कि मुझे इसका biodata भेज दो and let me see…

RSTV के founder और CEO Gurdeep Singh Sappal की एक सोच थी, जिसमें मेरा भी पूरा योगदान था, कि हम लोग अपने चैनल में जितना हो सकेगा उतना “affirmative action” करेंगे। सरकार का काम होता है समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग तक पहुँचना और उसको बराबरी का हक़ देना। और अगर कोई अधिकारी इस स्तिथि में है कि किसी के कुछ काम आ सके तो उसको करना कर्तव्य होता है। गुरदीप ने वैसे भी जीवन में बहुत लोगों की बहुत मदद की है (हालाँकि लोग जल्दी ही भूल जाते हैं) तो मुझे RSTV में इस affirmative action के लिए green signal दिया हुआ था।

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मैंने RSTV में रहते हुए एक बात और समझी थी कि पत्रकारिता बहुत हद तक elitist है। अति जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई भतीजावाद से ग्रसित है और परिवार की बैकग्राउंड तक talent से ऊपर मानी जाती है। यहाँ तक कि देश के टॉप कॉलेज IIMC से पढ़ने के बाद भी पिछड़ी जाति या ग्रामीण परिवेश के बच्चों को अपने ही सहपाठियों से कम अवसर मिलते हैं। हमें ये ही ज़ंजीरें तोड़नी थीं और हमने ये तोड़ीं। बल्कि मैंने थोड़ा सा counter bias रखा। मैं ख़ुद ब्राह्मण हूँ और संपन्न घर से भी हूँ पर मेरा मानना ये था कि दिल्ली के किसी upper caste, मिडल क्लास घर के DU या IIMC से पढ़े हुए बच्चे में जो confidence होगा वो UP, MP, बिहार के किसी ग्रामीण क्षेत्र के दलित या साधारण / कम आय के घर के बच्चे में नहीं आ सकता। पर उसकी प्रतिभा किसी से भी ज़्यादा हो सकती है। उसको ज़रूरत होती है थोड़ी सी hand holding की। बचपन में जो परेशानी उसने झेली है, उस से प्रतिभा दबी रहती है। थोड़ा सा उसमें confidence भर दो कि हम तुम्हारे साथ हैं, अब तुम्हें कोई कुछ नहीं कह सकता तो वो बच्चा अपने अंदर की प्रतिभा और मेहनत का पूरा उपयोग करता है। ईश्वर साक्षी है कि जितना हो सका उतना किया हमने। और बिना किसी को  बताये हुए, बिना कोई एहसान जताये हुए। ऐसा भी नहीं था कि सभी merit वाले आए, संसद का चैनल था तो राजनीतिक दबाव भी होता था, वरिष्ठ पत्रकारों और editors का अपना circle भी होता है। पर by and large merit पर selection हुए ख़ास कर जूनियर लेवल पर। उसकी testimony ये है कि majority of them have moved away from RSTV, on to successful greener pastures.

जिस बच्चे की बात शुरू की थी, उसका biodata देखा तो एक हिन्दी भाषी प्रदेश से और साधारण कॉलेज से। मैंने जीवन में इतने biodata देखे हैं कि एक second में समझ आ जाता है कि किसी से लिखवाया है, कॉपी किया है, या ख़ुद सच लिखा है या झूठ ठेला है। मैंने वसुधा को कहा कि उसको कल बुला लो। अगले दिन मैंने उस से बात की, बैकग्राउंड अति साधारण थी- बच्चे ने सभी कुछ सच सच बताया। अपना ambition सच बताया- कोई ड्रामेबाज़ी नहीं। उसके बाद मैंने CEO से बात की कि hand holding वाला बच्चा है। मैं कभी धृष्टता से अपनी बात नहीं मनवाता था। चुपचाप माहौल बना कर, CEO गुरदीप से कहलवा कर उसको रखवा दिया। उस बच्चे ने इतनी मेहनत की कि जल्दी ही नाम हो गया। To cut the story short, the kid is now at a much better place and it can be said that he/she has ”arrived”.  उसकी स्टोरी अपने बच्चों से शेयर की जानी चाहिए कि देखो मेहनत करने से, बिना संसाधन के भी बच्चे आगे बढ़ते हैं और अगर संसाधन होते हुए भी हमारे बच्चे सफल नहीं हुए तो क्या फ़ायदा मां बाप की मेहनत का।

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उपर फ़ोटो RSTV की है जब CEO ने मुझे renovation का काम सौंपा और मैंने सरकारी brown, या दूसरे drab colours को दूर करते हुए RSTV का एक colourful खूबसूरत ख़ुशनुमा look बनवाया। And it stood the test of time.… 

सौजन्य- फेसबुक 

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