जिस संस्थान के लिए पत्रकार जीतोड़ मेहनत करते हैं, ख़बर लिखते हैं, सामाजिक सरोकारों और जनता के हक़ की लड़ाई लड़ते हैं, गरीबों को न्याय दिलाते हैं, बेसहारों का सहारा बनते हैं, उन्हीं संस्थानों का का संपादक प्रतिष्ठान पतन की हद तक आत्मजीवी और बाजारवादी हो चुका है। पत्रकारों की ही लेखनी की बदौलत मीडिया संस्थान तरक्की करते हैं, ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग पत्रकारों की ही लिखी खबरें पढ़ते हैं, उन्हीं पत्रकारों की बदौलत वाहवाही लूटने के लिए अखबार आत्मप्रचार करते हैं कि हमारी “खबर का असर”, सबसे पहले हमने उठाई थी ये आवाज, हमने दिलाया न्याय, आदि आदि। लेकिन इस खोखलेपन का पता उस समय चलता है, जब उन पत्रकारों पर मुसीबत पड़ती है, कोई आफत आती है।