जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट अखबार मालिकों के खिलाफ सख्त होता जा रहा है। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों के लिए दो सख्त आदेश दिए हैं… पहला तो यह कि उन्हें अपने कर्मचारियों को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देना ही पड़ेगा, भले ही उनका अखबार घाटे में हो। दूसरा, अखबार मालिकों को उन कर्मचारियों को भी मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक लाभ देना पड़ेगा, जो ठेके पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के रुख से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि जिन मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ चाहिए, उन्हें क्लेम लगाना ही होगा।
आपको बता दें कि मीडियाकर्मियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जब इस ओर दिलाया कि लेबर कोर्ट में जाने पर बहुत टाइम लगेगा और वहां इस तरह के मामले में कई-कई साल लग जाते हैं, तब माननीय सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें एक और राहत दी। यह राहत थी लेबर कोर्ट को टाइम बाउंड करने की। सुप्रीम कोर्ट ने लेबर कोर्ट को स्पष्ट आदेश दे दिया कि वह 17 (2) से जुड़े सभी मामलों को वरीयता के आधार पर 6 माह में पूरा करे। इसके बाद कुछ मीडियाकर्मी फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गए और वहां गुहार लगाई कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, अपना बकाया मांगने पर संस्थान उन्हें नौकरी से निकाल दे रहा है!
इस पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मीडियाकर्मियों के दर्द को एक बार फिर समझा और आदेश दिया कि जिन लोगों का भी मजीठिया मांगने के चलते ट्रांसफर या टर्मिनेशन हो रहा है, ऐसे मामलों का भी निचली अदालत 6 माह में निस्तारण करे। इससे अखबार मालिकों ने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, बकाया मांगने वालों के ट्रांसफर / टर्मिनेशन की गति जहां धीमी कर दी, वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा मीडियाकर्मियों का दर्द समझे जाने का असर यह हुआ कि अब निचली अदालतें भी नए ट्रांसफर / टर्मिनेशन के मामलों में मीडियाकर्मियों को फौरन राहत दे रही हैं।
यहां बताना यह भी आवश्यक है कि पिछले दिनों मुंबई में ‘दैनिक भास्कर’ की प्रबंधन कंपनी डी बी कॉर्प लि. के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख के पक्ष में लेबर डिपार्टमेंट ने रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) जारी किया था… कलेक्टर द्वारा वसूली की कार्यवाही भी तेजी से शुरू हो गई थी। हालांकि डी बी कॉर्प लि. ने इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच कर आरसी पर रोक लगाने की मांग की, मगर हाई कोर्ट ने उनकी एक न सुनी और साफ शब्दों में कह दिया कि कर्मचारियों की जो बकाया धनराशि है, पहले उसका 50 फीसदी हिस्सा कोर्ट में जमा किया जाए।
यह बात अलग है कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद डी बी कॉर्प लि. ने माननीय सु्प्रीम कोर्ट में पहुंच कर विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई से गुहार लगाई कि हुजूर, हाई कोर्ट का पैसा जमा कराने का आदेश गलत है और इस पर तत्काल रोक लगाई जाए। लेकिन वहां इनका दांव उल्टा पड़ गया। गोगोई साहब और जस्टिस नवीन सिन्हा का नया आदेश एक बार फिर मीडियाकर्मियों के पक्ष में ब्रह्मास्त्र बन गया है। असल में डी बी कॉर्प लि. को राहत देने से इनकार करते हुए उन्होंने ऑर्डर दिया कि हमें नहीं लगता कि हाई कोर्ट के निर्णय पर हमें दखल देना चाहिए। स्वाभाविक है कि इसके बाद मरता, क्या न करता? सो, जानकारी मिल रही है कि डी बी कॉर्प लि. प्रबंधन ने बॉम्बे हाई कोर्ट में तीनों कर्मचारियों की आधी-आधी बकाया राशि जमा करवा दी है। इससे साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहां अखबार मालिकों के आने का रास्ता लगभग बंद कर दिया है। अब कोई भी मीडियाकर्मी अगर क्लेम लगाता है तो उसका निस्तारण भी जल्द होगा।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
एनयूजे मजीठिया सेल समन्वयक
9322411335
Comments on “मजीठिया वेज बोर्ड मामला : सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों को राहत देने से किया इनकार, देखें ऑर्डर की कापी”
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सर जी नमस्कार देनिक भास्कर हिसार में आठ कर्मचारियों को गुजरात व बिहार के तबादले कर दिया था जिस पर श्रम आयुक्त हिसार ने रोक लगा दी ओर सपादक व प्रबंधन को न्यायहित में यथासिस्थी बनाए रखने व कर्मचारियों को वापिस उसी जगह ड्यूटी ज्वोइन करने के आदेश दिए यहाँ वह पहले ड्यूटी कर रहें हे जिस पर प्रबंधन आनाकानी कर रहा हे
Sir i want copy of supreme court order. About eps95 pension. I retired from indian express on march 31 2018. And i an getting prnsion 3157 per month . Should i entitled for revised pension pleasr advice thanks and regards my whatsap number 9653490149