महाराष्ट्र राज्य के श्रम आयुक्त की मीडिया मालिकों से मिलीभगत है, ऐसी आशंका तो बहुत पहले से जताई जा रही थी। परन्तु इस बात की पुष्टि हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों से आरटीआई के जरिए प्राप्त हुए कागजातों ने कर दी है। जैसा कि विदित है माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार सभी मीडिया संस्थानों में वेतन देने का निर्देश दिया है और इसके लागू कराने की जिम्मेदारी श्रम आयुक्तों को सौंप दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में श्रम आयुक्त को निर्देशित करते हुए कहा है कि सभी कागजातों की पुष्टि करके मजीठिया वेज बोर्ड लागू किए जाने की विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपें। परन्तु महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त द्वारा लगातार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की उपेक्षा की जा रही है। इतना ही नहीं, श्रमआयुक्त द्वारा सुप्रीम कोर्ट को अब तक जितनी भी रिपोर्ट भेजी गई है, वे सभी मालिकों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। संबंधित दस्तावेज़ों की पड़ताल भी नहीं की गई है। आरटीआई से जो जानकारी निकाली गयी है उससे साफ पता चलता है कि सुप्रीमकोर्ट को जो रिपोर्ट श्रमायुक्त द्वारा भेजी गयी है वो बिलकुल फर्जी है। कुछ ऐसे ही बिन्दु दृष्टिगत है-
मुंबई सहित देश के पांच अन्य श्हरों से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक प्रात:काल के संबंध में श्रम आयुक्त ने रिपोर्ट दी है कि इस समाचार पत्र में मजीठिया वेजबोर्ड पूरी तरह लागू है, जबकि यह समाचार पत्र फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए सरकार को गुमराह कर रहा है। प्रात:काल ने श्रम आयुक्त कार्यालय में एफिडेविट देकर बताया है कि उस समाचार पत्र के मालिक 72 वर्षीय सुरेश गोयल हैं। आश्चर्य की बात है कि इसी एफिडेविट में उन्हें इसी संस्थान में वेतनभोगी संपादक भी बताया गया है।
प्रात:काल ने अपने एफिडेविट में बताया है कि उसके पास कुल आठ कर्मचारी हैं, जिसमें दो श्रमिक पत्रकार एक मुख्य संपादक, एक कार्यकारी संपादक तथा एक डीटीपी हेड है। बाकी 5 प्रबंधन के सदस्य हैं। इस समाचार पत्र का प्रबंधन समाचार पत्र के प्रकाशन में आऊटसोर्सिंग से भी काम नहीं कराता है और उसके यहाँ न ही कांट्रेक्ट पर कोई कर्मचारी कार्य करता है। आश्चर्य की बात है कि इस 12 पृष्ठों के दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन एक 72 वर्षीय मुख्य संपादक, एक कार्यकारी संपादक और एक डीटीपी हेड द्वारा किया जाता है। इसमें न तो कोई रिपोर्टर है, न कोई समाचार संपादक, उपसंपादक, प्रूफ रीडर और न ही कोई दूसरा डीटीपी ऑपरेटर।
प्रात:काल समाचार पत्र के कार्यरत पत्रकार के रूप में शिरीष गजानन चिटनिस प्रतिनिधि (मुंबई/१४१६), महीप गोयल-स्थानीय संपादक (मुंबई/१४१७), विष्णु नारायण देशमुख छायाचित्रकार (मुंबई/१६७४), हरिसिंह राजपुरोहित चीफ कारेस्टपांडेंस्ट (मुंबई/१८१९) को महाराष्ट्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अनुभवी पत्रकारों को दिया जाने वाला अधिस्वीकृति पत्र (एक्रिडेशन कार्ड) प्रदान किया गया है। उल्लेखनीय है कि अधिस्वीकृत पत्रकारों को काफी सारी सरकारी सुविधाएं दी जाती हैं तथा मंत्रालय सहित विभिन्न सरकारी कार्यालयों में प्रवेश की समय-सीमा में विशेष छूट दी जाती है। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा मान्यता पात्र अनुभवी पत्रकारों को अधिस्वीकृति पत्र (एक्रिडेशन कार्ड) प्रदान किए जाते हैं। अधिस्वीकृति पत्र जारी करने से पहले लंबी प्रक्रिया पूरी की जाती है।
यह पत्र संबंधित संस्थान द्वारा प्रदत्त दस्तावेजों (जैसे- नियुक्ति पत्र, अनुभव प्रमाण, सेलरी स्लीप, पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र, संकलित / लिखित समाचारों एवं फोटो आदि कटिंग, शैक्षणिक डाक्यूमेंट्स आदि) की पुष्टि तथा पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही जारी किए जाते हैं। यानि साफ़ तौर पर कहें तो श्रम आयुक्त को प्रातः काल ने जो एफिडेविड दिया है उसमें वर्किंग जर्नलिस्ट कैटेगरी में सिर्फ दो कर्मचारी बताये गए हैं सुरेश गोयल और महीप गोयल। जबकि आर टीआईसे पता चला है कि इस अखबार में कई कर्मचारी हैं जिनको बाकायदे राज्य सरकार से मान्यता मिली है।
प्रात:काल द्वारा श्रम आयुक्त कार्यालय में दिए गए एफिडेविट में विष्णु नारायण देशमुख को मैनेजर बताया गया है तथा उनकी नियुक्ति तिथि १२.११.२०१४ को बताई गई है। वहीं इनको प्रात:काल ने ही अपने यहां छायाचित्रकार बताकर अधिस्वीकृत पत्र (एक्रिडेशन कार्ड नं.- मुंबई/१६७४) दिलवाया है। इतना ही नहीं, अधिस्वीकृत पत्र धारक शिरीष गजानन चिटनिस, हरिसिंह राजपुरोहित को तो प्रात:काल ने अपना कर्मचारी भी नहीं बताया है। यहाँ सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति संस्थान में कार्यरत ही नहीं है उसे महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला इतना महत्वपूर्ण कार्ड क्यों और कैसे प्रात:काल प्रबंधन ने दिलवाया? इन सभी बातों की शिकायत श्रम आयुक्त के यहाँ पहले से की गई है।
यहाँ तक कि एक श्रमिक पत्रकार द्वारा श्रमआयुक्त कार्यालय में जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतन एवं एरियर दिलवाने का क्लेम भी लगा हुआ है। उसके बाद भी श्रम आयुक्त ने इस संबंध में बिना पड़ताल किए किन कारणों से सुप्रीम कोर्ट में यह रिपोर्ट भेज दी कि प्रात:काल में मजीठिया वेजबोर्ड पूरी तरह से लागू है? उपरोक्त बिन्दुओं को देखें तो साफ-साफ पता चलता है कि श्रम आयुक्त मीडिया मालिकों से मिलकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरासर अवहेलना करते हुए मालिकों के पक्ष वाली झूठी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भेज रहे हैं।अब महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त को सुप्रीमकोर्ट में खीचने की कर्मचारी तैयारी कर रहे हैं।इस श्रम आयुक्त के फर्जीवाड़े का कुछ और सच जल्द सबके सामने लाया जाएगा।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335
Manoj
April 8, 2017 at 9:05 pm
Bhul jao majithiya salana increment ho jaye wo hi bahut Hai.ab na increment ho raha na majithiya mil raha.press Malik dauda dauda ke Baja aur rahe Hai.
Itna samajhna me kyon itni der lag rahi ki jiske pass paisa Hai kanoon usk Jeb me Hai Bhai.