उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा पारित उस फैसले कार्यान्वयन पर पर रोक लगा दी जिसमें शिलांग टाइम्स की संपादक पेट्रीसिया मुखीम और प्रकाशक शोभा चौधरी को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था और उन्हें कोर्ट उठने तक बैठे रहने व 2 लाख रुपये जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई थी. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने पत्रकारों द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस भी जारी किया.
गौरतलब है कि 8 मार्च19 को मेघालय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद याकूब मीर और न्यायमूर्ति एस. आर. सेन की पीठ ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा शुरु किया था.अदालत ने “शिलांग टाइम्स” में प्रकाशित एक लेख पर ये मामला शुरु किया जिसमें शीर्षक था, “जब न्यायाधीश खुद के लिए न्यायाधीश हो.” इसमें न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त लाभों को बढ़ाने के लिए न्यायमूर्ति सेन द्वारा पारित आदेशों की श्रृंखला की आलोचना की गयी थी. लेख में कहा गया कि राज्य सरकार को न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त लाभों को बढ़ाने पर विचार करने का निर्देश देकर, जब उनके स्वयं की सेवानिवृत्ति आसन्न थी, न्यायमूर्ति सेन अपने स्वयं के मामले का न्याय कर रहे थे. लेख ने न्यायमूर्ति सेन के आदेशों की तुलना मेघालय उच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा पारित पहले के आदेश के साथ की, जिसमें जजों को जेड प्लस सुरक्षा देने को कहा गया था, जिसे बाद में उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया।
10 दिसंबर 2018 को अखबार में ‘व्हेन जजेज जज फॉर देम्सेल्वस’ नाम से प्रकाशित लेख में संपादक मुखीम ने सेवानिवृत्त जजों के लिए बेहतर सुविधाओं और भत्तों को लेकर जस्टिस एसआर सेन के आदेश और हाईकोर्ट के दो पूर्व जजों के 2016 के फैसलों के बीच समानता पर लिखा था.इस आदेश में दो जजों ने विशेष श्रेणी की सुरक्षा की मांग की थी, जिसे उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया था.इसके बाद उच्च न्यायालय ने मुखिम और चौधरी के खिलाफ नोटिस जारी करते हुए उन्हें अदालत के समक्ष पेश होकर यह बताने को कहा कि आखिर क्यों इस आलेख के प्रकाशन के लिए अखबार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू नहीं की जानी चाहिए. इसके बाद अदालत ने मुखिम और चौधरी के खिलाफ नोटिस जारी करते हुए उन्हें अदालत के समक्ष पेश होकर यह बताने को कहा कि आखिर क्यों इस आलेख के प्रकाशन के लिए अखबार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू नहीं की जानी चाहिए.गत 8 मार्च को मेघालय उच्च न्यायालय में इस पर सुनवाई हुई, जहां न्यायालय ने मुखीम और शोभा को दोषी ठहराते हुए कहा था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत निहित शक्तियों के आधार पर हम अवमानना करने वाले दोनों शख्सों को कोर्ट की कार्यवाही खत्म होने तक एक कोने में बैठे रहने और दो-दो लाख रुपये का जुर्माना अदा करने का फैसला सुनाते हैं. जुर्माने की राशि को एक सप्ताह के भीतर रजिस्ट्री के पास जमा कराना होगा और इस राशि को बाद में हाईकोर्ट के वेलफेयर फंड में जमा करा दिया जाएगा. अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि जुर्माना राशि अदा नहीं करने पर दोनों लोगों को छह महीने की सजा का सामना करना पड़ेगा और अखबार (शिलांग टाइम्स) पर प्रतिबंध लगेगा.
लेख से नाराज होकर न्यायमूर्ति सेन ने 8 मार्च के आदेश में कहा था कि हम पूछना चाहेंगे कि क्या वो अपनी इच्छा के अनुसार न्यायपालिका को नियंत्रित करना चाहती हैं? यदि ऐसा है, तो वह बहुत गलत है. वो कोर्ट के उठने तक कोर्ट रूम के कोने में बैठें और रुपए 2 लाख का जुर्माना दें.यदि जुर्माने के भुगतान में चूक होती है तो पत्रकारों को 6 महीने की साधारण कारावास की सजा काटनी होगी और “शिलांग टाइम्स” नामक पेपर स्वतः समाप्त (प्रतिबंधित) हो जाएगा.
जस्टिस सेन ने कारण बताओ नोटिस में कहा था कि मीडिया यह नहीं बताए कि अदालत को क्या करना चाहिए.जस्टिस सेन ने कहा था कि यह चौंकाने वाला है कि कथित अखबार के संपादक और प्रकाशक ने कानून और मामले की पृष्ठभूमि जाने बगैर टिप्पणी की, जो इस मामले को देख रहे जज और पूरी जज बिरादरी के लिए निश्चित तौर पर अपमानजक है.शिलांग टाइम्स की संपादक पैटरीसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी निजी तौर पर न्यायमूर्ति एस आर सेन के समक्ष पेश हुए। हालांकि इस आलेख के लिए इन दोनों ने माफी मांग ली, लेकिन उन्हें दंडित कर दिया गया.
उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका में मुखीम और चौधरी ने कहा कि रिपोर्ट अदालती कार्यवाही की निष्पक्ष और सटीक रिपोर्टिंग थी. यह आदेश “विकृति” से पीड़ित है और यह सजा “स्पष्ट रूप से मनमानी” है, क्योंकि 2 लाख रुपये का जुर्माना अदालतों के अधिनियम की धारा 12 के तहत 2000 रुपये के जुर्माना की अधिकतम सजा से अधिक है.उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आदेश पारित करते समय उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. उन पर दिया गया नोटिस सिविल अवमानना की प्रकृति का था, लेकिन उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की गई थी.
उच्च न्यायलय के इस आदेश को एडिटर्स गिल्ड ने ‘धमकाने’ वाला बताया था. एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि अवमानना के एक मामले में मेघालय उच्च न्यायालय का आदेश प्रेस की आजादी को कमजोर करने वाला है.गिल्ड ने यह भी कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस न्यायपालिका को प्रेस की आजादी बरकरार रखनी चाहिए, उसने ऐसा करने की बजाय अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा पैदा करने वाला आदेश जारी किया है.
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.