Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता गार्डिनर हैरिस के दिल्ली प्रवास के शर्मनाक अनुभव से हम कोई सबक लेंगे!

क्या हम अपने देश और समाज के स्वस्थ विकास के प्रति सजग हैं? इसका एक नितांत खेदपरक उदाहरण सामने आया है। अपना तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने पर अगले ही दिन अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता गार्डिनर हैरिस दिल्ली छोड़ वाशिंगटन के लिए रवाना हो गए। अपना कार्यकाल आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने असहमति जताई। यह एक महत्वपूर्ण खबर है भले ही टीवी चैनलों पर इसकी चर्चा न हो। वह अपने बच्चे को लेकर बेहद चितिंत थे, क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से उनका बेटा बीमार हो गया था।

<p>क्या हम अपने देश और समाज के स्वस्थ विकास के प्रति सजग हैं? इसका एक नितांत खेदपरक उदाहरण सामने आया है। अपना तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने पर अगले ही दिन अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता गार्डिनर हैरिस दिल्ली छोड़ वाशिंगटन के लिए रवाना हो गए। अपना कार्यकाल आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने असहमति जताई। यह एक महत्वपूर्ण खबर है भले ही टीवी चैनलों पर इसकी चर्चा न हो। वह अपने बच्चे को लेकर बेहद चितिंत थे, क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से उनका बेटा बीमार हो गया था।</p>

क्या हम अपने देश और समाज के स्वस्थ विकास के प्रति सजग हैं? इसका एक नितांत खेदपरक उदाहरण सामने आया है। अपना तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने पर अगले ही दिन अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता गार्डिनर हैरिस दिल्ली छोड़ वाशिंगटन के लिए रवाना हो गए। अपना कार्यकाल आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने असहमति जताई। यह एक महत्वपूर्ण खबर है भले ही टीवी चैनलों पर इसकी चर्चा न हो। वह अपने बच्चे को लेकर बेहद चितिंत थे, क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से उनका बेटा बीमार हो गया था।

दिल्ली में अपने बेटे के बीमार होने की बात एक अमेरिकी अखबार में लिखते हुए हैरिस ने दिल्ली को सबसे गंदा, प्रदूषित और भीड़भाड़ वाला शहर बताया है। उन्होंने शहर के प्रदूषण को जानलेवा करार दिया है। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण फैलाने वाले छोटे कण पार्टिकुलेट मैटर यानी PM 2.5 की तादाद तय सीमा से बीस गुना ज्यादा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की हवा बीजिंग के मुकाबले दोगुनी प्रदूषित है। हैरिस ने लिखा है कि दिल्ली में एक रात अचानक मेरे बेटे ब्रैम को सांस की दिक्कत हो गई। रात में अस्पताल जाना पड़ा। अस्पताल में डॉक्टर ने ब्रैम को स्टीरियॉड दी और पैंसठ हजार रुपए खर्च कर हफ्ते भर बाद अस्पताल से छुट्टी मिली। पता चला कि ब्रैम के फेफड़े आधी क्षमता के रह गए थे। गार्डिनर हैरिस का कहना है कि जानकारों ने उन्हें ब्रैम को दिल्ली में नहीं रखने की सलाह दी क्योंकि दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर तय सीमा के बीस गुना तक है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हैरिस की बात सोचने वाली है। सामाजिक दायित्व के निर्वहन के प्रति हमारा समाज पूर्णतः उदासीन ही नहीं बल्कि असंवेदनशील भी है। इसमें हमारी राजनीतिक मंशा भी मददगार होती है। रोजमर्रा की बरती जा रही लापरवाही को लेकर गार्डिनर ने लिखा है कि ‘सर्दियों के बाद किसी ने हमारे मुहल्ले में ऐसा कूड़ा जलाया कि हमारी बिल्डिंग के आसपास खतरनाक धुआं छा गया। मेरी पत्नी टहलने गई थीं, उनकी आंखों में पानी भर गया, गला करीब बंद हो गया और घर आकर देखा कि ब्रैम को भी दिक्कत हो रही है।’ यह बेहद दुःख की बात है कि भारत में स्वतंत्रता का अर्थ हो गया है अराजकता और उच्छश्रृंखलता। क्या इसका संज्ञान प्रशासन और राज्य को नहीं लेना चाहिए। पर्यावरण को नष्ट करने की दिशा में हम कुछ भी करें सब स्वागत योग्य है। जब वोट ही सब कुछ निर्धारित करता है तो बाकी बातों पर ध्यान कौन दे। नागरिक जीवन की गुणवत्ता की बात चलते ही हमें गरीबी दिखने लगती है, आबादी का घनत्व दिखने लगता है। तब हम अपने पडोसी चीन को नहीं देखते। वहां की आबादी हमसे ज्यादा है फिर भी वह हमसे अधिक विकसित देश है और वहां का जीवनस्तर हमसे कई गुना बेहतर है। जबकि आजादी के समय वह हमसे अधिक गरीब देश था।

हमारे देश में जनपरक सोच कतई नहीं है। सब कुछ नेताओं के स्वार्थों से नियोजित और संचालित होता है। ध्यातव्य है अनियोजित शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से भारत की वायु गुणता में अत्यधिक कमी आयी है। विश्वभर में 30 लाख मौतें, घर और बाहर के वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होती हैं, इनमें से सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली, विश्व के 10 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। सर्वेक्षण बताते हैं कि वायु प्रदूषण से देश में, प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के औसत से, दिल्ली में 12 प्रतिषत अधिक मृत्यु होती है। दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में चीन की राजधानी बीजिंग को काफी पीछे छोड़ दिया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

गत वर्ष अमरीका के येल विश्विद्यालय के अध्ययन में ये बात सामने आई। येल विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक, 2.5 माइक्रान व्यास से छोटे कण मनुष्यों के फेफड़ों और रक्त ऊतकों में आसानी से जमा हो जाते हैं, जिसके कारण हृदयाघात से लेकर फेफड़ों का कैंसर तक होने का खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रतिदिन 25 माइक्रोग्राम कण प्रति घन मीटर तक की मात्रा स्वास्थ्य के लिए घातक नहीं है। लेकिन पिछले वर्ष जनवरी के पहले तीन सप्ताह में नई दिल्ली के पंजाबी बाग में प्रदूषण की औसत रीडिंग 473 पीएम-25 थी, जबकि बीजिंग में यह 227 थी। हालाँकि दिल्ली प्रदषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि मौजूदा वायु प्रदूषण के पीछे मौसम प्रमुख कारण है और सालाना औसत के लिहाज से दिल्ली अब भी बीजिंग से पीछे हैं। लेकिन ताज़ा एनवॉयरमेंट परफार्मेंस इंडेक्स (ईपीआई) में 178 देशों में भारत का स्थान 32 अंक गिरकर 155वां हो गया है।

वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों (चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका) में सबसे खस्ताहाल है. इंडेक्स में सबसे ऊपर स्विट्ज़रलैंड है। प्रदूषण के मामले में भारत की अपेक्षा पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और चीन की स्थिति बेहतर है, जिनका इस इंडेक्स में स्थान क्रमशः 148वां, 139वां, 69वां और 118वां है। इस इंडेक्स को नौ कारकों- स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल एवं स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, मछली पालन, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के आधार पर तैयार किया गया है। पीएम-25 प्रदूषण के मामले में दिल्ली बीजिंग को लगातार पीछे छोड़ता जा रहा है। गाड़ियों की भारी संख्या और औद्योगिक उत्सर्जन से हवा में पीएम-25 कणों की बढ़ती मात्रा घने धुंध का कारण बन रही हैं। पिछले कुछ सालों में दिल्ली में धुंध की समस्या बढ़ती ही जा रही है। इसके बावजूद, जहां बीजिंग में धुंध सुर्खियों में छाई रहती है और सरकार को एहतियात बरतने की चेतावनी तक जारी करनी पड़ती है, वहीं दिल्ली में इसे नज़रअंदाज कर दिया जाता है। हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू के मुताबिक पांच में हर दो दिल्लीवासी श्वसन संबंधी बीमारी से ग्रस्त हैं। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ बर्डन 2013 के अनुसार, “भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए छठा सबसे घातक कारण बन चुका है।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारत में श्वसन संबधी बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। यहां अस्थमा से होने वाली मौतों की संख्या किसी भी अन्य देश से ज्यादा है। वायु प्रदूषण के साथ ही जलप्रदूषण के मामले में भी भारत की स्थिति गंभीर है। जल प्रदूषण के कई स्रोत हैं। सबसे अधिक प्रदूषण शहरों की नालियों तथा उद्योगों के कचरे का, नदियों में प्रवाह से फैलता है। वर्तमान में इसमें से केवल 16 प्रतिषत को ही शोधित किया जाता है और यही नदियों का जल अन्तत: हमारे घरों में पीने के लिए भेज दिया जाता है। जो कि अत्यधिक दूषित तथा बीमारी उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से भरा होता है। कृषि मैदानों से निकलने वाले कूड़े-कचरे को भी, नदियों में डाल दिया जाता है इसमें खतरनाक रसायन तथा कीटनाषक, पानी में पहुँच जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं होता। यह आंकड़ा महज शहरी आबादी का है। ग्रामीण इलाकों की बात करें तो वहां 70 फीसदी लोग अब भी प्रदूषित पानी पीने को ही मजबूर हैं. एक मोटे अनुमान के मुताबिक, पीने के पानी की कमी के चलते देश में हर साल लगभग छह लोग पेट और संक्रमण की विभिन्न बीमारियों की चपेट में आकर दम तोड़ देते हैं. अब जब 2028 तक आबादी के मामले में चीन को पछाड़ कर देश के पहले स्थान पर पहुंचने की बात कही जा रही है, यह समस्या और भयावह हो सकती है। एक और तो गांवों में साफ पानी नहीं मिलता तो दूसरी ओर, महानगरों में वितरण की कामियों के चलते रोजाना लाखों गैलन साफ पानी बर्बाद हो जाता है। पानी की इस लगातार गंभीर होती समस्या की मुख्य रूप से तीन वजहें हैं। पहला है आबादी का लगातार बढ़ता दबाव, इससे प्रति व्यक्ति साफ पानी की उपलब्धता घट रही है। फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति 1000 घनमीटर पानी उपलब्ध है जो वर्ष 1951 में 3-4 हजार घनमीटर था। 1700 घनमीटर प्रति व्यक्ति से कम उपलब्धता को संकट माना जाता है। अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति आठ हजार घनमीटर है। इसके अलावा जो पानी उपलब्ध है उसकी क्वालिटी भी बेहद खराब है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब यह गर्व की बात तो नहीं हो सकती कि नदियों का देश होने के बावजूद अधिकतर नदियों का पानी पीने लायक नहीं है और कई जगह तो नहाने लायक तक नहीं है। वहीँ रासायनिक प्रदूषण को पूरे देश में तेजी से अनुभव किया जा रहा है। यह पाया गया है कि गैर औद्योगिक क्षेत्रों की तुलना में, औद्योगिक क्षेत्रों में तरह-तरह के कैन्सर, विभिन्न त्वचा की बीमारियाँ, जन्मजात विकृतियों, आनुवांशिक असामनता भी लगतार बढ़ रही है, स्वाभाविक साँस लेने की, पाचन की, रक्त बहाव की, संक्रामक आदि बीमारियों में चौगुना बढ़ोत्तरी हुई है। नागरिक स्वास्थ्य, शिक्षा और समानता की बलि चढ़ाकर चुनावी दंगल में हुई जीत को लोकतंत्र का नाम दे दिया जाता है लेकिन लोक मंगल उसमें नदारद होता है। मुझे याद है कि दिल्ली के एक समय रहे उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन को लेकर कुछ इस तरह की टिप्पणी कर दी थी कि हमारे देश के लोग कानून का उल्लंघन करने को गर्व की बात मानते हैं और जानबूझकर नियम तोड़ते हैं तो बड़ा हंगामा मचा था। जबकि इसमें कुछ भी गलत नहीं था। इसे भारत की जनता का अपमान माना गया। खन्ना जी पर दबाव इतना बढ़ा कि उन्हें अपने इस वक्तव्य पर माफ़ी मांगनी पड़ी। लेकिन आज राजनेता देश, समाज, शिखा, नागरिक अभिव्यक्ति और साम्प्रदायिकता को लेकर इतने गैजिम्मेदारना और शर्मनाक बयान दे रहे हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। यह यह हमारा नागरिक पराभव नहीं है ?

लेखक शैलेन्द्र चौहान से संपर्क 07727936225 के जरिए किया जा सकता है. उनके निवास का पता है- 34/242, सेक्टर -3, प्रताप नगर, जयपुर – 302033 (राजस्थान)।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मूल खबर….

न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार गार्डिनर हैरिस की सलाह- अगर आपके पास दूसरे शहर का विकल्प है तो दिल्ली छोड़ दीजिए

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement