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लीजिए, तैयार हो गया ‘संपादक चालीसा’ …मीडिया में श्योर शाट सफलता की कुंजी

हिंदी मीडिया में कुछ साल काम करने के बाद मैंने अनुभव के आधार पर हनुमान चालीसा की तर्ज पर यह संपादक चालीसा लिखी है… इसके नियमित वाचन से वे कनफ्यूज लोग जो नहीं समझ पाते कि आखिर उनका दोष क्या है, सफलता के पथ पर निश्चित ही अग्रसर हो सकेंगे… यह संपादक चालीसा मीडिया में श्योर शाट सफलता की कुंजी है इसलिए इसका रोजाना वाचन और तदनुसार पालन अनिवार्य है… आइए इस रचना के पाठ के पहले सामूहिक रूप से कहें- आदरणीय श्री संपादक महाराज की जय….

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हिंदी मीडिया में कुछ साल काम करने के बाद मैंने अनुभव के आधार पर हनुमान चालीसा की तर्ज पर यह संपादक चालीसा लिखी है… इसके नियमित वाचन से वे कनफ्यूज लोग जो नहीं समझ पाते कि आखिर उनका दोष क्या है, सफलता के पथ पर निश्चित ही अग्रसर हो सकेंगे… यह संपादक चालीसा मीडिया में श्योर शाट सफलता की कुंजी है इसलिए इसका रोजाना वाचन और तदनुसार पालन अनिवार्य है… आइए इस रचना के पाठ के पहले सामूहिक रूप से कहें- आदरणीय श्री संपादक महाराज की जय….

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संपादक चालीसा

-राजीव सिंह-

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जय संपादक अज्ञान गुन सागर
मैनेजर बने तुम्ही हो आकर

मालिक दूत अतुलित बल धामा
डंडा डाल के करावे कामा

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मीडिया के तुम हो बजरंगी
सुमति निवार कुमति के संगी

कंचन बरन चमकत केसा
कई गुना तुम पावे पैसा

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हाथ जॉब की ध्वजा बिराजै
जिसको चाहे उसको भगावै

मूर्ख चापलूस चूतिया नन्दन
सब करते हैं तेरा बंदन

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विद्याहीन अगुनी अति चातुर
मालिक काज करिबे को आतुर

त्रिया चरित्र सुनिबे को रसिया
ऑफिस में लेडी मन बसिया

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महान रूप धरि करे दिखावा
नीच रूप धरि कंपनी डूबावा

रौद्र रूप धरि कर्मी संहारे
अपना प्रमोशन काज संवारे

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लाय प्लान कंपनी जियाये
मालिकन को चूतिया बनाये

अच्छे काम की करै न बड़ाई
एक गलती पर चीखता भाई

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डर से सब तुम्हरो जस गावैं
पीछे में गाली कण्ठ लगावैं

सबको तुमने है ऐसा पीसा
गधे जैसा दस घंटे घीसा

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तुम कुबेर दिगपाल जहां के
कोई तेरे आगे टिके कहां से

तुम उपकार सब पर कीन्हा
बदले में कम वेतन दीन्हा

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तुम्हरो मंत्र मालिकन माना
कंपनी चली सब जग जाना

जुग सहस्र झूठी खबर तानु
पेड न्यूज मधुर फल पानु

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कपट फरेब धरि मुख माहीं
हदें लांघ गए अचरज नहीं

नीच काज तुम कितने करते
तभी तो मालिक पैसे देते

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उनके दुआरे तुम रखवारे
करत न काम बिनु पैसा रे

सब कोई लहै तुम्हारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना

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दूजो क्रेडिट सम्हारो आपै
सहकर्मी कुछ कहते कांपै

भूत पिसाच निकट नहीं आवै
संपादक जब नाम सुनावै

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होवे रोग भरै सब पीरा
इतना खटावै संपादक बीरा

संकट से तें तुम ही छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै

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सब पर हैं वो मालिक राजा
तिनके काज सकल तुम साजा

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई बहुत कड़वा फल पावै

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ऑफिस में परताप तुम्हारा
जिसको जब चाहा फटकारा

कामचोरों के तुम रखवारे
असुरनंदन मालिक दुलारे

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धूर्तसिद्धि नौ निधि के दाता
जाने कितने बैंक में खाता

कपट रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहौ मालिक के दासा

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तुम्हरो भजन प्रमोशन पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै

अंतकाल जहां भी वो जाई
वहां जन्म बॉसभक्त कहाई

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और किसी को चित्त न धरई
संपादक सेइ सर्ब सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरे संपादक बलबीरा

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जय जय जय संपादक गोसाईं
कृपा करहु मालिक के नाईं

जो सत बार पाठ कर कोई
ऑफिस में महासुख होई

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जो यह पढ़ै संपादक चालीसा
होय सिद्ध नौकर हीरा सा

राजीवदास सदा ही चेरा
कीजै नाथ हृदय महं डेरा

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इस संपादक चालासी के रचयिता युवा पत्रकार Rajeev Singh हैं जिनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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